Donald Trump : अमेरिका में 20 जनवरी, 2025 से नए प्रैजिडैंट डोनाल्ड ट्रंप वहां पर राज कर रहे हैं और उन का राज एक संवैधानिक, कानून की इज्जत करने वाला नहीं है. उन का राज पहले 2 हफ्तों में ही तालिबानी टाइप का है.

अमेरिका एक तरह की इमर्जैंसी वाले जमाने में पहुंच गया है जिस में इंदिरा गांधी और सोवियत कम्यूनिस्टों जैसे फैसले लिए जा रहे हैं. जो काम डोनाल्ड ट्रंप दुनिया की सब से अच्छी डैमोक्रैसी को तोड़ने में कर रहे हैं, उस से बहुत से डैमोक्रैसी का दंभ भरने वाले सबक सीखेंगे पक्का है.

डोनाल्ड ट्रंप गरीबों को दी जाने वाली बहुत सी सुविधाओं को खत्म कर रहे हैं ताकि अमीरों का टैक्स कम किया जाए. ऐसा ही कुछ हमारे यहां नरेंद्र मोदी के नए बजट में किया गया है जिस में इनकम टैक्स पहले के 7 लाख रुपए के मुकाबले अब 12 लाख रुपए तक जीरो कर दिया गया है.

डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को पैसे देने बंद कर दिए हैं. हमारे यहां कितने ही राज्यों में सरकारी अस्पतालों को पैसा नहीं दिया जा रहा ताकि लोग महंगे और बहुत महंगे प्राइवेट अस्पतालों में जाएं या फिर ओझाओं, वैद्यों के पास जाएं जिन के पास न डिगरियां हैं, न दवाएं और जो अफीम और धतूरे से इलाज करते हैं.

डोनाल्ड ट्रंप एकएक कर के सरकारी मुफ्त पढ़ाई पर हमला भी कर रहे हैं. वे चाहते हैं कि सिर्फ अमीर गोरों के बच्चे स्कूलों में जाएं और कमजोर वर्गों खासतौर पर काले और मिक्स गोरे व मूल अमेरिकियों की संतानों के बच्चे पढ़ें ही नहीं. गोरों का महान देश वापस आए ये शब्द ऐसे ही हैं जो हमारे यहां भारत को विश्वगुरु और रूस में व्लादिमीर पुतिन जारों के जमाने के ग्रेट रशिया के लिए कहते थे.

डोनाल्ड ट्रंप से यूरोप के, एशिया के कट्टरपंथियों को खूब सीखने को मिल रहा है कि कैसे गरीबों का खून चूसने वाला राज फिर से लाया जाए जिस में या तो धन्ना सेठ फलेंफूलें या मंदिरों के महंत. भारत इस ओर 10 साल पहले कदम रख चुका है और अब यह काम और तेजी से होगा क्योंकि अब अमेरिका से भारत में लोकतंत्र की हत्या पर सवाल नहीं उठेंगे.

डोनाल्ड ट्रंप वही कर रहे हैं जो हमारे यहां पंडे, ठाकुर और अमीर सेठ करना चाहते हैं. राज उन का हो, काम शूद्रों का और अछूतों का. ‘एक देश एक चुनाव’ का नारा लगा कर सरकार जनता से वोट का हक छीनने की तैयार कर रही है तो उसे डोनाल्ड ट्रंप का पक्का साथ मिलेगा क्योंकि ट्रंप अपने चुनावी भाषणों में कह चुके हैं कि 2024 के चुनावों में वे जीते तो फिर अमेरिका में चुनाव नहीं होंगे.

भारत, जरमनी, कोरिया, फ्रांस, इटली में वैसी ही ताकतें मजदूरों और गरीबों को धर्म के सहारे बहका कर समझा रही हैं कि राज तो सिर्फ खास गोरों का होना चाहिए, काले भूरों को बाहर निकालो. वैसे ही जैसे हमारे यहां राज खास जातियों का होना चाहिए और बाकियों को पानी में डुबकियां लगा कर खुशी पाने के लिए बहकाया जा रहा है.

दुनिया ने जो आजादी के सपने देखे थे, अब फीके पड़ रहे हैं. अब अमीरों का राज आ रहा है. वे इंटरनैट की जंजीरों से हर गरीब को कंट्रोल करना सीख गए हैं, ठीक वैसे ही जैसे पहले धर्मजाति के नाम पर कंट्रोल किया जाता था.

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सरकारें किस तरह से निकम्मी और बेरहम हो कर अपनी सुविधा के एकतरफा फैसले लेती हैं इस के नमूने इधरउधर लोगों को महसूस होते रहते हैं पर इन को गंभीरता से कम लिया जाता है कि ये छोटे मामले हैं.

बिहार सरकार के शिक्षा विभाग ने 8 फरवरी को अखबारों में हिंदी में एक विज्ञापन छपवाया, जो अंगरेजी के अखबारों में भी क्यों प्रकाशित हुआ पता नहीं, कि ‘अनुसूचित जाति प्रवेशिकोत्तर छात्रवृत्ति योजना’ व ऐसी ही 2 और योजनाओं के अंतर्गत ‘2023-24 एवं 2022-23 में शैक्षणिक संस्थान स्तर पर लंबित सभी आवेदनों का सत्यापन 15-2-25 से पूर्व करना सुनिश्चित’ किया गया है.

इस संस्कृत के अनजाने शब्दों से भरे इश्तिहार से लगता है कि बिहार राज्य कोई स्कौलरशिप दलित जातियों के छात्रों को देता है पर 2022 से दिया जाना पैंडिंग है. अब 3 साल बाद इसे देने का काम शुरू किया जा रहा है. इसे देने में पहला कदम उठाया जा रहा है. बहुत अच्छी बात है. लगता है कि यह स्कौलरशिप देने की एप्लीकेशनें बहुत पहले मांगी गई थीं वे भी कंप्यूटर पोर्टल पर. ऐसा इसलिए लगता है क्योंकि उसी इश्तिहार में लिखा है कि ‘सभी आवेदनों का सत्यापन दिनांक 15.2.25 से पूर्व पूर्ण करना सुनिश्चित किया गया है. इस के उपरांत सत्यापन हेतु पीएमएस पोर्टल बंद कर दिया जाएगा’.

यह नहीं समझ आता कि जो स्कौलरशिपें सरकारी फाइलों में 2-3 सालों से रोशनी का इंतजार कर रही थीं उन को खोलने की कोशिश में सिर्फ 20 दिन का समय क्यों दिया गया? अगर यह समझा जाए कि स्कौलरशिप पाने वाला हर एससीएसटी युवकयुवती हर रोज इंडियन ऐक्सप्रैस खरीदते हैं और उस के बारीक अक्षरों में छपी सरकारी सूचनाएं पढ़ते हैं तो भई वाकई कमाल की बात है. यह तो स्वर्ग के आ जाने की सी बात होगी कि एससीएसटी के बच्चों ने अखबार हर रोज खरीदना और पढ़ना शुरू कर दिया है.

साफ है कि अफसरों को इस देरी के लिए न कोई दुख है, न उन्हें लगता है कि उन की कोई गलती है. वे अपने निकम्मेपन का ठीकरा दूसरों पर फोड़ना चाहते हैं और किसी तरह यह स्कौलरशिप जो 2-3 साल से पैंडिंग है अब बहुतों के लिए खत्म ही कर देना चाहते हैं.

इसी सरकारी इश्तिहार में आगे लिखा गया है कि ‘निर्धारित अवधि के पश्चात सत्यापन लंबित रखने वाले शैक्षणिक संस्थानों के विरुद्ध नियमानुसार कार्यवाही की जाएगी’. यानी आगे भी कहीं कोई रास्ता उन गरीब एससीएसटी के 10वीं, 12वीं के बच्चों के लिए नहीं छोड़ा गया है जो अब 3 साल बाद पढ़ाई छोड़ चुके हैं.

इस सूचना से कहीं नहीं लगता कि बिहार के निदेशक, माध्यमिक शिक्षा को कोई अफसोस है कि यह स्कौलरशिप देने में देरी हुई है. इस सूचना में भी ‘संस्थानों के विरुद्ध नियमानुसार कार्यवाही’ और ‘जिला शिक्षा पदाधिकारी एवं जिला कार्यक्रम पदाधिकारी सभी आवश्यक कार्यवाही करने के उत्तरदायी होंगे’ जैसे वाक्य हैं.

उन बेचारों के बारे में कोई 2 शब्द नहीं हैं जिन्हें इस योजना में कुछ पैसे मिलने थे. सरकारी फाइलों पर कैसे उन अफसरों की भाषा में नरमी तक नहीं है, अपनी देरी के लिए कोई गिला तक नहीं है. सरकार चाहे केंद्र की हो जो एससीएसटी को हमेशा पिछड़ा और गुलाम देखना चाहती हो या नीतीश कुमार की समाजवादी किस्म की हो जो उन का सहारा ले कर वोट पाती है, एक ही तरह से काम करती है.

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