Love Story, लेखक – शकील प्रेम
मेरी जेठानी गुलशन बहुत ही खूबसूरत थीं. 2 बच्चों की मां होने के बावजूद भी उन का रंगरूप ऐसा था कि कोई भी फिदा हो जाए. मैं ही क्या, रिश्तेदारी की ज्यादातर बहुएं उन से जलती थीं.
मेरे शौहर जुनैद और उन के बड़े भाई जावेद एक ही घर में रहते थे, लेकिन घर का बंटवारा हो चुका था. एक ही मकान के 2 हिस्से हो गए थे. एक तरफ मेरे जेठ रहते थे, तो वहीं दूसरी तरफ हम लोग. खाना अलगअलग बनता था, लेकिन बाकी चीजों में दोनों भाइयों की सांझा भागीदारी थी.
दोनों भाई अच्छी नौकरी में थे. बड़े भाई यानी मेरे जेठ जावेद अली मांबाप का खर्च उठाते थे, तो मेरे शौहर जुनैद पर मेरी ननद आएशा की पढ़ाई और उस की शादी की जिम्मेदारी थी. मेरी जेठानी गुलशन के दोनों बच्चे महंगे स्कूल में पढ़ते थे.
मेरी शादी को 5 साल हुए थे, लेकिन मेरे अभी कोई बच्चा नहीं हुआ था. इस के लिए मेरा इलाज चल रहा था. मैं ने पोस्ट ग्रेजुएशन की हुई थी. साथ ही, ब्यूटीशियन का एक साल का डिप्लोमा भी किया हुआ था.
मेरे शौहर जुनैद एक प्राइवेट बैंक में कैशियर की पोस्ट पर थे. शादी के बाद 6 महीने तक तो मैं ने कुछ नहीं किया, लेकिन जल्द ही मुझे एहसास हुआ कि घर में खाली पड़े रहना ठीक नहीं.
एक दिन मैं ने अपने शौहर जुनैद से कहा, ‘‘आप ड्यूटी पर चले जाते हैं, तो मैं दिनभर घर में रह कर बोर हो जाती हूं. हमारा जो बाहर वाला कमरा है, जिस में पहले आप के मम्मीपापा रहते थे. वे दोनों तो अब बड़े भैया के घर रहने चले गए हैं. कमरा बिलकुल खाली पड़ा है. वह कमरा बाहर सड़क से लगता है. मैं उस कमरे को दुकान के रूप में बदलने की सोच रही हूं, ताकि अपना ब्यूटीपार्लर खोल सकूं.’’
मेरे शौहर को भी मेरा यह आइडिया काफी पसंद आया और अगले ही दिन उन्होंने कमरे को दुकान में बदलने के लिए मजदूरों को काम पर लगा दिया.
2 हफ्तों के भीतर ही मेरी नई दुकान तैयार हो चुकी थी. मैं ने अपने शौहर से एक लाख रुपए लिए और दुकान में ब्यूटी का सारा सामान रख लिया.
कुछ ही समय में मेरी दुकान चलने लगी. अब पूरे दिन मैं अपनी दुकान संभालती और मेरी ननद आएशा भी मेरे साथ मेरा हाथ बंटाती.
मेरी जेठानी गुलशन को बननेसंवरने का खूब शौक था. मेरे ब्यूटीपार्लर से उन्हें बड़ा फायदा हुआ था. वे रोज ही दुकान पर आतीं और आएशा से अपना मेकअप करवा कर चली जातीं.
वैसे, मेरी जेठानी मुझ से ज्यादा खूबसूरत थीं, लेकिन मुझ से कम पढ़ीलिखी थीं. मैं अपनी जेठानी जितनी खूबसूरत तो नहीं थी, लेकिन मुझे इस बात की खुशी थी कि मैं अपनी जेठानी से ज्यादा पढ़ीलिखी थी.
मेरी जेठानी गुलशन की शादी को 10 साल बीत चुके थे. वे सब से यही कहती थीं कि जब वे 16 साल की थीं, तब उन की शादी हुई थी. इस हिसाब से मेरी जेठानी अभी केवल 26 साल की थीं. कई लोग तो उन की इस बात के झांसे में भी आ चुके थे, लेकिन मैं जानती थी कि मेरी जेठानी अपनी जिंदगी के कम से कम 10 साल छिपा रही हैं.
मेरी जेठानी गुलशन कुछ दिनों से फेसबुक पर बड़ी ऐक्टिव नजर आ रही थीं. उन का अकाउंट खंगाला तो मालूम हुआ कि वे गुलफाम के नाम से फेसबुक पर अभी हाल ही में ऐक्टिव हुई हैं.
मुझे शरारत करने की सूझी. अनवर के नाम से मैं ने अपनी एक फेक आईडी बनाई और जेठानी के फोटो पर लाइक और कमैंट करने लगी. इस तरह 2 महीने बीत गए.
जेठानी की फालतू शायरी को पसंद करने वाले लोगों में उन के मायके वालों के अलावा बस एक अनवर ही था और यह अनवर कोई और नहीं, बल्कि मैं थी.
2 महीने बाद एक दिन यों ही मैं ने जेठानी के मैसेंजर में जा कर लिख दिया, ‘गुलफामजी… आप का असली नाम गुलशन है. मैं आप को स्कूल के वक्त से जानता हूं. आप बहुत खूबसूरत हैं… मैं आप को दिल दे बैठा हूं… अगर आप को यह मैसेज अच्छा न लगे, तो आप मुझे ब्लौक कर दीजिएगा…’
इस मैसेज को मेरी जेठानी गुलशन ने पढ़ा, लेकिन रिप्लाई नहीं किया. मुझे लगा कि वे अनवर को यानी मुझे ब्लौक करेंगी, लेकिन 2 दिन बाद रिप्लाई आ गया. उन्होंने लिखा, ‘अनवरजी… आप को जान कर हैरानी होगी कि मैं शादीशुदा हूं और मेरे 2 बच्चे हैं.’
मैं ने भी अनवर की ओर से झट से रिप्लाई दे दिया. मैं ने लिखा, ‘मैं यह सब जानता हूं गुलशनजी, फिर भी आप से प्यार करता हूं. जरूरी नहीं कि आप भी मुझ से इश्क करें, लेकिन मैं तो आप को हमेशा चाहता रहूंगा.
‘हम दोनों हाईस्कूल में एकसाथ पढ़ते थे, तभी से मैं आप से प्यार करता हूं. आप मुझे नहीं जानती हैं, लेकिन मैं तो आप को पहचान गया था. आई लव यू गुलफामजी.’
इस मैसेज के बाद तो मुझे पक्का यकीन था कि मेरी जेठानी मुझे ब्लौक कर देंगी. लेकिन शाम को ही उन का रिप्लाई आया. उन्होंने लिखा, ‘मैं तो तुम्हें नहीं पहचान पा रही. हाईस्कूल के समय का अगर कोई फोटो हो, तो मुझे भेजो… शायद पहचान जाऊं.’
जेठानी के इस मैसेज के बाद मैं ने गूगल से किसी स्कूल की कुछ ग्रुप फोटो को ढूंढ़ा और जेठानी के इनबौक्स में सैंड करते हुए लिखा, ‘गुलशनजी, इन फोटो को देख कर याद करो. और अगर याद न आए तो मुझे भूल जाओ, लेकिन मैं तुम्हें कभी नहीं भूल पाऊंगा.’
शाम को जब मेरी जेठानी गुलशन मेकअप के लिए मेरी दुकान पर आईं, तो मैं ने उन से यों ही पूछा, ‘‘गुलशन बाजी, आजकल आप फेसबुक पर काफी ऐक्टिव नजर आ रही हैं. लगता है कि फेसबुक पर भी आप के दीवानों की कोई कमी नहीं है.’’
जेठानी गुलशन बोलीं, ‘‘बस यों ही खाली बैठ कर क्या करूं, तो फेसबुक पर ही थोड़ा समय दे देती हूं.’’
पूरे दिन मेरी ननद आएशा मेरे साथ मेरी दुकान पर ही रहती. आएशा का बौयफ्रैंड नौशाद जब भी उसे मिलने के लिए बुलाता, वह मुझे बता कर दुकान से निकल जाती.
दुकान खुलने के बाद से हम दोनों ननदभौजाई में काफी बनने लगी थी. मैं आएशा से अपने दिल की बातें शेयर करती, तो वह भी मुझे अपने इश्क की सारी बातें बताती.
आएशा और नौशाद की जोड़ी काफी अच्छी थी. जाति के अलावा दोनों की शादी में कोई अड़चन नहीं थी. मैं किसी तरह के जातिवाद को नहीं मानती थी. मेरे शौहर जुनैद को भी ये सब बातें फिजूल की लगती थीं, लेकिन बात जब आएशा की शादी की होती, तो मेरे जेठ समेत पूरे घर वालों के अंदर का जातिवाद जाग जाता.
बड़े भैया जावेद अली को अपने अशरफ मुसलमान होने का खासा गुरूर था. जेठानी गुलशन भी अपनी ऊंची जाति पर घमंड रखती थीं. समस्या यह थी कि आएशा का बौयफैं्रड नौशाद जाति से पसमांदा था.
एक दिन नौशाद कुछ किताबें देने के बहाने घर आया हुआ था और मेरी जेठानी ने नौशाद को आएशा के साथ घर में देख लिया था. नौशाद की जाति के बारे में जान कर गुलशन आगबबूला हो गई थीं और नौशाद को बेइज्जत कर घर से निकाल दिया था.
अगले दिन मैं अपनी दुकान पर एक महिला कस्टमर की थ्रैडिंग में लगी थी कि इनबौक्स में जेठानी का मैसेज देखा और मैं सामने बैठी महिला की थ्रैडिंग छोड़ कर जेठानी का मैसेज खोल कर पढ़ने लगी.
जेठानी गुलशन ने लिखा था, ‘अनवर, हाईस्कूल का फोटो देख कर मैं तुम्हें पहचान गई. आजकल क्या कर रहे हो?’
मैं ने रिप्लाई किया, ‘गुलशनजी, आजकल मैं दिल्ली में ही हूं. यहीं नौकरी कर रहा हूं और मुझे पता है कि आप भी द्वारका में ही रहती हैं. मैं ने भी आप के नजदीक ही फ्लैट लिया हुआ है. चाहो तो कल शाम को हम द्वारका सैक्टर 9 के पार्क में मिल सकते हैं.’
मैसेज के सैंड होने तक सामने बैठी महिला की आवाज मेरे कानों में आई, ‘‘मुझे जल्दी है. शाम को हमें शादी में जाना है.’’
मैं ने तुरंत फेसबुक बंद किया और अपने काम में लग गई.
थोड़ी देर में जेठानी का रिप्लाई आया कि कल शाम को वे सैक्टर 9 के पार्क में पहुंच जाएंगी.
अपने ब्यूटीपार्लर से थोड़ी फुरसत निकाल कर मैं बहाने से गुलशन के घर में गई, ताकि उन के चेहरे पर अनवर से इश्क की खुमारी को देख सकूं.
जेठानी अपने किचन में थीं. मैं ने कहा, ‘‘बाजी, आप के फ्रिज में दही हो, तो थोड़ी सी दो, मुझे दही की जरूरत है.’’
उन्होंने कहा, ‘‘फ्रिज में दही पड़ी होगी, निकाल लो.’’
फ्रिज से दही निकालते हुए मैं बोली, ‘‘कल फेसबुक पर जो आप ने अपना फोटो डाला है न. गजब लग रही हैं आप. मैं ने उस लाइक भी किया है.’’
मेरे मुंह से अपनी तारीफ सुन कर जेठानी मुसकरा दीं और बोलीं, ‘‘मैं आजकल थोड़ी मोटी हो गई हूं. मेरा मोटापा फोटो में साफ झलक रहा है.’’
मैं बोली, ‘‘अरे, नहीं दीदी. आप के जैसी फिगर तो हीरोइनों की भी नहीं है.’’
यह सुन कर गुलशन और जोर से मुसकरा दीं और बोलीं, ‘‘अरे, नहीं रेहाना. थोड़ी सी तो मोटी हो गई हूं, इसलिए सोच रही हूं कि कल शाम को तुम से थ्रैडिंग करवाने के बाद जौगिंग पर निकलूं. द्वारका सैक्टर 9 वाला पार्क यहां से कितनी दूर है?’’
जेठानी के मुंह से यह सुन कर मैं हैरान रह गई. मैं ने कहा, ‘‘नजदीक ही है. बाहर से बैटरी वाला रिकशा पकड़ लेना, 10 रुपए लेगा और द्वारका सैक्टर 9 के पार्क पर छोड़ देगा.
‘‘ऐसा करना, जब आप निकलो तो मुझे भी बता देना. मैं भी आप के साथ जौगिंग पर चलूंगी. तब तक आएशा दुकान संभाल लेगी.’’
जेठानी ने कहा, ‘‘मैं कल शाम को अकेली जा कर पहले पार्क का मुआयना कर आती हूं रेहाना. उस के अगले दिन से हम दोनों साथ चलेंगे…’’
जेठानी की बातों से मैं समझ गई थी कि मेरा तीर बिलकुल सही निशाने पर लगा है. मैं अपने घर पर लौट आई और सीधे दुकान पर गई, तो वहां आएशा एक औरत का मेकअप कर रही थी.
रात के 9 बज चुके थे और मेरे शौहर भी घर आ चुके थे, इसलिए मैं ने आएशा से दुकान बंद करने को कहा और अपने कमरे में आ गई, जहां मेरे शौहर रात का खाना खाने बैठ चुके थे.
मुझे कमरे में देखते ही उन्होंने कहा, ‘‘आएशा की शादी के लिए भैया ने अपनी कंपनी के मैनेजर से बात की है. उन के मैनेजर का एक बेटा अनवर है, जो बैंगलुरु में रहता है और अनवर इस वक्त दिल्ली आया हुआ है.’’
आएशा दुकान बंद कर अपने कमरे की ओर जा ही रही थी कि उस ने अपने भैया की बात सुन ली और यह सुन कर उस के कान खड़े हो गए. वह मेरे कमरे में आई और मेरी ओर देखने लगी.
‘‘मैं ने अपने शौहर जुनैद से कहा, ‘‘आएशा की शादी के लिए भैया को इतनी जल्दी क्यों है? अभी वह पढ़ रही है, साथ ही मेरे साथ ब्यूटीशियन का काम भी सीख रही है. फिर आएशा की शादी की जिम्मेदारी तो हमारे जिम्मे है, वे क्यों इतना टैंशन लेते हैं?
‘‘शादी का खर्च हमारे जिम्मे है, इस का यह मतलब नहीं कि भैया आएशा की शादी के बारे में न सोचें… आएशा उन की भी बहन है… भैया को लगता है कि आएशा की जल्द शादी न हुई तो…’’
मैं अपने शौहर की बात को बीच में ही काटते हुए बोल पड़ी, ‘‘तो वह भाग जाएगी और भैया की नाक कट जाएगी… यही न…’’
तभी आएशा अपने भैया के करीब आ गई और बोली, ‘‘भैया, आप बड़े भैया को किसी तरह समझा दीजिए… बड़े भैया को अपनी इज्जत की ज्यादा फिक्र है न… तो आप से वादा कर रही हूं कि मैं किसी के साथ भाग कर शादी नहीं करूंगी… लेकिन, मेरा रिश्ता कहीं और होगा, तो मेरी जिंदगी बरबाद हो जाएगी.’’
जुनैद ने अपनी छोटी बहन की बात सुन कर उसे प्यार से समझाते हुए कहा, ‘‘तू क्यों टैंशन ले रही है… तेरी शादी नौशाद से ही होगी… तू नौशाद से बोल कि वह अपने घर वालों को राजी करे.’’
आएशा बोली, ‘‘नौशाद और उस के घर वाले तो हमारी शादी के लिए कब से तैयार बैठे हैं… वे तो जब आप लोग कहेंगे, तब रिश्ता ले कर यहां पहुंच जाएंगे.’’
अगले दिन रविवार होने की वजह से दोनों भाइयों की छुट्टी थी. सुबहसुबह ही मेरे जेठ और मेरी जेठानी दोनों मेरे घर आ गए और आएशा के रिश्ते के बारे में बताने लगे.
जेठ बोले, ‘‘अनवर बहुत अच्छा लड़का है. मेरे मैनेजर का एकलौता बेटा है वह… बैंगलुरु में रहता है और एक अच्छी कंपनी में है… अभी वह दिल्ली आया हुआ है… आज दोपहर तक मैनेजर बाबू अपनी बीवी और बेटे अनवर के साथ आएशा को देखने के लिए यहां आ रहे हैं…
‘‘मेरे घर में ही उन लोगों की खातिरदारी का इंतजाम हो जाएगा… जब वे लोग आ जाएंगे, तो तुम दोनों मियांबीवी आएशा को ले कर मेरे घर ही आ जाना.’’
आएशा ने जब यह सुना, तो उस का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. वह अपने कमरे में जा कर रोने लगी. मैं उसे समझाने उस के कमरे में गई और बोली, ‘‘आएशा, तू अपनी भाभी पर भरोसा कर. तेरी शादी नौशाद से ही होगी.’’
आएशा रोते हुए बोली, ‘‘लेकिन, कैसे भाभी…? बड़े भैया तो अनवर से मेरी शादी तय कर रहे हैं. दुनिया में ऐसा कोई नहीं है, जो बड़े भैया को समझा सके.’’
मैं ने आएशा के ऊपर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘एक आदमी है, जो तुम्हारे भैया को समझा सकता है.’’
आएशा बोली, ‘‘कौन…?’’
मैं बोली, ‘‘तुम्हारी बड़ी भाभी गुलशन…’’
आएशा ने कहा, ‘‘लेकिन, गुलशन भाभी खुद ही घोर जातिवादी हैं. वे कहती हैं कि अपने से नीची जाति में शादी करने वाले की औलादें दोजख में जाती हैं. वे कैसे नौशाद से मेरी शादी के लिए राजी होंगी…? आप भूल गईं कि उस दिन कितना ड्रामा किया था बड़ी भाभी ने…’’
मैं ने कहा, ‘‘तुम अपने दिमाग पर ज्यादा जोर मत दो. सब मुझ पर छोड़ दो और बड़े भैया के घर जाने के लिए तैयार हो जाओ.’’
आएशा को मुझ पर पूरा भरोसा था, इसलिए वह बड़े भैया के घर जाने के लिए राजी हो गई. बड़े भैया के मैनेजर दोस्त के लड़के का नाम भी अनवर था, यह जान कर मेरे शैतानी दिमाग में एक जबरदस्त आइडिया घूमने लगा.
मैं ने अपनी जेठानी को मैसेज टाइप किया, ‘गुलशनजी, कल शाम पार्क का प्लान कैंसिल समझिए, क्योंकि मुझे अपने मांबाप के साथ द्वारका सैक्टर 2 में लड़की देखने जाना है, वहीं शाम हो जाएगी.’
इस मैसेज के सैंड होने के बाद जेठानी का तुरंत रिप्लाई आया, ‘द्वारका सैक्टर 2 में आप किस के यहां जा रहे हैं?’
मैं ने लिखा, ‘जावेद अली के यहां.’
जेठानी ने लिखा, ‘जावेद अली तो मेरे हसबैंड हैं… दरअसल, आप मेरी ननद आएशा को देखने आ रहे हैं.’
मैं ने अनवर बन कर लिखा, ‘ओह… गुलशनजी… असल में मैं कहीं शादी करना नहीं चाहता, क्योंकि मैं सिर्फ आप से प्यार करता हूं, लेकिन क्या करूं? यह बात मैं अपने पेरेंट्स को कैसे समझाऊं? घर वाले जबरदस्ती मुझे लड़की देखने ले जा रहे हैं…
‘देखिए, मैं आप की ननद से शादी नहीं कर सकता. कल दोपहर आप के घर आऊंगा जरूर. इसी बहाने आप के दीदार भी हो जाएंगे…’
जेठानी गुलशन ने लिखा, ‘आएशा मेरे जितनी खूबसूरत तो नहीं है, लेकिन बहुत ही अच्छी लड़की है. चाहो तो उसे पसंद कर लेना.’
मैं ने लिखा, ‘मैं आप के अलावा किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकता… जो आप ने कल फेसबुक पर फोटो डाला था न… हो सके तो कल वही पीली वाली साड़ी पहन लेना.’
दोपहर तक आएशा और मैं तैयार हो कर बगल में जेठानी के घर पहुंच चुके थे. मेरी जेठानी ने पीली साड़ी पहनी हुई थी, जिस में वे बड़ी खूबसूरत लग रही थीं.
थोड़ी देर में ही घर के बाहर एक कार आ कर रुकी. उस में एक जवान लड़के के साथ 2-3 लोग और थे. वे अनवर और उस के मम्मीपापा थे.
अनवर काफी हैंडसम लग रहा था. अनवर को देखते ही मेरी जेठानी मचलने लगीं. किसी न किसी बहाने बारबार वे अनवर के सामने जातीं. मेरे सासससुर, जेठ और मेरे पति ड्राइंगरूम में बैठे हुए थे. अनवर के मम्मीपापा भी सामने ही बैठे थे.
थोड़ी देर में मेरी जेठानी भी अनवर के बिलकुल सामने बैठ गईं. मेहमानों की खातिरदारी अब मेरी और आएशा की जिम्मेदारी थी.
मेरे सासससुर को अनवर पसंद आया और अनवर के घर वालों को भी आएशा पसंद आ गई. लड़के वालों ने मेरे जेठ से कुछ वक्त मांगा और सभी विदा होने लगे. जेठानी तो अनवर के इर्दगिर्द से हट ही नहीं रही थीं.
सभी के चले जाने के बाद घर में देर तक अनवर और उस के परिवार वालों की बातें होती रहीं. मेरे जेठ तो अनवर के परिवार की तहजीब की बड़ाई करते थक नहीं रहे थे. लेकिन जेठानी खामोश थीं. वे न जाने किन खयालों में खोई हुई थीं. शायद इश्क का बुखार कुछ ज्यादा ही चढ़ गया था उन पर.
मैं वाशरूम में गई और जेठानी को एक मैसेज टाइप करते हुए लिखा, ‘गुलशन, मेरी जान… तुम तो गजब लग रही थी आज… तुम्हें देखने के बाद से मैं तो पागल हो गया हूं… मेरे घर वालों को आएशा पसंद है… इस वक्त कार में बैठे मेरे मम्मीपापा तुम्हारे घर के बड़प्पन की ही बातें कर रहे हैं…
‘मैं आप के प्यार में इस कदर डूब चुका हूं कि आप मुझे हर जगह पीली साड़ी में नजर आ रही हैं… ऐसा कुछ कीजिए न कि यह शादी न हो पाए. आई लव यू.’
जेठानी को मैसेज टाइप कर मैं ड्राइंगरूम में आई, तो जेठानी अपने चेहरे पर मुहब्बत की ताजगी लिए अनवर के मैसेज में गुम थीं.
मैं ने जेठानी से पूछा, ‘‘दीदी, आप को लड़का कैसा लगा?’’
वे बोलीं, ‘‘मैं क्या बोलूं? कुछ कहूंगी, तो तुम्हारे जेठजी को मिर्ची लग जाएगी.’’
वहीं बैठे जेठजी बोले, ‘‘अरे, बोलो गुलशन… तुम्हें यह रिश्ता पसंद नहीं आया क्या?’’
मेरी जेठानी बोलीं, ‘‘रिश्ते में कोई कमी नहीं है, लेकिन कभी आप ने आएशा के मन की बात जानने की कोशिश की है…? वह नौशाद से प्यार करती है… नौशाद हमारी आएशा के लिए एकदम अच्छा लड़का है… मैं तो मिली भी हूं उस से… लेकिन, तुम्हारे सिर पर जातिवाद का भूत चढ़ा है, इसलिए इतने अच्छे लड़के को तुम नकार रहे हो…’’
मेरी जेठानी के मुंह से ऐसी बातें सुन कर मेरे शौहर जुनैद तो हैरान थे ही, आएशा उन से ज्यादा हैरान थी. वह अपनी बड़ी भाभी का यह रूप देख कर हैरानी भरी मुसकान के साथ मेरी ओर देखने लगी.
मेरे सासससुर भी मेरी जेठानी की बातों से सहमत नजर आने लगे थे. कुछ ही देर में मेरी सास अपनी जगह से उठीं और अपने बड़े बेटे के हाथों को पकड़ कर बोलीं, ‘‘आएशा के लिए नौशाद ही बेहतर रहेगा बेटा… जिद छोड़ दे… और नौशाद से ही इस का रिश्ता पक्का कर दे.’’
थोड़ी देर सोचने के बाद भैया बोले, ‘‘जब घर में सभी की राय एक है, तो फिर मैं ही तहजीब का बोझ क्यों ढोता फिरूं?
‘‘आएशा, तू अगले संडे नौशाद के घर वालों को आने के लिए बोल दे… मैं अपने मैनेजर दोस्त को समझा दूंगा कि वह अनवर के लिए कोई दूसरी लड़की ढूंढ़ ले.’’
खुशीखुशी हम तीनों अपने घर लौट आए. घर आते ही आएशा मुझ से लिपट गई और बोली, ‘‘भाभी, तुम ने बड़ी भाभी गुलशन पर ऐसा कौन सा जादू कर दिया था कि उन के अंदर का जातिवादी जहर गायब हो गया? उन के मुंह से ऐसी बातें सुन कर मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है.’’
मैं मुसकराते हुए बोली, ‘‘आएशा, तुम्हें यह जानने की जरूरत नहीं है… अपने कमरे में जाओ और नौशाद को खुशखबरी दे दो.’’
अगले दिन सुबहसुबह मोबाइल देखा, तो जेठानी के ढेर सारे मैसेज से इनबौक्स भरा हुआ था. आखिरी मैसेज रात के ढाई बजे का था. अनवर की मुहब्बत में डूबी मेरी जेठानी की रातों की नींद गायब हो चुकी थी.
रात ढाई बजे वाले आखिरी मैसेज में जेठानी ने अपनी मुहब्बत का इजहार करते हुए एक घिसापिटा सा शेर लिखा था :
‘हसीन ख्वाब से सोहबत हो गई है,
मुझे भी तुम से मुहब्बत हो गई है.
सुबह जब उठो तो रिप्लाई देना,
तुम से मिलने की हसरत हो गई है.’
मैं ने अनवर की ओर से रिप्लाई दिया, ‘गुलशन, मेरी जान… तुम्हारा मैसेज पढ़ कर मैं कितना खुश हूं, बता नहीं सकता… बस आज शाम तक का इंतजार करो… आज मुझे फिर एक जगह लड़की देखने जाना है… वहां से लौटते ही मैं तुम्हें मिलने की जगह बताऊंगा.’
जेठानी ने झट से रिप्लाई किया, ‘अब फिर से लड़की देखने क्यों जा रहे हो? मुझे अपना फोन नंबर दो…’
मैं ने लिखा, ‘शाम को मिलेंगे, तो सारी बात बता दूंगा…’
इस मैसेज को टाइप करने के बाद मैं बारबार जेठानी के यहां मुहब्बत में उन की बेकरारी का दीदार करने पहुंच जाती. वे मुझे मोबाइल में ही घुसी हुई मिलती थीं. उन्होंने पूरे दिन अनवर यानी मुझे मैसेज किया, लेकिन मैं ने कोई रिप्लाई नहीं किया… शाम हुई, तो जेठानी पीली साड़ी में सजधज कर तैयार हो चुकी थीं.
मैं उन के पास गई और बोली, ‘‘बाजी, कहीं जाने का इरादा है क्या आज?’’
वे बोलीं, ‘‘हां, बाजार तक जा रही हूं… संडे को नौशाद के घर वाले आएंगे, तो उन्हें देने के लिए कुछ शगुन वगैरह तो चाहिए ही न…’’
मैं ने कहा, ‘‘मैं भी आप के साथ चलूं क्या?’’
वे बोलीं, ‘‘आज नहीं… कल फिर जाऊंगी, तो तुम्हें ले चलूंगी…’’
जेठानी अपने उस आशिक का इंतजार कर रही थीं, जो असल में कहीं था ही नहीं. अब जेठानी के दिमाग पर चढ़े इश्क के भूत को उतारने का समय आ गया था. मैं अपने घर आई और मैं ने मैसेंजर औन किया, जो जेठानी के बेचैनी भरे मैसेज से भरा हुआ था.
मैं ने लिखा, ‘मिलने का प्लान फिर से कैंसिल…’
जेठानी ने तुरंत रिप्लाई किया, ‘क्यों, क्या हुआ? तुम घर नहीं पहुंचे क्या अभी तक?’
मैं ने लिखा, ‘मैं जो आज लड़की देख कर आ रहा हूं, वह मुझे भा गई है… पीली साड़ी में वह क्या मस्त लग रही थी… मैं तो पहली नजर में उसे देखते ही अपना दिल गंवा बैठा गुलशनजी… आज शाम को मैं उसी से मिलने जा रहा हूं… आप को जान कर हैरानी होगी कि उस लड़की का नाम भी गुलशन है… आई लव यू गुलशन…’
तुरंत ही रिप्लाई आया, ‘मेरी मुहब्बत का क्या होगा अनवर… तुम ने मुझे बहुत बड़ा धोखा दिया है…’
मैं ने लिखा, ‘तुम बहुत मोटी हो… जौगिंग करो और फिट हो जाओ… पीली साड़ी में तुम सरसों के खेत में खड़ी भैंस लगती हो… यह उम्र बच्चों को संभालने की है… इतने अच्छे हसबैंड के होते हुए इधरउधर मुंह मारना अच्छी बात नहीं है… बच्चों को पढ़ने दो और उन्हें इश्क करने दो… शायद, अब मैं तुम्हें कभी न मिलूं… अपना खयाल रखना गुलशनजी…’
यह मैसेज टाइप करने के आधे घंटे बाद मैं जेठानी गुलशन के पास गई… देखा तो हालात बदल चुके थे. इश्क का भूत पूरी तरह उतर चुका था.
जेठानी पहले की तरह सूटसलवार में थीं और सिर पर हाथ रखे हुए सोफे पर बैठी थीं. मेरे वहां जाते ही जेठानी ने मुझ से कहा, ‘‘फेसबुक डिलीट करना है. कैसे होगा?’’
मैं ने कहा, ‘‘क्यों बाजी? फेसबुक से तो आप को बड़ा प्यार था. अब क्या हुआ?’’
जेठानी गुलशन गुस्से में बोलीं, ‘‘यह प्यारव्यार कुछ नहीं होता रेहाना… सब फालतू की बातें हैं… धोखेबाजों की इस दुनिया में अपना घरपरिवार ही सब से बड़ी चीज होती है… फेसबुक पर समय खराब करने से अच्छा है कि मैं अपने परिवार को वक्त दूं.’’