Social Story In Hindi: ‘‘यह क्या है? मैं 10 रुपए से कम नहीं लेती,’’ जैसे ही वरुण ने एक रुपए का सिक्का उस भिखारिन के हाथ पर रखा, तो यह जवाब सुन कर वह हैरान रह गया.
सफेद बालों वाली उस औरत के चेहरे पर तेज था और आवाज के साथसाथ भाषा पर भी अधिकार.
वरुण ने चुपचाप 50 रुपए का नोट निकाला और उस औरत की हथेली पर रख कर पूछा, ‘‘आप तो किसी अच्छे घर की जान पड़ती हैं, फिर यह भीख मांगना समझ नहीं आया?’’
50 रुपए के नोट को खोल कर परखती वह भिखारिन बोली, ‘‘मैं कभी एक अमीर घर से ताल्लुक रखती थी, पर अब मैं यह जो हूं, वह मैं हूं.’’
वरुण उस औरत के बगल में बैठ गया और बोला, ‘‘मैं एक पत्रकार हूं और एक लेखक भी. आप का इतिहास शायद एक उम्दा कहानी समेटे हुए है. अगर आप को एतराज न हो तो मेरे जिज्ञासु मन को शांत करने में मेरी मदद करेंगी?’’
वह औरत जोर से हंसी और बोली, ‘‘जरूर बताऊंगी, पर 500 रुपए फीस लूंगी. बोलो, मंजूर है?’’
वरुण ने जेब टटोली तो 200 रुपए का एक नोट मिला. उस औरत को नोट थमाते हुए वह बोला, ‘‘अभी मेरे पास इतने ही हैं. मैं फिर आ कर बाकी पैसे भी दे दूंगा, पर मुझे आप की कहानी अभी जानने की इच्छा है.’’
वह औरत इस बार धीरे से मुसकराई, कुछ पल वरुण के चेहरे को घूरा, फिर बोली, ‘‘चल, पप्पू चाय वाले के पास चलते हैं. वहां चाय की चुसकी लेते हुए बात करेंगे.’’
अब वे दोनों पैदल 400 मीटर दूर पप्पू चाय वाले की दुकान की तरफ बढ़ चले. चलते ही भिखारिन ने बोलना शुरू किया, ‘‘मेरा नाम प्रभजोत कौर है, पर यहां हरिद्वार में मुझे जानने वाले ‘अमीर भिखारिन’ के नाम से ही जानते हैं. यहां मेरी खूब चलती है. सारे भिखारी मेरी बात मानते हैं. किसी का कोई झगड़ाटंटा होता है, तो मैं ही उस का निबटारा करती हूं. 5 साल हो गए मुझे यहां आए हुए, पर लगता है कि कई सालों से मैं यहीं रह रही हूं.’’
‘‘आप पहले कौन से शहर में रहती थीं?’’ वरुण ने पूछा.
‘‘सब बताऊंगी, थोड़ा शांति से सुनो. मैं लुधियाना में पलीबढ़ी हूं. मेरे पिता बैटरी का बिजनैस करते थे. मैं पढ़ने में ठीकठाक थी, पर बाकी गतिविधियों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी.
‘‘शुरू से ही मुझे खूबसूरत दिखने का शौक था, इसलिए 12वीं क्लास पास होते ही मैं ने ब्यूटी कौंटैस्ट में हिस्सा लेना शुरू कर दिया. घर में किसी तरह की रोकटोक नहीं थी, इसलिए मनमरजी से जो करना चाहती, वह कर लेती थी.
‘‘2 साल में मैं ‘मिस लुधियाना’ और फिर ‘मिस चंडीगढ़’ बन गई. जिस दिन मैं ‘मिस चंडीगढ़’ बनी उसी दिन मेरी मुलाकात मनजीत से हुई. वह एक अमीर नौजवान था. उस के 4 शहरों में बड़ेबड़े होटल थे.
‘‘मनजीत मुझ पर फिदा हो गया था और मुझ से शादी करना चाहता था. मुझे भी वह पसंद आने लगा और हमारी शादी हो गई. मैं आजादखयाल लड़की अमृतसर के एक 15 लोगों के संयुक्त परिवार में रहने आ गई.’’
अब तक चाय का गिलास प्रभजोत कौर के हाथ में आ चुका था. उस ने एक गरम घूंट गले से उतारा और फिर कहना शुरू किया, ‘‘बहुत अमीर परिवार था. कार एजेंसी, होटल, टायर बहुत तरह के बिजनैस थे. बेहिसाब कमाई, महल जैसा घर, महंगी विदेशी गाडि़यां. कुलमिला कर मैं तो वहां की चकाचौंध में सब
भूल गई.
‘‘एक साल तो ऐसे ही बीत गया. मनजीत अकसर होटल के काम से बाहर जाता रहता था. मेरी सास बहुत खड़ूस थी. वह दिनभर ताने मारती रहती थी. मनजीत के घर पर न होने पर तो वह हद ही कर देती थी. मुझ से पता नहीं क्यों चिढ़ी रहती थी. शायद वह अपने बेटे का ब्याह किसी और लड़की के साथ कराना चाहती थी.’’
‘‘आगे क्या हुआ?’’ वरुण ने पूछा.
चाय का आखिरी घूंट भरते हुए प्रभजोत कौर ने चाय वाले को इशारा करते हुए कहा, ‘‘एक चाय और…’’ फिर गहरी सांस भरते हुए वरुण से बोली, ‘‘बस, फिर धीरेधीरे मेरे अपनी सास से संबंध खराब होते चले गए.
‘‘मैं ने भी ईंट का जवाब पत्थर से देना शुरू कर दिया. अब आएदिन घर में क्लेश होने लगा. मनजीत ने बीचबचाव करने की कोशिश की, पर सुलह न हो सकी.
‘‘इस किचकिच से दूर रहने के लिए मैं ने फिर से मौडलिंग स्टार्ट कर दी. अब तो सास ने और तहलका मचाना शुरू कर दिया. उस ने मेरे कैरेक्टर पर उंगली उठाना शुरू कर दिया. मेरा घर पर रहना दूभर हो गया.
‘‘मैं ने कई बार मनजीत से अलग रहने की बात कही, पर वह हर बार साथ रहने के लिए मुझे मना लेता, क्योंकि कोई भी अब तक उस घर से अलग नहीं हुआ था, इसलिए वह यह बुराई अपने सिर लेने से बचना चाहता था.
‘‘मेरा मन बहुत बैचेन रहने लगा, पर कुछ भी सम?ा नहीं आ रहा था. एक दिन मौडलिंग करते हुए एक साथी ने मुझे दवा के नाम पर कोई नशीली चीज पिला दी. मैं तो जैसे दूसरी दुनिया के सुख में पहुंच गई. सबकुछ भूल गई. पहले हफ्ते में एक बार, फिर रोज ड्रग्स लेना शुरू हो गया.
‘‘एक दिन शाम को मैं ड्रग्स के नशे में घर पहुंची, तो घर पर सास अकेली थी. मुझे देखते ही वह मुझ पर राशनपानी ले कर चढ़ गई. ‘कुल्टा’, ‘कुलच्छनी’, ‘आवारा’ और न जाने वह मुझे कौनकौन सी गालियां दिए जा रही थी और बिना बोले मेरा गुस्सा अंदर ही अंदर बढ़ता जा रहा था.
‘‘जब सहा नहीं गया तो मैं ने किचन में जा कर बड़ा सा चाकू उठाया और सीधे अपनी सास के सीने में घोंप दिया. मेरे हाथों खून हो चुका था, पर मुझे बड़ा सुकून मिला. पर थोड़ी देर के बाद मु?ो अहसास हुआ कि मैं ने यह क्या कर दिया.
‘‘थोड़ी देर बाद ही मेरी एक जेठानी आई और फिर उस ने सब को बुलाया. मैं चुपचाप वहीं बैठी रही. पुलिस आई और मुझे गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया. मेरे मातापिता ने भी मुझ से मुंह मोड़ लिया. 7 साल की जेल हुई. कोई मुझ से मिलने तक नहीं आया. मैं दिमाग से सुन्न हो चुकी थी.
‘‘7 साल की जेल से मैं बुरी तरह टूट गई. बाहर आई तो कोई लेने नहीं आया. अपनी ससुराल गई तो दुत्कार कर वहां से भगा दिया गया. मांबाप को फोन किया, तो उन के रूखे जवाब ने मेरा मन तोड़ दिया.
‘‘एक जोड़ी कपड़े और जेल में कमाए कुछ पैसे ले कर मैं ट्रेन में बैठ कर दिल्ली आ गई. मौडलिंग के कुछ जानकार लोगों से मदद की गुहार लगाने की कोशिश की, पर सब जगह मेरे किए गए कांड की खबर पहुंच चुकी थी.
‘‘दिल्ली में बिताए साल जहन्नुम से कटे. कभी भीख मांगी, कभी शरीर बेचा, तो कभी ?ाड़ूबरतन किए. बस, किसी तरह जिंदा थी.
‘‘मैं एक घर में झाड़ूपोंछा करती थी. वहां एक बूढ़ी माई को उस के बहूबेटा बहुत सताते थे. एक दिन उस ने मुझे हरिद्वार चलने के लिए पूछा, तो मैं ने अनमने मन से ‘हां’ कह दिया.
‘‘वह बुढि़या घर पर बिना बताए मेरे साथ हरिद्वार आ गई. हम कुछ महीने धर्मशाला में रहे, पर न उसे ढूंढ़ता कोई आया, न उसे किसी की याद आई. वह मेरा बच्चे की तरह खयाल रखती और मैं भी उस की आदर के साथ हर मदद करती. उस का अब यहीं रहने का मूड था और मुझे भी यह शहर भाने लगा था.
‘‘फिर एक दिन वह बुढि़या अचानक चल बसी. उन की इच्छा को ध्यान में रखते हुए बिना उस के बेटे को बताए वहीं अंतिम संस्कार कर दिया. मैं फिर सड़क पर थी. अब तक सब शर्म, शिकवे और झिझक खत्म हो चुके थे. खुली जबान से इंगलिशहिंदी बोल कर लोगों से भीख मांगना शुरू कर दिया. अच्छी भीख मिलने लगी, पर अब पेट की भूख शांत करने के सिवा कोई चाह नहीं थी, तो भिखारियों से ही दोस्ती हो गई.
‘‘अब इन के साथ ही जिंदगी अच्छी कट रही है. अब ये ही मेरे दुखसुख के साथी हैं. मंडली में रोज कोई नया सदस्य जुड़ जाता है. सब कोई न कोई अलग कहानी समेटे हुए हैं. इन के साथ प्यारमुहब्बत से रहना सीख रही हूं,’’ ऐसा बोलते हुए प्रभजोत कौर ने एक लंबी सांस खींची और चुप हो गई.
वरुण भी कुछ देर खामोश रहा, फिर बोला, ‘‘आप के मातापिता ने भी कभी आप को तलाशने की कोशिश
नहीं की?’’
‘‘बाबू, यह दुनिया किसी के लिए नहीं रुकती. सब अपने तरीके को सही मानते हुए जीते हैं. पर यहां आ कर मुझे समझ आया कि जीना सिर्फ अपने लिए नहीं होता, बल्कि यह तो दूसरों के लिए होता है.
‘‘यहां मेरे पास कुछ भी नहीं है, फिर भी मैं दिल से अमीर हूं, इसलिए लोग मुझे ‘अमीर भिखारिन’ कहते हैं…’’
यह कहते हुए प्रभजोत कौर ने अपने हाथ में रखा 200 रुपए का नोट वरुण को लौटाते हुए कहा, ‘‘अभी इस की तुम्हें ज्यादा जरूरत है. मेरे लिए तो यह 50 रुपए का नोट ही काफी है. तुम्हें और तुम्हारी इनसानियत को परखने के लिए मैं ने ये पैसे लिए थे.
‘‘मैं उम्मीद करती हूं कि तुम्हें एक कहानी लिखने का अच्छा मसाला मिल गया होगा. हां, इस की न्यूज मत बनाना, क्योंकि गुमनामी में जीने का जो मजा है, वह ज्यादा पहचान के साथ नहीं है. यह मैं दोनों को अनुभव करने के बाद कह रही हूं. यह ‘अमीर भिखारिन’ तुम्हें खुश रहने का आशीर्वाद देती है.’’ Social Story In Hindi