Social Story: चालाक आंखें, दिमाग में खुराफात और हर पल रुपया कमाने की उधेड़बुन के साथ वह अपनी आवाज को एकदम मधुर रखता है. अपनी बनावटी आवाज को उस ने एक कामयाब मुखौटा बना रखा है.

उस का नाम छलिया है. जैसा नाम वैसा गुण. छलिया अपनी फितरत और हर हरकत में कपटी है, चालबाज है. आज वह इस शहर में जमीन का दलाल है, मगर कभी वह निपट देहाती हुआ करता था और उस के काम ही ऐसे थे कि एक दिन उसे अपना गांव रातोंरात छोड़ कर वहां से भागना पड़ा था.

दरअसल, छलिया कुछ रुपयों के लालच में गांव के लड़कों को बीड़ीसिगरेट पीने की लत लगा रहा था. वह गांव की अच्छीभली कालेज जाती लड़कियों को मौडल बन कर ऐशोआराम की जिंदगी जीने के खूबसूरत सपने दिखाया करता था. अपने भाईबहनों में सब से छोटा छलिया अपनी बुजुर्ग, लाचार मां के लिए भी एक नासूर बन चुका था.

यह सोच कर छलिया का ब्याह कराया गया कि वह अपनी खुराफात से तोबा कर लेगा, मगर पत्नी को भी उस ने अपने जैसा बना लिया था. खेती में उस का मन लगता नहीं था. उसे मवेशी की देखभाल करना पसंद नहीं था. सुबह से रात तक वह कुछ न कुछ प्रपंच करता रहता था.

दमा से पीडि़त छलिया की बीमार मां एक दिन उसे ‘अब तो सुधर जा रे छल्लू’ कहते हुए इस दुनिया से विदा हो गई. इस के बाद तो छलिया और ज्यादा आजाद हो गया.

मगर एक दोपहर छलिया को गांव की पंचायत ने यहां से फौरन दफा हो जाने का आदेश दे ही दिया और यह होना ही था. उस ने काम ही ऐसा किया था. शहर के एक राजनीतिक दल से सांठगांठ कर के उस ने गांव के इंटर कालेज और स्कूल के छात्रों को गलत रास्ते पर चल कर आत्मदाह और प्रदर्शन के लिए उकसाया था. मिठाई, सिगरेट, शराब और मांस भी बांटा था.

इस में कमीशन के तौर पर छलिया को भी खूब रुपया मिला था, मगर समय रहते किसी ने मुखबिरी कर दी थी. उस का भांडा फूट गया था और छलिया को आननफानन में पंचायत के सामने पेश किया गया था.

छलिया इतनी मोटी चमड़ी का बना हुआ था कि वह पत्नी और अपने एक साल के बेटे को ले कर बेशर्मी से कोई टपोरी सा गीत गाता हुआ गांव की सरहद पार कर गया. शहर में बलुआ तो उस का पुराना यार था ही.

बलुआ ही तो तंबाकू, बीड़ी, सिगरेट, पान मसाला का सप्लायर था. उस ने छलिया को एक गैस्ट हाउस में 150 रुपए प्रतिदिन पर कमरा दिलवा दिया. छलिया को रोजगार की चिंता थी ही नहीं. कितनी ही तरकीबें थीं उस के शातिर दिमाग में.

कबाड़ी महल्ले जा कर बलुआ के होलसेल के गोदाम से छलिया ने 2 थैले उठाए और अगले दिन सुबह 8 बजे रेलवे स्टेशन के बाहर की सड़क से मटर गली, वहां से पुरानी मंडी, फिर सदर बाजार और मेला मैदान होता हुआ दोपहर तक 8-9 किलोमीटर तक हो आया. तब तक उस के थैले से पान मसाला, सुपारी, अगरबत्ती, बीड़ी, सिगरेट, कंडोम वगैरह अच्छेखासे बिक चुके थे.

दोपहर को उसी गैस्ट हाउस में छलिया ने पत्नी के साथ लंच किया. इस के बाद वह गहरी नींद में ऐसा सोया कि रात को साढ़े 10 बजे ही जागा.

छलिया ने बगल में गौर से देखा कि पत्नी और बेटा तो बेसुध पड़े हुए थे. जागते ही भविष्य की सोच में मगन छलिया ने अंदाजा लगाया कि अभी 1-2 महीने तक इसी गैस्ट हाउस में समय काट लेना चाहिए.

खानापीना, रहना सब मिला कर 700 रुपए लग रहे हैं.

यही सब सोचता हुआ छलिया गैस्ट हाउस से बाहर आ गया. बाहर काफी सुनसान था. वह पैदल चलता रहा. इस से पहले भी वह शहर आता रहता था, मगर इतनी रात के समय उस ने शहर को पहली बार ही देखा था.

छलिया को तेज पेशाब आया. एक कोना खोज कर वह पेशाब कर रहा था कि एक महंगी कार आ कर रुकी. कुछ ही पल में एक बाइक आई. घने अंधेरे में 2-3 लोग आए और आपस में बातें करने लगे.

एक आदमी कह रहा था, ‘‘आजकल तो फोन पर बात करना बहुत खतरनाक हो गया है. दफ्तर में तो जासूस हैं.

कोई भी जगह महफूज नहीं है, इसीलिए यहां बुला कर आमनेसामने बात कर रहा हूं.’’

वह बाइक सवार था. सब ने गरदन हिलाई. वह बाइक वाला आगे बोला, ‘‘यह जो रामनगर में औषधि वाला सरकारी पार्क बन रहा है न, उस के आसपास की बहुत सारी जमीन कब्जे की है, बेनामी है. वहां अगर तुम लोग अपने फड़ लगा लो या कोई धार्मिक स्थल बना लो या फिर कोई प्याऊ भी लगा लो, तो बाद में हौलेहौले इसे किसी बाहरी को बेच देना. मुझे यही बताना था. और हां, यह रहा इस जगह का पूरा नक्शा.’’

बाकी सभी लोग बेहद खुश लग रहे थे. बताने वाले आदमी के कंधे थपथपाए जा रहे थे.

कुछ और बातें आपस में कहसुन कर कार वाला एक दिशा में, तो बाइक वाला दूसरी दिशा में चल दिया.

उधर कोने में छिपा छलिया एकएक बात सुन चुका था. इस वक्त के घने अंधकार में उस को जगमग रोशनी दिखने लगी. वह हंसने लगा. उस शातिर की बांछें खिल उठीं.

अगली सुबह छलिया थैला उठा कर फेरी वाला बनने के बजाय सीधा बलुआ के पास गया. उस को पिछली रात का सारा मामला कह सुनाया.

बलुआ ने उसे गले से लगा लिया. अब वे दोनों सामान जमा करने निकल पड़े. दोपहर तक रामनगर के उस पार्क के साथ सटी जमीन का एक कोना घेर लिया और वहां पर तुलसी और पीपल के पौधे रोप दिए.

छोटेछोटे पोस्टर लगा दिए, जिन में लिखा था कि ‘यह पावन जगह है. थूकने और पेशाब करने की सख्त मनाही’.

देवताओं के चित्र लगा कर गुल्लक रख दिए. ?ाडि़यां लगा दीं. चारों तरफ गेरू का लेपन कर के उसे आकर्षण का केंद्र बना दिया. इस के बाद वे दोनों गैस्ट हाउस चले गए.

उन को देखते ही छलिया की पत्नी ने बताया कि वह और बेटा तो नाश्ता और लंच कर चुके हैं. छलिया ने बेटे को खूब प्यार किया. पत्नी को कुछ रुपए दिए और कान में कुछ समझा कर बाहर टहलने भेज दिया.

पत्नी और बेटा जैसे ही बाहर गए, बलुआ और छलिया ने सिगरेट जलाई. अब उन दोनों का दिमाग चलने लगा कि कैसे इस जमीन के टुकड़े को लाखों रुपए में बेच कर रकम अपनी अंटी में डाली जाए. उन को इस बात का तोड़ भी मिल गया. गैरकानूनी धंधे में घुसे किसी भूमाफिया की सरपरस्ती.

10-12 दिन की जुगत के बाद बलुआ को एक ऐसा जमीन माफिया मिल ही गया. इतने दिन में एक बात और हो चुकी थी. उस खाली जमीन के 90 फीसदी हिस्से पर जबरन कब्जा हो गया था. एक प्याऊ, एक बंजारा परिवार, एक मूर्ति बनाने और बेचने वाला, एक कबाड़ वाला समेत कुछ छिटपुट प्लास्टिक की मड़ई लग चुकी थीं.

छलिया और बलुआ को अच्छी तरह से पता था कि जिस जरा सी जमीन पर उन दोनों ने कब्जा किया है, उस पर कोई कुछ नहीं कहेगा. वजह यह थी कि यह जमीन कम से कम 2000 वर्गगज तो थी ही, तो 150 वर्गगज में कोई बवाल किसलिए खड़ा करेगा. दूसरा, उन दोनों ने इस में धार्मिक प्रतीक लगा कर इसे संवेदनशील बना दिया था.

चारों तरफ के कब्जे को अच्छी तरह से देखते हुए बलुआ ने छलिया को बताया, ‘‘देखो, ये सब लोग फर्जी हैं, बनावटी हैं. इन सब को दिहाड़ी दे कर बिठाया गया है. जमीन का सौदा होते ही ये सब ऐसे गायब होंगे जैसे कि यहां थे ही नहीं,’’ कह कर वह खामोश हो गया.

‘‘तुम इन के बारे में इतना सब जानते हो?’’ छलिया ने हैरत से पूछ लिया, तो बलुआ बोला, ‘‘अरे हां, मैं तो इन के परिवारों को भी जानता हूं. आज 6 राजनीतिक दल हैं शहर में. ये लोग 300 रुपए रोज के हिसाब से सभी की रैली, प्रदर्शन, जुलूस, नारेबाजी में शामिल होते हैं. बाकी समय में ये लोग शादी में रोटियां बनाने का, लाइट उठाने का काम करते हैं.

‘‘एक और बात… सूने घरों की रेकी भी इन से कराई जाती है. एक रात की रेकी और पुख्ता जानकारी के 500 रुपए तक मिल जाते हैं इन को. छलिया, यह सब सच है. यह शहर इसी तरह इन को पाल रहा है.’’

वैसे छलिया को इस शहर के काफी सारे दबेछिपे रंग और काली करतूतें पहले से ही पता थीं, आज एक और जानकारी मिल गई थी. इस बीच कभीकभार वह थैले ले कर फेरी लगा लेता था. बस, 5 घंटे के दौरान ही वह दिन के 500 रुपए आराम से कमा लेता था, मगर छलिया को इतने से संतुष्टि कहां मिलने वाली थी.

उसे तो अपनी दोनों जेब लाखों रुपए से लबालब चाहिए थीं.

इसी बीच छलिया की पत्नी ने भी एकाध बार शिकायत कर दी थी कि कुछ दिन तो आराम करते हुए मजा आया, मगर अब तो गैस्ट हाउस में बैठेबैठे दम घुट रहा है. टैलीविजन भी कितना देखे. आंखें दुखने लग गई हैं.

तब छलिया ने पत्नी के लिए सिलाई मशीन खरीद दी. बेटे के लिए इतने खिलौने थे कि जरूरत से ज्यादा. वह इतना छोटा था कि अभी ढंग से बोल नहीं सकता था, शिकायत नहीं कर सकता था. छलिया ने पत्नी को भी सुनहरे सपने दिखा रखे थे.

कुछ दिन बाद बलुआ और छलिया को एक भूमाफिया मिल ही गया. नगरपालिका से नकली कागज और नक्शे निकलवाना उस के लिए बाएं हाथ का खेल था. उस ने चारों तरफ देखा. यह जमीन उस की जहरीली नजर से आज तक बच कर रह कैसे गई. वह हैरत में था.

बलुआ और छलिया की कब्जाई 150 गज जमीन की असली कीमत तो 60-70 लाख रुपए के आसपास थी, मगर उन को केवल 7 लाख रुपए नकद दे कर भूमाफिया ने उन को धमका कर, खबरदार भी कर दिया कि खयाल रहे, यह बात कहीं खुलनी नहीं चाहिए… बलुआ और छलिया ने वहीं के वहीं कसम खा ली.

छलिया ने सारी रकम बलुआ को थमा दी. बलुआ ने उस के हिस्से के रुपए से पगड़ी की रकम दे कर एक फ्लैट किराए पर दिला दिया. बचे रुपयों से घरगृहस्थी का जरूरी सामान आ गया.

छलिया की पत्नी को इस बात से कोई लेनादेना नहीं था कि अचानक इतने सारे रुपए किधर से और कैसे आ गए हैं. उसे तो अपना घर अच्छा लगा, चाहे वह किराए का ही था.

छलिया समझ गया कि अब पत्नी को सारा दिन बिजी रहने का काफी काम मिल गया है. अब वह आगे की खुराफात में लग गया.

छलिया ने एक साल के अंदर नशे के कारोबार में भी कुरियर बन कर लाखों रुपए के वारेन्यारे कर लिए थे. अब वह भी प्रोपर्टी डीलर बन गया था. बेटा अब 4 साल का था और नर्सरी स्कूल में जा रहा था. छलिया काले धंधे में रमने लगा था. अपने घर की कोई कहानी उसे पता नहीं थी.

एक दिन छलिया को किसी अनजान आदमी का फोन आया, ‘‘तुम बलुआ को समझाओ, वरना वह जेल जाएगा.’’

बलुआ ने ऐसी कौन सी चूक कर दी? छलिया तुरंत फोन करने वाले से मिलने गया.

फोन करने वाला एक दमदार पुलिस वाला था. उस को पक्की खबर मिली थी कि उस के थाने के तहत जो रंगोली कालोनी है, वहां बलुआ एक शादीशुदा औरत के साथ एक साल से गलत रिश्ता बनाए हुए है. उस औरत के पति ने रिपोर्ट दर्ज कराई है. एक वीडियो भेजा है, जिस में बलुआ और उस आदमी की पत्नी आपस में जिस्मानी रिश्ता बना रहे हैं.

वहां जा कर छलिया ने यह सब सुना, तो अपना पसीना पोंछ कर अपनी घबराहट को छिपाया. बलुआ को फोन लगाया, पर वह उठा ही नहीं रहा था. मन में कुछ शक पैदा हुआ. वह सीधा रंगोली कालोनी पहुंच गया. बलुआ वहीं मिल गया. एक औरत और बलुआ दोनों चाय पी रहे थे.

उस औरत ने बहुत ही बेढंगे कपड़े पहने हुए थे. बाल बिखरे हुए थे. बलुआ भी काफी थकाथका सा लग रहा था.

छलिया को अचानक देखा तो बलुआ कुछ झेंप गया. बहाना बना कर उस ने चाय जैसेतैसे गटक ली. कुछ पल ठहर कर वह चलता बना. छलिया से वह नजरें नहीं मिला पा रहा था और छलिया इस समय खुद भी उस से नजरें नहीं मिलाना चाहता था.

‘‘शरम नहीं आती. इतना अच्छा पति है, बालबच्चे हैं और उस पर यह करतूत?’’ छलिया ने फटकारा, तो वह औरत अपने जिस्म को हिलाडुला कर बोली, ‘‘प्यार में कैसी शरम?’’

‘‘अगर तेरे पति को बता दूं तो?’’ छलिया ने धमकाया.

‘‘तो मैं अभी आप से लिपट कर एक सैल्फी लूंगी. आप को अपराधी साबित कर दूंगी. फिर आप का दोस्त बलुआ ही आप का दुश्मन होगा. बहुत मजा आएगा.’’

छलिया को समझते देर न लगी कि यह बहुत ही शातिर औरत है. इस ने कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं. लगता है घाटघाट का पानी पी चुकी है, इसीलिए शरम तक नहीं है.

छलिया ने उस औरत को नमस्कार किया. उस के पास और भी काम थे. वह उठा और सीधा पुलिस वाले के पास गया. उस को 1,000 रुपए थमा कर कहा कि 2-4 दिन में सब ठीक हो जाएगा.

अब छलिया ने अपना काम किया. उस के पास सीधी उंगली से घी निकालने के अनेक रास्ते थे. सब से पहले उस ने बलुआ पर अपनी नाराजगी जाहिर तक न होने दी, मगर उस औरत के पति का सारा हिसाबकिताब पता लगाता रहा. वह हर महीने 7 दिन के दौरे पर बाहर जाता ही जाता था. छलिया ने पुलिस वाले को 2-3 हजार और टिका दिए. उस ने मुंह बंद रखा.

उधर बलुआ बहुत खुश था कि चलो सब ठीक है. उन दोनों का मिलना बदस्तूर जारी था. छलिया जानता था
कि ईमानदार पति किसी न किसी दिन कांड कर के ही छोड़ेगा. कुछ न कुछ तो करना ही था. इसी में छलिया की भी सुरक्षा थी.

अगर बलुआ गिरफ्तार होता तो छलिया के बचने की भी न के बराबर गुंजाइश थी. कुछ न कुछ ऐसा हो ही जाता कि छलिया को भी सलाखों के पीछे जाना होता.

अब छलिया ने अगला कदम यह उठाया कि इधर उस औरत का पति दौरे पर गया और उधर उस औरत के मासूम बालक का स्कूल के बाहर से अपहरण किया गया. फिरौती की रकम के तौर पर लाखों रुपए की मांग की गई और पति से यह अपहरण छिपाए रखने को भी कहा गया.

साथ ही, उस औरत के सारे फोन टेप कराए. उस औरत ने सीधे बलुआ से बात की और बलुआ ने छलिया से. हर तरह से कठपुतली की डोर अब छलिया के हाथ में ही थी.

उधर जैसे ही बलुआ से 2 लाख रुपए की मांग की, तो बलुआ ने उस से हमदर्दी जताने की जगह उस को खरीखोटी सुना दी. पिछले ही महीने महंगी दारू की शौकीन वह औरत 70 हजार की दारू बलुआ के रुपयों से गटक गई थी.

बलुआ ने अब उस से कन्नी काटने का संकल्प कर लिया था. छलिया ने उस के हावभाव पढ़ लिए थे. यही मौका था. छलिया ने अपनी पत्नी को फोन किया कि उस के दोस्त का जो बालक उस के घर पर रह रहा है, उस को तैयार कर के बाहर भेजो. उस के मातापिता लौट आए हैं.

छलिया की पत्नी ने बताया कि वह बालक तो यहां बहुत खुश है. उस को छलिया के बेटे के रूप में एक बड़ा भैया मिल गया है. खैर, बहुत ही होशियारी से उस मासूम को सकुशल घर भेज दिया गया.

अब तक बलुआ को खबर नहीं थी कि उस के पीछे क्या साजिश चल रही थी. छलिया ने शहर के बड़े साहब से मिल कर उस औरत के पति का तबादला करवा दिया. 10 दिन में कहीं दूरदराज तबादला भी हो गया था. सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी.

अब तो धंधेबाज छलिया इतने रुतबे वाला था कि दौलतमंद होने के साथसाथ सरकार में भी असर रखता था. 1-2 दिन बाद छलिया और बलुआ वापस अपने काले धंधे पर लग गए.

हैरानी की बात उस औरत के साथ थी. उस का साढ़े 3 साल का मासूम बालक उन लोगों की रहरह कर तारीफ करता था, जो उस का अपहरण कर के ले गए थे. उस घर में एक बड़ा भाई भी था, जो उसे गिनती और कविता सिखाता था. बगैर फिरौती के उस औरत के बेटे को 2-3 दिन में छोड़ दिया गया था.

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