Indian Politics : साल 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश में राजनीतिक गोलबंदी अभी से तेज हो गई है. कयास इस बात का लगाया जा रहा है कि एससी और ओबीसी तबका किधर जाएगा.
साल 2024 के लोकसभा चुनाव में एससी, ओबीसी और मुसलिम तबका इंडिया ब्लौक के साथ रहा था, जिस का फायदा कांग्रेस और समाजवादी पार्टी दोनों को हुआ था. कांग्रेस को लोकसभा की 6 सीटें और समाजवादी पार्टी को 37 सीटें मिली थीं, जो अपनेआप में एक बड़ा इतिहास है.
इस के बाद हुए उत्तर प्रदेश में विधानसभा के उपचुनाव और दिल्ली, महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनाव के नतीजे देखने से लगा कि लोकसभा चुनाव वाला वोटिंग ट्रैंड बदल चुका है, खासकर एससी और ओबीसी जातियां धर्म के चलते आपसी दूरी दिखा रही हैं.
एससी और ओबीसी जातियों में खेमेबंदी केवल वोट तक ही नहीं सिमटी है, बल्कि यह जातीय और सामाजिक लैवल पर गुटबाजी में बदल चुकी है, जिस का असर वोट बैंक पर तो पड़ ही रहा है, साथ ही, घरों और स्कूलों पर भी पड़ रहा है. सरकारी स्कूलों में जहां बच्चों को भोजन ‘मिड डे मील’ खाने को मिल रहा है, वहां पर ओबीसी बच्चे एससी बच्चों के साथ बैठ कर खाना खाने से बचते हैं.
ओबीसी बच्चे तादाद में ज्यादा होने के चलते अपना अलग ग्रुप बना लेते हैं, जिस से एससी बच्चे अलगथलग पड़ जाते हैं. स्कूलों से शुरू हुए इस जातीय फर्क को आगे भी देखा जाता है. ओबीसी जातियां ऊंची जातियों जैसी दिखने के लिए खुद को बदल रही हैं.
ओबीसी समाज के लड़के ऊंची जाति की लड़कियों से शादी कर रहे हैं. ऊंचे तबके के परिवारों को भी अगर एससी और ओबीसी में से किसी एक को चुनना हो, तो वह ओबीसी को ही पसंद करते हैं. ओबीसी बच्चे पूरी तरह से ऊंची जाति वाला बरताव करते हैं और यही उन के स्वभाव में रचबस जाता है.
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