News Story : मनोहर दिल्ली की एक झुग्गी बस्ती में रहता था. 2 साल पहले उस की शादी सांवरी से हुई थी. नाम की सांवरी देखने में बहुत खूबसूरत और गोरी थी. वह पतली देह की बड़ी कमेरी औरत थी और मनोहर से बहुत प्यार करती थी.
शादी के 2-3 महीने तो बड़े अच्छे बीते, पर जब मनोहर ने अपना असली रंग दिखाया, तो सांवरी की जिंदगी ही बदरंग हो गई.
मनोहर को शराब पीने की लत थी. कहने को वह ईरिकशा चलाता था, पर उस का ध्यान घरगृहस्थी से ज्यादा अपने पीने की लत पर रहता था. अंटी में थोड़े पैसे आए नहीं कि वह सीधा देशी शराब के ठेके पर जा कर अद्धा खरीद लेता था और दिन में ही शराब पीना शुरू कर देता था.
एक दिन सांवरी ने उसे टोका भी था, ‘‘आप रोजरोज शराब मत पिया करो. फिर आप जानवर बन जाते हो. आप की सारी कमाई यह शराब चूस जाती है.’’
‘‘अब तू मुझे दुनियादारी सिखाएगी. औरत जात है तो ज्यादा सिर पर मत चढ़. मेरी कमाई, मैं जो चाहे करूं, तू कौन होती है दखल देने वाली,’’ मनोहर सांवरी पर चिल्लाया था.
सांवरी समझ गई कि मनोहर नहीं सुनेगा. उस ने अपना टाइमपास करने के लिए पास की सोसाइटी में बरतन मांजने का काम शुरू कर दिया.
पर सांवरी की मेहनत तब बेकार हो जाती, जब मनोहर उस की कमाई भी हथिया लेता था. टोकने पर उस की जम कर पिटाई भी करता था.
जिस सोसाइटी में सांवरी बरतन मांजने जाती थी, वहां महेश नाम का एक सिक्योरिटी गार्ड था, जो सांवरी को बहुत पसंद करता था. महेश की अभी शादी नहीं हुई थी. वह उसी सोसाइटी के पीछे बने गार्डरूम में रहता था.
एक दिन जब सांवरी सोसाइटी में आई, तब महेश की ड्यूटी मेन गेट पर ही थी. जब सांवरी ऐंट्री कर रही थी, तब महेश ने उस का मुरझाया चेहरा देख कर पूछ ही लिया, ‘‘क्या हुआ सांवरी? घर पर सब ठीक…?’’
सांवरी को महेश में अपना हमदर्द नजर आया. उस ने कहा, ‘‘अब क्या बताऊं महेश बाबू, मेरी तो जिंदगी ही नरक हो गई है.’’
‘‘क्या हुआ?’’ महेश ने पूछा.
‘‘अभी जल्दी में हूं. बाद में बताती हूं,’’ सांवरी बोली.
‘‘जब तू दोपहर को बाहर जाएगी, तो उस से पहले मेरे कमरे पर आ जाना. करते हैं आराम से बात,’’ महेश बोला.
सांवरी मुसकरा कर चली गई.
दोपहर को सोसाइटी में लोग अपने घरों में ही रहते थे. सांवरी अपना काम खत्म कर के सीधा महेश के कमरे में चली गई.
महेश चाय बना रहा था. सांवरी को देखते ही वह बोला, ‘‘आओ, मैं हम दोनों के लिए चाय बना रहा था.’’
सांवरी एक स्टूल पर बैठ गई. महेश ने उसे पानी दिया और चाय के साथ खाने के लिए बिसकुट का एक छोटा पैकेट खोल दिया.
चाय पीते हुए महेश ने सांवरी की आंखों में देखते हुए पूछा, ‘‘अब बताओ कि क्या बात है?’’
सांवरी आह भरते हुए बोली, ‘‘इस शराब ने मेरी जिंदगी का बेड़ा गर्क कर दिया है. मनोहर रोज शराब पीता है और टोकने पर मुझे मारता है,’’ इतना कह कर सांवरी ने अपनी साड़ी का पल्लू हटा कर महेश को मनोहर के दिए जख्म दिखाए.
सांवरी की गोरी पीठ पर नील पड़ा हुआ था. देख कर महेश की रूह कांप गई. वह उठा और अपनी अटैची से एक मरहम निकाल कर सांवरी के नील पर मलने लगा.
पहले तो सांवरी डर के मारे पीछे को हट गई, पर महेश ने उस का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘आज मत रोकना. अपने जख्मों पर मुझे मरहम लगाने दो.’’
सांवरी की आंखों में आंसू आ गए. वह कुछ नहीं बोली. महेश बड़े इतमीनान से सांवरी की पीठ सहलाता हुआ मरहम लगा रहा था. सांवरी का बदन गरम होने लगा. उस ने महेश का एक हाथ कस कर पकड़ लिया.
महेश ने मरहम लगा कर सांवरी के चेहरे पर नजर डाली. सांवरी ने आंखें बंद कर लीं. महेश ने उस के होंठ चूम लिए. सांवरी की सांसें तेज हो गईं.
महेश सांवरी को अपने बिस्तर पर ले गया और उसे देह सुख दिया. आज कई महीनों के बाद सांवरी को मर्द का प्यार मिला था. उस ने महेश को कस कर जकड़ लिया.
इस के बाद जब भी मौका मिलता, महेश सांवरी के जिस्म और मन पर पड़े नील पर अपने प्यार की मरहम लगाने लगा.
इसी बीच मनोहर को शराब पीने के साथसाथ जुआ खेलने की भी आदत पड़ गई थी. एक रात वह नशे में चूर हो कर घर आया और आते ही सांवरी पर बरस गया, ‘‘तेरा पति एकएक पाई को मुहताज है और तुझे जरा सा भी फर्क नहीं पड़ता. कैसी जोरू है तू, जिसे अपने मर्द की जरा सी भी परवाह नहीं है.
‘‘मेरे ऊपर 15,000 रुपए का कर्ज चढ़ गया है. सोचा था, जुए में लंबा हाथ मारूंगा, पर मैं तो अपना ईरिकशा ही गिरवी रख आया. अगर पैसे नहीं चुकाए, तो सब बरबाद हो जाएगा.’’
इतना सुनते ही सांवरी ने अपना माथा पकड़ लिया. उसे लगा कि आज तो उस की जिंदगी ही तबाह हो गई है. फिर भी उस ने मनोहर को समझाया, ‘‘चिंता मत करो. मैं कुछ सोचती हूं.’’
मनोहर नशे में भूल गया था कि सांवरी उस की ब्याहता है. वह अपनी मर्दानगी पर चोट समझ कर बोला, ‘‘अब तू मेरा कर्ज उतारेगी… किस का बिस्तर गरम कर के पैसे लाएगी… बता?’’
सांवरी को उम्मीद नहीं थी कि मनोहर ऐसी बात करेगा. उसे महेश याद आ गया, जो उस की जरूरत पूरी करता था. उसे इनसान समझता था और उस के प्यार की कदर करता था.
अगले दिन सांवरी जब महेश से मिली, तो उस के सीने से लग कर रोने लगी और बोली, ‘‘मुझे 15,000 रुपए चाहिए. मैं कुछ भी करने को तैयार हूं. बताओ, किस घर में चोरी करूं या डाका डालूं…’’
महेश ने सांवरी के होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उसे बिस्तर पर ले गया. आज महेश ने सांवरी को जीभर कर प्यार किया. उस का अंगअंग चूम लिया. सांवरी ने भी महेश का खूब साथ दिया और अपने जिस्म की प्यास बुझाई.
जब वे दोनों निढाल हो कर बिस्तर पर पड़े थे, तब सांवरी बोली, ‘‘तेरे पास बीड़ी है? बड़ा मन है पीने का.’’
महेश ने एक बीड़ी सुलगा कर सांवरी को दे दी और सारी बात जान कर बोला, ‘‘तुम इतने कम समय में रुपयों का इंतजाम कैसे करोगी? मेरे पास भी ज्यादा पैसे नहीं है.’’
सांवरी ने कहा, ‘‘क्यों न किसी का बच्चा चुरा कर बेच दें. ढेर सारे पैसे मिल जाएंगे. फिर मेरी नरक जैसी जिंदगी में सुख ही सुख होगा.’’
‘‘कैसे भला? तुम किसी मासूम की जिंदगी क्यों खराब करना चाहती हो?’’ महेश ने पूछा.
‘‘मैं ने ठान लिया है. जल्दी ही मैं किसी का बच्चा चुरा कर पैसे का जुगाड़ कर लूंगी.’’
‘‘तुझे जरा भी फर्क नहीं पड़ेगा?’’ महेश ने हैरान हो कर पूछा.
बीड़ी पीती सांवरी ने कहा, ‘‘मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. मेरा पति शराबी है. रोज शराब के लिए पैसे मांगता है. न दूं, तो देह तोड़ देता है. हमारे देश में इतनी गरीबी और आबादी है कि हर किसी भिखारी का बच्चा चोरी हो जाए, तो पुलिस के पास टाइम नहीं है कि उसे ढूंढ़े.
‘‘मांबाप भी थोड़े दिन रो कर दिल को तसल्ली दे लेते हैं कि बच्चा जिंदा तो है. अगर किसी सही आदमी के पल्ले पड़ गया तो उस की जिंदगी बन जाएगी. हमारे साथ अगर वह रहता तो नशेड़ी या चोरउचक्का ही बनता.’’
महेश ने कहा, ‘‘सांवरी, किसी का बच्चा चुराना कोई हंसीखेल नहीं है. अभी हाल ही में पुलिस ने बच्चे उठाने वाले गिरोह को पकड़ा है. ये लोग तो पूरी रेकी कर के बच्चा उठाते हैं. तू तो पहली बार ऐसा करने की सोच रही है. अपने पति की शराब पीने की लत और मार से बचने के लिए कोई भी ऐसा कदम मत उठाना कि तुम्हें लेने के देने पड़ जाएं.’’
‘‘किस गिरोह की बात कर रहा है तू?’’ सांवरी ने हैरान हो कर पूछा.
‘‘अरे, दिल्ली में पुलिस ने हाल ही में बाल तस्करी के एक बड़े गिरोह का भंडाफोड़ किया है.’’
‘‘क्या है पूरी खबर?’’ सांवरी ने जानना चाहा.
‘‘मैं ने आज सुबह ही अखबार में पढ़ा था कि पुलिस ने 2 बच्चा तस्करों को गिरफ्तार करते हुए 2 बच्चों को बचा लिया. इस गिरोह का परदाफाश होने की वजह से बच्चा चोरी के 3 मामले सुलझा लिए गए, जिसे साल 2023 से साल 2025 के बीच दर्ज किया गया था.
‘‘इस गिरोह के लोग गोद लेने के बहाने बेऔलाद जोड़ों को तस्करी किए गए बच्चों की सप्लाई कर रहे थे. पुलिस उपायुक्त (रेलवे) केपीएस मल्होत्रा ने बताया कि पिछले साल 17 अक्तूबर को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर बच्चा चोरी का एक केस दर्ज होने के बाद जांच शुरू की गई थी.
‘‘एक औरत ने शिकायत दर्ज कराई थी कि उस के ढाई साल के बेटे का उस समय अपहरण कर लिया गया, जब वह स्टेशन के मेन हाल में सो रही थी. जांच के दौरान सीसीटीवी में एक औरत बच्चे को आटोरिकशा में ले जाती हुई दिखाई दी.’’
‘‘आगे क्या हुआ?’’ सांवरी ने पूछा.
‘‘इस के बाद पुलिस महकमे की अलगअलग टीमों ने आटोरिकशा ड्राइवर का पता लगाया. उस ने पूछताछ के दौरान पक्का किया कि उस ने संदिग्ध को बदरपुरफरीदाबाद टोल गेट के पास छोड़ा था.
‘‘इस केस की जांच करते समय पुलिस को यह भी पता चला कि 31 जुलाई को रेलवे स्टेशन पर टिकट काउंटर के हाल से एक और औरत के 3 साल के बेटे का अपहरण कर लिया गया था. उस केस की जांच के दौरान भी चोरी का एकजैसा पैटर्न दिखा था.
‘‘पुलिस को पता चला कि उसी औरत ने बच्चे का अपहरण किया और उसी जगह पर आटोरिकशा में भाग गई. 21 जनवरी को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर एक और अपहरण की सूचना मिली. एक औरत के 4 महीने के नवजात को फूड कोर्ट वेटिंग हाल से अपहरण कर लिया गया था.
‘‘जांच के तहत 3 एकजैसे मामलों के साथ पुलिस ने एक टीम बनाई और बड़े पैमाने पर बचाव अभियान शुरू कर दिया.’’
‘‘क्या किया था पुलिस ने?’’ सांवरी ने पूछा.
‘‘पुलिस ने 700 सीसीटीवी कैमरों के फुटेज की जांच की और फोन ट्रैकिंग डाटा के साथ संदिग्ध की गतिविधियों को मैप किया. इस मामले में कामयाबी तब मिली, जब संदिग्ध को रेलवे स्टेशन के मेन गेट से आटोरिकशा में चढ़ते देखा गया.
‘‘गाड़ी के रजिस्ट्रेशन नंबर को ट्रैक किया गया और बदरपुर में जांच की गई. पुलिस टीम ने छापेमारी के बाद संदिग्ध को फरीदाबाद में खोज निकाला और लोगों को हिरासत में लिया.
‘‘डीसीपी ने कहा कि पुलिस टीम ने रेलवे स्टेशन से बच्चों का अपहरण करने वाली एक औरत और उस के पति को पकड़ा. उस औरत का पति सूरज तस्करों और खरीदारों के बीच काम करता था. एक और औरत, जो एक वकील के लिए क्लर्क थी, तस्करी को कानूनी दिखाने के लिए जाली गोद लेने के दस्तावेज तैयार करती थी.
‘‘पुलिस ने बाद में एक फर्जी डाक्टर को भी गिरफ्तार किया, जो 10वीं पास है और गिरोह में काम करता है.’’
‘‘पर, ये लोग काम कैसे करते थे?’’ सांवरी ने पूछा.
‘‘इस गिरोह के हर सदस्य बहुत ही योजना वाले तरीके से काम कर रहे थे. पुलिस ने उन के काम करने के तरीके को साझा करते हुए कहा कि तस्कर बसअड्डे, रेलवे स्टेशनों जैसी भीड़भाड़ वाली सार्वजनिक जगहों से बच्चों को निशाना बनाते थे. मुख्य संदिग्ध ने चुपके से बच्चों का अपहरण किया और बचने के लिए पहले से ही योजना वाले तरीके से भागने के रास्ते का इस्तेमाल किया. इस के बाद में एक दूसरी औरत ने उन के फर्जी कागज बनाए.
‘‘वह औरत बच्चा गोद लेने वाले मांबाप को गुमराह करने का काम करती थी. सूरज पैसे का लेनदेन देखता था. वह अपहरण करने वालों और खरीदारों के बीच दलाल के रूप में काम करता था.
‘‘इस गिरोह ने गिरफ्तारी से बचने के लिए कोड भाषा का इस्तेमाल किया. वे लोग अकसर अपना फोन नंबर बदल लेते थे. खुद को डाक्टर बताने वाली एक औरत ने तस्करी किए गए बच्चों को गलत तरीके से छोड़े गए या नाजायज बताया.
‘‘उस औरत ने अस्पताल में अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर के तस्करी किए गए बच्चों को गोद लेने की इच्छा रखने वाले लोगों से मिलवाया. इस के बाद बच्चों को उन बेऔलाद जोड़ों को बेच दिया गया, जिन्हें लगा कि वे कानूनी रूप से बच्चे गोद ले रहे हैं. लेनदेन को कानूनी दिखाने के लिए फर्जी गोद लेने के कागजात, मैडिकल रिकौर्ड और हलफनामे बनाए गए.’’
महेश ने जब यह पूरी खबर सांवरी को सुनाई, तो वह कांप कर रह गई और बोली, ‘‘मैं तो बच्चा चुराना बड़ा आसान काम समझ रही थी. सोचा था कि आराम से बच्चा चुरा कर किसी जरूरतमंद को बेच दूंगी और अपने पति के मुंह पर पैसे मार कर रोजरोज के झगड़े से पिंड छुड़ा लूंगी.’’
‘‘तू गलत सोच रही थी सांवरी. जुर्म की राह जेल तक जाती है. अभी तेरी उम्र ही क्या है. जेल में सड़ने से अच्छा है कि तू कोई और रास्ता देख,’’ महेश सांवरी का हाथ पकड़ कर बोला.
‘‘तो मैं क्या करूं? मैं ऐसी नरक जैसी जिंदगी से तंग आ गई हूं. अब मुझ से सहा नहीं जाता,’’ सांवरी रोते हुए बोली.
‘‘तू अपने पति को छोड़ दे और चल मेरे साथ. मैं दिल्ली छोड़ कर हमेशा के लिए अपने गांव जा रहा हूं. यहां की भीड़भाड़ मुझे रास नहीं आ रही. हम दोनों गांव में नई जिंदगी शुरू करेंगे,’’ कहते हुए महेश ने सांवरी का हाथ कस कर पकड़ लिया.
सांवरी को लगा कि महेश ने उसे जुर्म का रास्ता अपनाने से रोक कर उस की जिंदगी को नरक होने से बचा लिया है. उस ने महेश के कंधे पर अपना सिर रख दिया और फैसला कर लिया कि अब वह और नहीं सहेगी और सारी उम्र महेश की बन कर रहेगी.