Hindi Family Story, लेखक – एसी ठाकुर

जब वह मिली तो बहुत उदास सी लगी थी. अलबत्ता वह मां तो बन चुकी थी. एक खूबसूरत बेटी थी उस की गोद में. ठीक उसी की तरह बड़ीबड़ी आंखें और हलकी चपटी नाक. वह गुमसुम बैठी कहीं खोई हुई थी.
‘‘कब आई हो?’’ न चाहते हुए भी मैं ने ही पहले टोक दिया.

मेरी आवाज सुन वह जैसे कहीं से तुरंत वापस हुई हो, बोली, ‘‘ओह, आप हैं… नमस्कार…’’ थोड़ी सी सूखी मुसकराहट उस के होंठों पर तैर गई. उस ने अपने पल्लू को तुरंत ठीक किया. अपने माथे को पोंछने के अंदाज में हाथ फिराया. सहज होने की भरसक कोशिश की. कुछ पलों की यह कोशिश बहुतकुछ कह गई.

‘‘आप बैठिए न,’’ कहते हुए वह सोफे पर एक किनारे खिसक गई.

‘‘कब आई हो?’’ मैं ने सवाल दोहराया.

‘‘कल ही तो…’’

‘‘क्या आनंद बाबू भी आए हैं?’’

उस ने ‘न’ में सिर हिलाया.

‘‘तो फिर किस के साथ आई हो?’’

इस बार उस की नजरें झुक गईं. चेहरे पर बल पड़ता दिखाई दिया. फिर वह बोली, ‘‘अकेली.’’

‘‘सच? वाह, तब तो तुम बहुत होशियार हो गई हो.’’

‘‘होशियार हुई नहीं, होने जा रही हूं,’’ उस ने कहा.

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब जानना चाहेंगे?’’

मैं ने ‘हां’ में सिर हिलाया तो वह बोली, ‘‘मैं ने आप के आनंद बाबू से तलाक ले लिया है.’’

‘‘क्या?’’ मैं हैरानी से उसे देखता रह गया.

‘‘यह सच है…’’ वह धीरे से बोली.

यह सुन कर मेरी धड़कन तेज हो गई.

‘‘मैं दोबारा अपनी जगह वापस आना चाहती हूं. लेकिन कुछ वक्त के बाद. पहले मैं अकेली थी, अब मेरी छोटी सी बेटी भी है. इतना ही नहीं, पहले मैं घमंडी थी, अब ऐसी बात नहीं है,’’ वह थोड़ा रुकी, फिर बोली, ‘‘लेकिन ठहरिए, क्या मेरी ‘जगह’ मुझे अपना लेगी? यही चिंता है…’’

‘‘तुम्हें हैरानी होगी कि उस ‘जगह’ को भूचाल भी नहीं बदल सका. वह न हिली है, न डुली है. आज भी पहले जैसी है,’’ इस बार अनचाहा सन्नाटा छा गया.

मैं ने सोफे पर बैठेबैठे आंखें चारों ओर घुमाईं. उस वक्त कोई बदलाव नजर नहीं आ रहा था. वह घर अतीत को हूबहू जीने लगा था.

मैं यानी किशन और काकुली साथसाथ पढ़ते थे. मैं था शांत और वह नटखट. मैं पढ़ने में तेज और वह नाचने और गाने में. वह पिता की तीसरी और आखिरी औलाद थी. 2 बड़े भाई थे. वह घरभर की दुलारी थी, बड़े बाप की बेटी. घर में किसी चीज की कमी न थी.

मेरे पिता की काकुली के पिता से दोस्ती थी. मैं बचपन से ही वहां आताजाता था, कोई रोकटोक नहीं. सच पूछिए, तो कब हम दोनों में प्यार हुआ, जानता नहीं.

समय बीता. काकुली पीछे छूट गई, मैं आगे बढ़ा. मैं बैंक में अफसर बन गया. मेरी शादी हुई. बीवी काफी वक्त साथ रही. खुश थी. मुझे बहुत मानती थी. किंतु एक बात उसे बरदाश्त नहीं थी कि मैं काकुली की खूबसूरती का बखान करूं. इस बात पर वह रूठ जाती थी.

काकुली का तब तक मुझ से और मेरा उस से लगाव भर बाकी था. वह कभीकभार मेरी बीवी से
मिलने के बहाने आ जाती थी.

एक दिन पत्नी ने काकुली से कहा था, ‘‘तुम रविवार को मेरे यहां मत आया करो.’’

काकुली हंस कर टाल गई थी, पर चोट गहरी थी.

बैंक के अफसर को फुरसत कम ही मिल पाती है, इसलिए बीवी कहती, ‘‘एक तो काकुली है और यह बैंक भी मेरी सौत हो गया है.’’

इस बात पर हम दोनों हंसते थे, किंतु इस में कहीं न कहीं सचाई थी. फिर भी, हम दोनों में काफी मेलमिलाप था.

किंतु, कुदरत का विधान मेरे लिए कुचक्र रच चुका था. मेरी पत्नी मां बनने वाली थी. दर्द शुरू होते ही डाक्टर के यहां ले गया.

डाक्टर ने जांच के बाद बताया, ‘‘बच्चा पेट में मर चुका है. जच्चा बच जाए, यही काफी है. हम अपनी पूरी कोशिश करते हैं.’’

उसी दरमियान मेरी बीवी ने हमेशाहमेशा के लिए आंखें मूंद लीं.

घर में कुहराम मच गया. मैं पागल सा हो गया. काकुली, उस की मां और दूसरे सभी लोग आए. सब ने
धीरज बांधने की पूरी कोशिश की.

मैं ने बैंक से छुट्टी ले ली. माहौल बदलने के लिए पिताजी और काकुली की मां की जिद पर उस के यहां भी भेज दिया गया.

मैं धीरेधीरे सहज होने लगा. काकुली ने अपनी भरपूर कोशिश से मुझे उदासी से दूर करना चाहा था. अब उस के साथ गुजरा पुराना जमाना भी मेरा पीछा करने लगा था.

कुछ दिनों बाद काकुली से मौका पा कर बोला, ‘‘मैं दूसरी शादी तुम से करना चाहता हूं.’’

काकुली ने मेरे हाथ झटक दिए और दूर हट गई.

‘‘याद करो वह दिन, जिस दिन तुम्हारी शादी थी,’’ वह अकड़ कर बोली, ‘‘मैं ने खबर भेजी थी कि तुम एक बार मुझ से मिलो, पर तुम ने साफ इनकार कर दिया था. मुझे तुम्हारे लिए हमदर्दी है, पर इस का मतलब…’’

‘‘मैं ने ऐसा जानबूझ कर नहीं किया था…’’ मैं ने बीच में ही सफाई देनी चाही, ‘‘असल में, मैं बहुत परेशान था. वह शादी तो जबरदस्ती की थी… तुम सब जानती हो.’’

‘‘मैं सब जानती हूं,’’ काकुली गुस्से से बोली.

मैं उठ कर पिछले दिनों की तरह उसे पकड़ने लगा, उसे बांहों में भरना चाहा. पर वह छिटक गई और चीख कर बोली, ‘‘खबरदार, जो इस निगाह से फिर देखा,’’ और वह सीढि़यां उतरती चली गई.

मैं उस दिन बहुत रोया. मौका पा कर काकुली के सामने कई बार गिड़गिड़ाया, पर वह नहीं मानी.

मैं फिर दूसरी शादी नहीं कर पाया. पहली बीवी की याद तो आती ही थी, पर काकुली की याद भी सताती. बीवी के रूप में उसे ही देखा था.

कई बार मां ने समझाया, ‘‘किशन, अभी तुम्हारी उम्र ही क्या हुई है? दूसरी शादी कर लो.’’

पर मैं ने इनकार कर दिया था.

सोफे पर बैठाबैठा मैं गुजरे वक्त की यादों में डूबा हुआ था कि नौकरानी ने आ कर हम दोनों के सामने चाय रखी.

‘‘क्या सोच रहे हैं? आप चाय पीजिए,’’ चुप्पी तोड़ते हुए काकुली बोली.

मैं ने चाय लेते हुए कहा, ‘‘काकुली, यह ‘आपआप’ सुन कर मेरे कान पक गए.’’

वह चुप रही.

मैं ने पूछा, ‘‘पर तुम ने अपने पति से तलाक क्यों लिया?’’

‘‘तलाक?’’ उस ने पूछा.

‘‘हां,’’ मैं ने कहा.

‘‘मैं तंग आ चुकी थी उन के बरताव से, उन की दौलत के नशे से, उन के दोस्तों से, उन की लत से. महीने में एक दिन आना, न आना, शराब पीना, छोटीछोटी बातों पर मुझे पीटना, गालियां देना,’’ काकुली गुस्से में बोल रही थी.

मुझे काकुली पर बहुत प्यार आ रहा था, वहीं डर भी हो रहा था कि कोई आ न जाए. मैं ने इधरउधर झांका, फिर आ कर उस के पास बैठते हुए कहा, ‘‘यकीन करो, तुम्हें पहली जगह जरूर मिलेगी.’’

मैं अपने रूमाल से काकुली के आंसू पोंछ ही रहा था कि सीढि़यों से किसी के आने की आवाज सुनाई दी. मैं छिटक कर दूर हट गया.

तभी नौकरानी काकुली की 6 महीने की बेटी को लिए अंदर आई और बोली, ‘‘यह जग गई थी, इसे भूख लगी है.’’

वह बड़ी प्यारी गुडि़या थी. मैं ने झपट कर उसे उठा लिया और चूमते हुए कहा, ‘‘बड़ी प्यारी बच्ची है.’’

बच्ची जोरजोर से चिल्लाने लगी. काकुली चुपचाप मुसकराते हुए हमें देखती रही. मैं बेखबर बच्ची को
चूमता रहा. Hindi Family Story

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