Social Story : ‘जो लोग सिर्फ अपनी हवस मिटाने के लिए औलाद पैदा करते हैं, उन की औलाद में भी अपने मातापिता के ये गुण आते ही आते हैं और वह बच्चा आगे उसी रास्ते पर खुद ही चलने लगता है. उस बच्चे को यह पता ही नहीं चल पाता कि आखिर वह ऐसा क्यों बन गया, जबकि उस का टारगेट तो कुछ और था.
‘ठीक उसी तरह जो लोग मुहूर्त, तिथि, नक्षत्र आदि देखते हुए औलाद को जन्म देने का विचार रखते हैं, उन की औलाद में भी अपने मातापिता के अच्छे गुण साथ चलते हैं और ऐसी औलाद बुद्धिमान और संस्कारी होती है… संस्कारी होती है… संस्कारी होती है…’
ऐसी ही आवाजों की गूंज के साथ चौंक कर रमेश की नींद खुल गई वह घबराहट के मारे पसीनापसीना हो गया.
रमेश की नजर बगल में सो रहे अपने भाई नरेश पर पड़ी. उसे चैन से सोया देख कर रमेश के मन में यह विचार आया कि उसे कभी अपने भाई के जैसे चैन की नींद क्यों नहीं आती? वह क्यों हमेशा इतना बेचैन रहता है कि रातों को ठीक से सो भी नहीं पाता है?
रमेश ने अपने सिरहाने रखी पानी की बोतल खोल कर पानी पिया, पर कम पानी होने की वजह से उस की प्यास नहीं बुझी और वह पानी की बोतल लिए रसोईघर की ओर बढ़ गया.
पानी भरते हुए रमेश के दिमाग में कई बार रहरह कर यह खयाल आ रहा था कि क्या वह भी पहली श्रेणी वाले मांबाप की औलाद है और नरेश दूसरी श्रेणी वाले… कहीं इसलिए तो ऐसा नहीं है कि नरेश गुणी है और वह…
यही सब सोचतेसोचते रमेश वापस अपनी जगह पर आ कर अपने भाई को देखते हुए दोबारा सोने की नाकाम कोशिश करने लगा.
एक दिन रमेश के दोस्त देव ने अपने जन्मदिन पर एक पार्टी रखने का प्रस्ताव रखा, जिस में रमेश, अली, जस्सी, टीटू, टोनी के अलावा 4-6 लड़कियों को भी बुलाने का प्लान था.
रमेश ने कहा भी था, ‘‘यार, लड़कों की पार्टी में भला लड़कियों का क्या काम है?’’
लेकिन, बाकी सब ने कहा कि उन के बिना मजा भी तो नहीं आएगा. कैसी रूखीसूखी सी लगेगी पार्टी.
तभी अली ने कहा, ‘‘यार, वैसे भी रंग तो लड़कियों के जाने के बाद भी जमा रहेगा…’’ और सभी लड़के ठहाका लगा कर हंसने लगे.
टोनी ने कहा, ‘‘अगर वह वाला प्लान है, तो फिर पार्टी दिन में ही रखेंगे, ताकि लड़कियां जल्दी आएं और जल्दी ही चली जाएं और फिर हम सब अपनी रातें नीली कर सकें…’’ इतना सुनते ही वे सब जोरजोर से हंसने लगे.
एक देव का ही घर ऐसा था, जहां यह पार्टी बिना किसी रोकटोक के हो सकती थी, क्योंकि देव अकेला रहता था और उस के मातापिता विदेश में रहते थे.
पार्टी का होना देव के घर पर तय हुआ. किसी ने शराब का जिम्मा लिया, तो किसी ने खाने का, किसी ने सजावट और केक का, तो किसी ने संगीत और रोशनी का.
पार्टी में तेज संगीत और रंगबिरंगी गहरी रोशनी के साथ शराब बह रही थी. आने वाली लड़कियों में सिर्फ 4 ही लड़कियां दिखाई दे रही थीं. दिव्या, वंदना, कामिनी और रितु.
दिव्या ने बहुत ही कम कपड़े पहने हुए थे और वह नशे में चूर होने के साथसाथ सिगरेट के कश पर कश भी लगा रही थी.
दिव्या को देख कर अली का दिल मचल रहा था. उस ने उस के पास जा कर उसे ऊपर से नीचे तक कमीनों की नजर से देखते हुए कहा, ‘‘क्या कातिल जवानी है तेरी, मेरी जान… बस आज की रात मेरे नाम कर दे जानी… तो मजा ही आ जाएगा.’’
दिव्या ने भी टोनी को ऊपर से नीचे तक देखते हुए शराब का एक घूंट पिया और बोली, ‘‘अगर मैं ऐसा कर भी लूं, तो मुझे क्या मिलेगा छिछोरे…’’
‘‘कितना लेगी बोल…?’’
‘‘कितना नहीं, क्या लेगी पूछ…’’
‘‘अच्छा…’’ एक कुटिल मुसकान के साथ टोनी ने कहा, ‘‘तो चल, यही बता दे, क्या लेगी…?’’
दिव्या ने कहा, ‘‘शादी करेगा क्या मुझ से…?’’
टोनी कुछ कह पाता, उस के पहले ही अली ने आ कर कहा, ‘‘अबे जा… सड़क पर पड़े सामान से कोई घर नहीं सजाया करता…’’
इतना सुनने की देर थी कि दिव्या पीछे पलटी, उस ने अपनी सिगरेट का एक गहरा कश लिया और अली के गाल पर एक करारा तमाचा जड़ दिया.
तमाचा इतना जोरदार था कि एक ही झटके में अली का सारा नशा उतर गया और उस के गाल पर दिव्या की उंगलियों के निशान छप गए.
अली की ऐसी दशा देख कर वहां मौजूद बाकी सभी लोग हंस दिए. सब के सामने हुई अपनी बेइज्जती ने उस वक्त अली के अहम को एक ऐसी चोट पहुंचाई कि गुस्से में उस का सिर भन्ना गया और वह भी दिव्या के साथ हाथापाई करने को हुआ कि तभी रमेश ने बीच में आ कर किसी तरह समझाबुझा कर उस का गुस्सा शांत किया और दिव्या को भी वहां से जाने के लिए कहा.
दिव्या बाकी लड़कियों के साथ संगीत पर थिरकने लगी, तभी रितु ने वहां आ कर कोल्डड्रिंक की एक बोतल मांगी और पास ही खड़े लड़कों के इस समूह को देखते हुए ‘चीयर्स’ बोल कर संगीत पर थिरकने लगी.
यों तो रितु ने पूरे कपड़े पहने हुए थे, लेकिन उस के चुस्त कपड़ों में से उस के नाजुक अंगों के उतारचढ़ाव को देखते हुए फिर एक बार सब के दिल मचलने लगे.
जैसेजैसे शाम गहरा रही थी, वैसेवैसे नशे का माहौल भी बढ़ रहा था. अब वह समय आ चुका था, जब वहां मौजूद हर कोई नशे में चूर हो चुका था.
लड़कियां अब धीरेधीरे अपने घर जाने लगी थीं. दिव्या के साथ वंदना और कामिनी भी घर जा चुकी थीं, लेकिन एक रितु ही थी, जो अब तक पार्टी में रुकी हुई थी.
रमेश ने रितु के पास जा कर कहा, ‘‘पार्टी खत्म हो चुकी है, अब तुम भी अपने घर जाओ.’’
‘‘अरे, अगर ऐसा है, तो तुम लोग क्यों नहीं गए? तुम सब भी जाओ न…’’
‘‘हद हो गई… हम होस्ट हैं, हम ने कहा कि पार्टी इज ओवर, तो ओवर. तुम जाओ न अपने घर.’’
उस वक्त तो रितु ने कुछ नहीं कहा और जाने लगी. लेकिन जैसे ही रमेश पलटा, तो वह चुपके से जा कर छिप गई, क्योंकि उसे यह जानने की उत्सुकता हो रही थी कि आखिर ये लड़के पार्टी के बाद ऐसा क्या करने वाले हैं, जो लड़कियों के जाने के बाद ही हो सकता है.
लड़कों का प्लान तो पहले से ही तय था. सभी देव के कमरे में जा कर उस के लैपटौप को टीवी से जोड़ कर ब्लू फिल्म लगा कर बैठ गए. बात अगर ब्लू फिल्म तक होती तब भी ठीक था, लेकिन यह तो ऐसी ब्लू फिल्म थी, जिस में हैवानियत वाला सैक्स दिखाया जा रहा था.
फिल्म के दौरान जैसेजैसे हैवानियत बढ़ रही थी, वैसेवैसे लड़कों का जोश भी बढ़ता जा रहा था. किसीकिसी को तो जोश के साथसाथ गुस्सा भी भरपूर आ रहा था.
तभी अली को अपने गाल पर पड़ा दिव्या का तमाचा याद आ गया था. उस ने गुस्से में रमेश से कहा, ‘‘भाई, अगर तू बीच में नहीं आया होता न, तो मैं ने उसे वहीं का वहीं मजा चखा दिया होता. पहले ये लड़कियां खुद ही कम से कम कपड़े पहन कर हम लड़कों के आसपास मंडराती हैं और हमें उकसाती हैं और फिर जरा सा छू क्या लो, तुरंत ज्वालामुखी बन जाती हैं…
‘‘और इतना ही नहीं, मेरे ही घर पर, मेरी ही पार्टी में सब के सामने मेरी बेइज्जती कर के चली गई…’’
तभी देव ने कहा, ‘‘एक मिनट, एक मिनट, घर तो मेरा है न…? फिर तेरी पार्टी, तेरा घर…’’
‘‘भाई, क्या कह रहा है यार…? हम सब तो तेरे घर को अपना ही घर समझते हैं और अपना ही घर कहते हैं… यार, पहले ही बहुत बेइज्जती हो चुकी है, अब तू तो कम से कम दिल मत तोड़ यार…’’
‘‘ओह अच्छा, ऐसा है क्या…? चल, फिर ठीक है… कोई नहीं, जाने दे यार… लड़कियां होती ही ऐसी हैं.’’
इस सब में अली यह नहीं जानता था कि उस को तमाचा मारने वाली लड़की का नाम दिव्या है. यह सब देख कर और उन सब की बातें सुन कर रितु ने यह अंदाजा लगा लिया कि वह किस लड़की के बारे में बात कर रहा है.
रितु को लगा कि उसे जा कर दिव्या को आगाह करना चाहिए, क्योंकि कहीं न कहीं दिव्या ने अली के अहम को गहरी चोट पहुंचा दी है और अब अली उस से बदला ले कर ही रहेगा.
ऐसा सोच कर रितु डर गई और उस के मुंह से अनायास ही आवाज निकल गई.
लड़कों ने उसे देख लिया, तो रितु वहां से भागी, लेकिन सभी लड़कों ने जा कर उसे घेर लिया.
रमेश ने उसे देखते ही कहा, ‘‘तुम…? तुम से मैं ने कहा था न घर जाने के लिए. तुम को एक बार में बात समझ में नहीं आती है क्या?’’
रितु सभी लड़कों को नशे में चूर देख कर डर गई थी. उस ने कहा, ‘‘गलती हो गई. मैं जा रही हूं.’’
तभी टोनी ने कहा, ‘‘अब तो चिडि़या फंस गई जाल में. तुम ने हमारी बात न मान कर बहुत बड़ी गलती कर दी है. अब इस की सजा तो तुम्हें मिल कर ही रहेगी.’’
यह कहते ही पार्टी की बत्तियां और धीमी हो गईं. सभी लड़के रितु के आसपास गोलगोल घूमने लगे.
रितु को घबराहट होने लगी. वह सब से हाथ जोड़ कर कहने लगी, ‘‘मुझे जाने दो प्लीज… मुझे जाने दो…’’
लेकिन उस की किसी ने एक न सुनी और सभी लड़के बस एक अजीब सी हंसी में गोलगोल घूमे जा रहे थे.
रितु की घबराहट बढ़ती जा रही थी, तभी उन्हीं में से किसी ने उस के शर्ट की बांह फाड़ दी. अब तो वह बुरी तरह डर गई और घबराहट के मारेमारे थरथर कांपने लगी.
अंधेरा इतना गहरा चुका था कि हाथ को हाथ दिखाई न दे, ऊपर से अब रितु पर डर इतना हावी हो चुका था कि अब उसे न तो किसी की आवाज समझ में आ रही थी, न चेहरा ही समझ आ रहा था.
तभी उन्हीं लड़कों में से किसी ने उस की पूरी शर्ट फाड़ डाली. अपने दोनों हाथों से अपने बदन को छिपाने की नाकाम कोशिश करते हुए रितु जोरजोर से रोने लगी और बारबार यही कहने लगी, ‘‘मुझे माफ कर दो. यहां से मुझे जाने दो प्लीज.’’
तभी सभी लड़कों ने मिल कर रितु को एक पलंग के पाए से बांध दिया और उसे पूरा नंगा कर दिया. वह रोती रही, बिलखती रही, पर किसी को उस पर दया न आई.
फिर उन्हीं में से किसी एक ने रितु की आंखों पर पट्टी बांध दी और अपनेअपने मोबाइल की रोशनी से उस के बदन को गिद्धों की तरह आंखें फाड़फाड़ कर ताड़ने लगे.
अली ने रितु को चांटे ही चांटे मारे, फिर उस के होंठों से खून निकाल दिया, फिर उस की गरदन पर दांतों के निशान छोड़े, उस के सीने को अपने हाथों के नाखूनों से छील दिया और फिर उस के साथ रेप किया.
बाकी दोनों लड़कों ने भी यही किया. सब से आखिर में रमेश की बारी आई. बहुत देर तक तो वह उसे देखता ही रहा, फिर उस ने लड़की के बदन को जैसे ही छुआ, लड़की पीड़ा से कांप उठी… उस के कराहने की आवाज सुन कर रमेश भी खुद को उस पाप का भागीदार बनाने से रोक न सका.
खैर, सभी नशे में चूर होने की वजह से अपनीअपनी हवस को शांत कर के वहीं पड़ेपड़े सो गए.
अगली सुबह जब देव की नींद खुली और उस ने रितु को ऐसी हालत में देखा, तो उस के पैरों तले जमीन निकल गई.
यह देख कर देव बुरी तरह घबरा गया. उस ने सब से पहले रितु को एक चादर से ढक दिया और उस के गालों को थपथपाते हुए कहने लगा, ‘‘उठो… जागो, प्लीज…’’
लेकिन, रितु तो मर चुकी थी. डर के मारे देव ने अपने सभी दोस्तों को जगाया. सभी रितु को देख कर डर गए. किसी ने पानी के छींटे मार कर उसे उठाना चाहा, तो किसी ने उस के हाथों और पैरों को मल कर उसे होश में लाना चाहा. लेकिन अब तो बहुत देर हो चुकी थी. ज्यादा खून बह जाने के चलते रितु अब इस दुनिया को छोड़ कर जा चुकी थी.
तब रमेश ने देव से कहा, ‘‘भाई, जो होना था हो चुका. अब यह सोचो कि आगे क्या करना है.’’
देव ने कहा, ‘‘करना क्या है, चलो, चल कर खुद को पुलिस के हवाले कर देते हैं, शायद हमारी सजा कुछ कम हो जाए.’’
‘‘पागल जैसी बातें मत करो देव…’’
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. सभी के चेहरे पर पसीना आ गया.
‘‘इस वक्त कौन हो सकता है?’’ रमेश ने देव से पूछा.
‘‘पता नहीं.’’
‘‘तो जा न, तुरंत जा कर देख कि कौन है.’’
‘‘मैं जा कर देखूं…? नहींनहीं, मैं नहीं जाऊंगा… तू जा.’’
‘‘पागल मत बन… घर तेरा है, तो तुझे ही जाना पड़ेगा न… हम में से अगर कोई गया, तो किसी पर कोई भी शक हो सकता है.’’
‘‘वाह… पार्टी करनी है, ऐयाशी करनी है, तो यह मेरा घर है, हमारा घर है और अब जब मुसीबत आन पड़ी, तो तेरा घर हो गया…’’
कोई कुछ कह पाता, तब तक दरवाजे पर दस्तक बढ़ने लगी. सभी ने किसी तरह समझाबुझा कर देव को दरवाजा खोलने के लिए कहा.
किसी तरह खुद को ठीक करते हुए सामान्य दिखने की नाकाम कोशिश करते हुए देव डरासहमा सा दरवाजे के पास पहुंचा. उस ने देखा कि बाहर कामवाली गंगूबाई आई है.
देव ने चैन की सांस लेते हुए दरवाजा खोल दिया.
गंगूबाई ने देव को ऊपर से नीचे तक देखते हुए पूछा, ‘‘साहब, आप… सब ठीक तो है न?’’
‘‘हां, मैं तो ठीक हूं. पर, तुम ऐसा क्यों पूछ रही हो?’’ देव ने खुद को एक नजर नीचे से ऊपर की ओर देख कर पूछा.
‘‘नहीं, आप थकेथके से लग रहे हो न साहब, इसलिए पूछा. चलो, कोई बात नहीं, मैं आप के लिए गरमागरम कौफी बनाती हूं,’’ कहते हुए गंगूबाई ने अंदर आने की कोशिश की, तो देव ने उसे दरवाजे पर ही रोकते हुए कहा, ‘‘अरे नहीं, मुझे अभी कौफी पीने का मन नहीं है.’’
‘‘अच्छा तो कोई बात नहीं, आप जा कर आराम करो न. मैं तब तक घर की साफसफाई कर देती हूं. देखो न कल रात की पार्टी के बाद सब कितना गंदा पड़ा है.’’
‘‘आज तुम्हारी छुट्टी है. तुम अभी अपने घर जा सकती हो,’’ देव बोला.
‘‘क्यों…? अब जब मैं यहां आ ही गई हूं, तो काम कर ही लेती हूं न साहब.’’
गंगूबाई ने दोबारा अंदर आने की कोशिश की, तो इस बार देव की आवाज घबराहट की वजह से ऊंची हो गई, ‘‘तुम को एक बार में बात समझ नहीं आती है क्या? मुझे कुछ नहीं चाहिए. आज मैं आराम करना चाहता हूं.’’
‘‘अरे साहब, मैं तो आप के भले के लिए ही कह रही थी,’’ कहते हुए गंगूबाई की नजर रितु की फटी शर्ट पर पड़ी और फिर वह मुंह पर पल्लू रख कर हंसते हुए वहां से चली गई.
देव को कुछ समझ में नहीं आया. वह जल्दी से दरवाजा बंद कर वापस अपने दोस्तों के पास पहुंचा.
रमेश ने कहा, ‘‘इस से पहले कि कोई और आ जाए, हमें जल्द से जल्द इस की लाश को ठिकाने लगाना होगा.
‘‘देव, तू अपनी एक शर्ट निकाल और इसे पहना दे और इस के बाकी कपड़े कहां हैं?’’
सभी हड़बड़ाहट में कपड़े ढूंढ़ने लगे, तभी देव को बहुत सारा खून दिखाई दिया, तो वह बोला, ‘‘इतना सारा खून कैसे साफ होगा?’’
रमेश बोला, ‘‘सब हो जाएगा. हमें सारे सुबूत मिटाने होंगे, इसलिए हमें अभी पूरे घर को चमकाना होगा.’’
कुछ ही देर में सारा घर आईने की तरह चमक उठा जैसे मानो गई रात यहां कुछ हुआ ही नहीं था.
फिर वे लोग किसी तरह उस लाश को अपनी गाड़ी में डाल कर हाईवे की ओर निकल गए. पर वे यह नहीं जानते थे कि उन के खिलाफ पुलिस थाने में पहले ही शिकायत दर्ज हो चुकी है.
कुछ ही देर बाद पुलिस देव के मकान पर पहुंची. बहुत देर तक दरवाजा खटखटाने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला, तो पुलिस दरवाजा तोड़ कर अंदर घुस गई. घर इतना साफसुथरा देख कर पुलिस को भी यही लगा कि यहां कुछ हुआ ही नहीं है.
तभी इंस्पैक्टर के दिमाग में अचानक एक खयाल आया और उस ने अपने सभी सिपाहियों को घर के सारे कूड़ेदान चैक करने को कहा, मगर सभी कूड़ेदान एकदम खाली और साफसुथरे थे.
तभी पुलिस का ध्यान घर के फर्श पर गया. फर्श अभी भी गीला था और रूम फ्रैशनर की बहुत तेज खुशबू आ रही थी. इंस्पैक्टर समझ गया कि दाल में जरूर कुछ काला है.
पुलिस आसपास पूछताछ करने लगी और अपने कुछ खबरियों को काम पर लगा दिया, ताकि जैसे ही देव आए, उसे तुरंत पुलिस थाने बुला लिया जाए.
उधर देव अपने बाकी दोस्तों के साथ हाईवे पर तेज रफ्तार में गाड़ी भगा रहा था और एक खाई के पास पुलिया को देखते ही उस ने कुछ इस तरह से गाड़ी को पुलिया से ठोका, ताकि यह हादसा लगे. फिर उन्होंने एक नए सिमकार्ड से पुलिस को फोन कर के सड़क हादसे की जानकारी दी और वह सिमकार्ड वहीं तोड़ कर फेंक दिया.
पुलिस मौका ए वारदात पर पहुंची और गाड़ी को किसी तरह सावधानी से क्रेन की मदद से निकाल लिया गया. गाड़ी में रितु की लाश मिली, जिसे पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और इंस्पैक्टर ने रितु के घर वालों को इस बारे में जानकारी देने को कहा.
देव के घर आ कर उन चारों ने सोचा कि चलो जान छूटी, पर तभी एक बार फिर दरवाजे पर दस्तक हुई. उन सभी के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं.
इस बार रमेश ने दरवाजा खोला. पुलिस को सामने देख कर उन सभी की हवा खिसक गई.
एक सिपाही ने रमेश से पूछा, ‘‘देव तुम्हारा ही नाम है?’’
रमेश ने न में सिर हिलाया. पुलिस अंदर घुस गई और सिपाही ने दोबारा पूछा, ‘‘तुम में से देव कौन है?’’
देव ने घबराते हुए कहा, ‘‘जी, मैं ही हूं.’’
‘‘तुम्हें थाने बुलाया है.’’
यह सुन कर देव डर के मारे फूटफूट कर रोने लगा और एक ही एक बात दोहराने लगा, ‘‘मैं ने कुछ नहीं किया… मैं ने कुछ नहीं किया.’’
पर, सिपाही ने एक न सुनी और वे चारों थाने ले जाए गए.
थाने में कदम रखते ही रमेश ने अपने भाई नरेश को वहां बैठा हुआ पाया.
नरेश को वहां बैठा देख रमेश की आंखें हैरानी से चौड़ी हो गईं.
‘‘अरे नरेश, तू यहां कैसे?’’
नरेश रोता हुआ रमेश के गले लग गया और बोला, ‘‘भैया…’’
‘‘क्या हुआ? क्या बात है? सब ठीक तो है न?’’
‘‘भैया, रितु…’’
‘‘रितु क्या?
‘‘रितु अब इस दुनिया में नहीं रही भैया.’’
‘‘क्या… कैसे…’’
‘‘हां भैया, रितु की मौत की जांच के लिए उस के मांबाबा को यहां बुलाया गया है. मैं ने सोचा कि अगर यह सच हुआ, तो वे बेचारे यह सदमा कैसे सह पाएंगे, इसलिए मैं भी उन के साथ यहां चला आया.’’
‘‘पर, यह सब अचानक हुआ कैसे?’’
‘‘एक सड़क हादसे में हाईवे वाली पुलिया के पास. उस की मां का कहना है कि वह कल रात अपनी किसी सहेली के साथ एक पार्टी में गई थी, लेकिन रात को वापस आई ही नहीं.’’
पुलिया और हाईवे की बात सुनते ही रमेश के कान खड़े हो गए. नरेश कुछ कह पाता, उस के पहले ही पुलिस इंस्पैक्टर ने उसे लाश की पहचान करने के लिए अंदर भेज दिया और साथ ही, इन सब से पार्टी के बारे में पूछताछ होने लगी.
तभी रितु के पिताजी रोते हुए आए और हाथ जोड़ कर इंस्पैक्टर से कहने लगे, ‘‘मेरी बच्ची ने भला किसी का क्या बिगाड़ा था साहब… वह तो हमेशा सब से प्यार करने वाली लड़की थी. फिर उस के साथ ही यह दरिंदगी क्यों?’’
यह कहते हुए सदमे से उन के पैर लड़खड़ा गए, तभी नरेश और पुलिस इंस्पैक्टर ने मिल कर उन्हें संभाला और एक कुरसी पर बैठा दिया.
पुलिस ने उन चारों से पूछताछ कर के छोड़ दिया.
रितु के पिताजी हार मानने वालों में से नहीं थे. उन्होंने अपनी बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए कैंडल मार्च निकाला, सोशल मीडिया पर जा कर लोगों को अपनी मुहिम से जुड़ने की अपील की, ताकि वे अपनी बच्ची के लिए इंसाफ मिलने की मांग को और तेज कर सकें.
रितु के पिताजी की मेहनत बेकार नहीं गई. धीरेधीरे रितु को इंसाफ दिलाने के लिए सब से पहले उन का शहर, फिर उन का प्रदेश और फिर सारे देश में रितु के लिए इंसाफ की आवाजें उठने लगीं. जनता के दबाव में आ कर प्रदेश की सरकार ने केस सीबीआई के हवाले कर दिया.
फिर से केस की फाइल खुली और पूछताछ का सिलसिला फिर से शुरू हुआ. इस बार देव के घर काम करने वाली गंगूबाई से ले कर पार्टी में आई दूसरी सभी लड़कियों से गहराई से पूछताछ की गई. तब दिव्या ने अपना सच बताया कि उस ने अली को सब के सामने तमाचा मारा था.
देव के घर के आसपास के सभी लोगों और सीसीटीवी कैमरे वगैरह की पड़ताल बड़ी गहराई के साथ की गई, जिस में सीबीआई ने भी यही पाया कि सुबूतों को मिटाने की भरपूर कोशिश की गई थी, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने यह साबित कर दिया कि उस मासूम के साथ रेप किया गया था, जिस के चलते यह पक्का हो गया कि इन्हीं लड़कों ने मिल कर यह कांड किया था, जिस के बाद उन चारों को पुलिस हिरासत में ले लिया गया.
लेखिका – पल्लवी सक्सेना