Family Story : लक्खू मोची अपनी दुकान पर हर रोज सुबह 7 बजे आ कर बैठ जाता था. वह टूटी हुई चप्पलों और फटे हुए जूतों की मरम्मत करता था. उस की दुकान खूब चलती थी. वह चाहे जूते की पौलिश करता या टूटी चप्पलें बनाता, उस की मेहनत साफ झलकती थी. उस के सधे हुए काम से लोग खुश हो जाते थे.
लक्खू मोची की बीवी अंजू बहुत खूबसूरत थी. उस का रंगरूप मोहक था. वह लक्खू की घरगृहस्थी बखूबी संभाल रही थी. वह 10वीं जमात तक पढ़ी थी, जबकि लक्खू मोची ने तो स्कूल का मुंह तक नहीं देखा था. वह सिरे से अनपढ़ था. लेकिन शादी के बाद अंजू ने उसे थोड़ाबहुत पढ़नालिखना सिखा दिया था. अब तो वह अखबार भी पढ़ लेता था.
एक दिन औफिस जाने के लिए एक मैडम घर से निकलीं, तो रास्ते में उन की चप्पल टूट गई. वे लक्खू की दुकान पर पहुंचीं और बोलीं, ‘‘लक्खू, जरा जल्दी से मेरी चप्पल की मरम्मत कर दो, नहीं तो दफ्तर के लिए लेट हो जाऊंगी.’’
लक्खू मोची ने उस मैडम की चप्पल की मरम्मत 5 मिनट में कर दी.
‘‘ये लो 10 रुपए लक्खू,’’ उन मैडम ने चप्पल मरम्मत के पैसे दे दिए.
तभी एक साहब आ कर बोले, ‘‘लक्खू, मेरे जूते पौलिश कर दो.’’
लक्खू ने फटाफट ब्रश चला कर जूते पौलिश कर दिए.
‘‘लक्खू, ये लो 25 रुपए,’’ इतना कह कर वे साहब चमकते चूते पहन कर चल दिए.
शाम हो गई थी. लक्खू अपने घर पहुंच गया था. वह चारपाई पर जा कर लेट गया. वह दिनभर की थकान इसी चारपाई पर मिटाता था.
थोड़ी देर में अंजू चाय बना कर ले आई और बोली, ‘‘ये लीजिए, चाय पी लीजिए.’’
लक्खू चारपाई से उठ कर बैठ गया. वह खुश हो कर चाय पीने लगा. अंजू भी उस के पास बैठ कर चाय पीने लगी.
‘‘मकान मालिक को हर महीने किराए की मोटी रकम देनी पड़ती है. क्यों न हम लोग अपना मकान बना लें. इस से किराए का पैसा भी बच जाएगा,’’ अंजू ने लक्खू से कहा.
‘‘हम लोगों के पास इतने रुपए हैं कि अपना मकान बना सकें. मैं रोजाना चप्पलजूते मरम्मत कर तकरीबन 500 रुपए ही कमा पाता हूं. वे सब भी दालरोटी में खर्च हो जाते हैं,’’ कहते हुए लक्खू के चेहरे पर मजबूरी उभर आई थी.
‘‘मैं आप को एक उपाय बताऊं…’’ अंजू ने कहा.
‘‘हांहां, बताओ,’’ लक्खू बोला.
‘‘आप दुकान में नई चप्पलें और नए जूते बेचिए. इस से हमारी आमदनी और बढ़ जाएगी,’’ अंजू ने कहा.
‘‘लेकिन मैं इतनी पूंजी कहां से लाऊंगा?’’ लक्खू ने पूछा.
‘‘आप होलसेल से माल ले आइए. जब बिक्री हो जाए, तो दुकानदार को पैसे दे दीजिएगा,’’ अंजू ने बताया.
‘‘हां, ऐसा हो तो सकता है. आज तो मैं ने मान लिया कि तुम्हारा दिमाग कंप्यूटर की तरह तेज काम करता है,’’ लक्खू ने कहा.
‘‘दिमाग तो लगाना पड़ता है, नहीं तो हम लोग का घर कैसे बनेगा,’’ अंजू ने मुसकरा कर कहा.
रात के 10 बज रहे थे. लक्खू और अंजू बिस्तर पर लेटे हुए थे. थकान से लक्खू को नींद आ रही थी, लेकिन अंजू के दिल में प्यार की उमंगें उठ रही थीं.
‘‘सो गए क्या?’’ अंजू ने लक्खू से पूछा.
‘‘नहीं, पर जल्दी ही सो जाऊंगा,’’ लक्खू ने अलसाई आवाज में कहा.
‘‘ज्यादा नहीं, आप 15 मिनट तो मेरे साथ जागिए,’’ कह कर अंजू ने लक्खू को चूम लिया.
लक्खू अंजू का इशारा समझ गया और बोला, ‘‘अब तो मुझे जागना ही पड़ेगा,’’ कह कर वह अंजू को अपनी बांहों में भर कर चूमने लगा. उन दोनों पर प्यार का नशा छा गया.
वे एकदूसरे के जिस्म से खेलने लगे. कुछ देर तक प्यार का खेल चलता रहा, फिर थक कर वे दोनों गहरी नींद में सो गए.
अगले दिन लक्खू थोक विक्रेता से जूतेचप्पल ले कर अपनी दुकान में बेचने लगा. जल्दी ही उस की आमदनी बढ़ने लगी.
3 साल में ही लक्खू के पास इतने रुपए हो गए कि उस ने एक नया मकान बना लिया. अंजू और लक्खू का नए मकान का सपना पूरा हुआ था, लेकिन अभी गृहप्रवेश करना बाकी था.
एक सुबह लक्खू अपनी दुकान के लिए जा रहा था कि तभी अंजू ने कहा, ‘‘आप गृहप्रवेश की पूजा के
लिए पंडितजी से बात कीजिए. यह काम जल्द निबट जाए, तो घर का किराया बच जाएगा.’’
‘‘ठीक है, मैं आज ही पंडितजी से बात करता हूं,’’ कह कर लक्खू वहां से चला गया.
पंडितजी कालोनी में पूजा कराते थे. वे लक्खू को रास्ते में ही मिल गए.
‘‘प्रणाम पंडितजी,’’ कह कर लक्खू ने हाथ जोड़े.
‘‘कहो, कोई खास बात है क्या?’’ पंडितजी ने लक्खू से पूछा.
‘‘हां, मुझे गृहप्रवेश की पूजा करानी थी,’’ लक्खू ने कहा.
‘‘अरे लक्खू मोची, तुम ने भी घर बना लिया… चप्पलजूते मरम्मत कर के इतनी तरक्की कर ली,’’ पंडितजी ने हैरान हो कर लक्खू से कहा.
‘‘हां, मेहनतमशक्कत से एकएक पाई जोड़ कर घर बनाया है,’’ लक्खू ने थोड़ी नाराजगी जताई…
‘‘पंडितजी, आप की क्या दानदक्षिणा होगी, बता दीजिए. मुझे 1-2 दिन में पूजा करा लेनी है,’’ लक्खू ने कहा.
‘‘अभी एक यजमान के यहां पूजा कराने जा रहा हूं. कल बता दूंगा,’’ पंडितजी अकड़ कर चले गए.
लक्खू रात में जब घर लौटा, तब अंजू ने पूछा, ‘‘क्या पंडितजी से बात हुई थी? वे दक्षिणा क्या लेंगे?’’
‘‘हां, उन से बात हुई थी. वे दक्षिणा क्या लेंगे, कल बताने को बोले हैं,’’ लक्खू ने कहा.
शाम को पंडितजी घर पर बैठे थे. पंडिताइन भी पास ही बैठी थीं. पंडितजी ने पंडिताइन से लक्खू का जिक्र किया, ‘‘लक्खू मोची के घर का गृहप्रवेश है. मुझे पूजा कराने को बोल रहा था. मैं तो धर्मसंकट में पड़ गया हूं. तुम्हीं बताओ, उस के यहां मैं जाऊं या नहीं?’’
पंडिताइन कुछ सोच कर बोलीं, ‘‘लक्खू मोची है. आप ब्राह्मण हो कर उस के घर पूजा कराने जाएंगे. लोग क्या कहेंगे कि पंडितजी मोची के घर भी पूजा कराने जाते हैं.
‘‘उन के यहां के बरतन कितने गंदे होते हैं. मुझे तो देख कर ही घिन आती है. उन्हीं बरतनों में आप को दहीपूरी और मिठाई का भोग लगाना पड़ेगा.’’
‘‘कोई उपाय बताओ कि मुझे करना क्या होगा?’’ पंडितजी ने पूछा.
‘‘आप को यही करना है कि दूसरे यजमानों से जो दक्षिणा लेते हैं, लक्खू मोची से उस का दोगुना मांगिएगा. वह दक्षिणा का रेट सुन कर भाग जाएगा. इस तरह लक्खू मोची से आप का पिंड छूट जाएगा.’’
पंडितजी को यह उपाय भा गया. उन के होंठों पर कुटिल मुसकान खिल गई.
पंडितजी लक्खू की दुकान पर पहुंचे. उस समय लक्खू खाली बैठा था. पंडितजी को देख कर लक्खू ने हाथ जोड़े और बोला, ‘‘प्रणाम पंडितजी… गृहप्रवेश की पूजा के लिए आप को कितनी दक्षिणा देनी होगी?’’
‘‘दक्षिणा के 1,000 रुपए लगेंगे,’’ पंडितजी ने कहा.
‘‘मुझ से दक्षिणा के 1,000 रुपए क्यों, जबकि दूसरों से तो आप 500 रुपए ही लेते हैं?’’ लक्खू ने पूछा.
‘‘देखो लक्खू, तुम मोची हो. मैं ब्राह्मण हूं. तुम्हारे घर जा कर पूजा करानी है. अपना धर्म भी भ्रष्ट करूं और दोगुनी दक्षिणा भी न लूं,’’ पंडितजी ने कहा.
‘‘अच्छा, तो यह बात है. पंडितजी, आप जातीय जंजाल में जी रहे हैं. पूजापाठ कराना तो आप का ढकोसला है. आप की रगरग में छुआछूत की भावना भरी हुई है.
‘‘मुझे ऐसे पंडितजी से गृहप्रवेश नहीं कराना है. मेरी समझ से आप का सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए,’’ लक्खू ने कहा.
‘‘लक्खू मोची, तुम मेरा सामाजिक बहिष्कार करोगे. अधर्मी, पापी. छोटी जाति का आदमी,’’ पंडितजी गुस्से से कांप रहे थे.
लक्खू को भी काफी गुस्सा आ गया. उस ने अपने पैर से जूता निकाल कर पंडितजी को धमकाया, ‘‘जाओ, नहीं तो इसी जूते से चेहरे का हुलिया बिगाड़ दूंगा.’’
लक्खू और पंडितजी लड़नेमरने को तैयार थे. आसपास के लोगों ने बीचबचाव कर के उन दोनों को अलग कर दिया.
लक्खू जब शाम को घर पहुंचा, तब अंजू ने पूछा, ‘‘पंडितजी कल गृहप्रवेश कराने आ रहे हैं न?’’
‘‘नहीं. वे तो कहने लगे कि मोची के घर नहीं जाऊंगा. उन का धर्म भ्रष्ट हो जाएगा. वे हम लोगों को अछूत मानते हैं,’’ लक्खू ने कहा.
‘‘जाने भी दीजिए. हम लोग नए ढंग से गृहप्रवेश कर लेंगे. ऐसे नालायक पंडित पर निर्भर रहना सरासर बेवकूफी है,’’ अंजू ने कहा.
दूसरे दिन लक्खू और अंजू ने मिल कर नए घर को फूलों की माला से सजा दिया था. अंजू ने पूरी, मटरपनीर की सब्जी और सेंवइयां बनाई थीं.
अंजू ने लक्खू से कहा, ‘‘बगल की बस्ती से गरीब बच्चों को बुला कर ले आइए. उन बच्चों को हम लोग भरपेट भोजन कराएंगे.’’
बस्ती के 8-10 बच्चे पंगत लगा कर बैठ गए थे. पूरी, मटरपनीर की सब्जी व सेंवइयां बच्चों को परोस दी गईं. बच्चों ने छक कर खाया. कुछ बच्चे खापी कर खुशी से नाचनेगाने लगे थे. बच्चों को नाचतेगाते देख कर अंजू और लक्खू बेहद खुश थे.
अंजू और लक्खू का गृहप्रवेश दूसरे से अलग और अनूठा था. अंजू और लक्खू अपने नए घर में खुशीखुशी रहने लगे थे.
इस बात को 2 महीने बीत चुके थे. लक्खू अपनी दुकान पर बैठा था. इतने में पंडितजी अपनी टूटी हुई चप्पल की मरम्मत के लिए लक्खू की दुकान पर आए थे.
‘‘लक्खू, मेरी चप्पल टूट गई है. फटाफट मरम्मत कर दो. मुझे पूजा कराने जाना है,’’ पंडितजी ने कहा.
लक्खू ने पंडितजी को पहचानते हुए कहा, ‘‘आप की चप्पल यहां मरम्मत नहीं होगी. कहीं और जा कर देखिए.’’
‘‘लेकिन, मेरी चप्पल क्यों नहीं मरम्मत होगी?’’ पंडितजी ने पूछा.
लक्खू ने कहा, ‘‘मेरे घर पूजा कराने पर आप का धर्म भ्रष्ट होता है. मेरे हाथ से चप्पल मरम्मत कराने पर क्या आप का धर्म भ्रष्ट नहीं होगा.’’
‘‘बकवास मत करो. जल्दी से मेरी चप्पल मरम्मत कर दो. जो पैसा लेना है, ले लो.’’
‘‘मैं ने कह दिया न कि आप की चप्पल मरम्मत नहीं करूंगा,’’ लक्खू ने कहा.
‘‘लक्खू मोची, घर आई लक्ष्मी को ठुकराना नहीं चाहिए. ग्राहक से ही तुम्हारी रोजीरोटी चलती है,’’ पंडितजी ने थोड़ी खुशामद की.
‘‘मुझे उपदेश मत दीजिए. अपना रास्ता नापिए,’’ कह कर लक्खू एक ग्राहक के जूते में पौलिश करने लगा.
पंडितजी टूटी चप्पल ही पहन कर घिसटते हुए चल दिए. उन को नंदन साहब के यहां पूजा करानी थी. वहां दक्षिणा की मोटी रकम मिलने वाली थी.
चिलचिलाती धूप थी. सड़क पर कोई सवारी नहीं थी. अमूमन रिकशा वाले टैंपो वाले दिख जाते थे, लेकिन इस आफत में सभी गायब थे.
समय बीता जा रहा था. पंडितजी की चिंता बढ़ती जा रही थी. वे मन ही मन लक्खू को कोस रहे थे, ‘लक्खू मोची, तुम ने मुझ से खूब बदला लिया है.’
आखिरकार पंडितजी टूटी चप्पल से पैर घिसटते हुए नंदन साहब के घर पहुंच गए थे. वहां का नजारा देख कर उन के होश उड़ गए. नंदन साहब कुरसी पर बैठे हुए थे. कोई दूसरे पंडितजी पूजा करा रहे थे.
नंदन साहब का ध्यान पंडितजी पर गया. वे बोले, ‘‘आप बहुत लेट आए हैं.’’
‘‘हां, एक घंटा लेट हो गया. थोड़ी परेशानी में पड़ गया था,’’ पंडितजी ने कहा.
‘‘खैर, कोई बात नहीं. पूजा कराने के लिए बगल के मंदिर से पंडितजी को बुला लिया है. अब तो पूजा भी खत्म होने वाली है. आप की जरूरत नहीं रही. आप जा सकते हैं,’’ नंदन साहब ने बेलौस आवाज में कहा.
ऐसा सुन कर पंडितजी का चेहरा उतर गया. दक्षिणा की मोटी रकम जो हाथ से निकल गई थी.
वे बुदबुदा रहे थे, ‘‘लक्खू मोची, तुझे जिंदगीभर नहीं भूलूंगा. तुम्हारे चलते मेरी इतनी फजीहत हुई है. लेकिन इस के लिए तो मैं खुद भी कम जिम्मेदार नहीं हूं.’’