Family Story : 70 साल के मुखियाजी दिलफेंक इनसान थे. वे अपने कुएं पर पानी भरने आई औरतों को खूब ताड़ते थे. निचली जाति की रामकली पर तो वे फिदा थे. एक दिन रामकली के पति रामलाल को पुलिस पकड़ कर ले गई. रामकली मुखियाजी के पास गई. आगे क्या हुआ.

मुखियाजी थे तो 70 साल के, लेकिन उन का कलेजा किसी जवान छोकरे जैसा ही जवान था. उन के कुएं पर पानी भरने के लिए जब औरतें आतीं, तब वे हुक्का पीते रहते और उन को निहारते रहते.

मुखियाजी को इस बात से कोई मतलब नहीं था कि कौन सी औरत उन के बारे में क्या सोच रही है. वे किसी औरत को कभी कनखियों से भी देखते थे. उन की नजर हमेशा गांव की औरतों के घूंघट पर ही रहती थी.

मुखियाजी हमेशा इस ताक में रहते थे कि कब पानी खींचने में घूंघट खिसके और वे उस औरत का चेहरा अच्छी तरह से देख कर तर हो जाएं. वे इस बात को जानते थे कि कोई औरत उन पर इस उम्र में दिलफेंक होने का लांछन नहीं लगाएगी.

अगर पानी भरने वाली औरत किसी निचली जाति की होती, तब तो मुखियाजी चहक उठते. सोचते, ‘भला इस की क्या मजाल, जो मेरे बारे में कुछ भी कह सके.’ अगर उस समय कुएं पर कोई और नहीं होता, तब वे तुरंत उस औरत के साथ बालटी की रस्सी खींचना शुरू कर देते. वे बोलते, ‘‘अरी रामलाल
की बहुरिया, तू इतनी बड़ी बालटी नहीं खींच सकती. रामलाल से कह कर छोटी बालटी मंगवा लेना. लेकिन वह क्यों लाएगा? वह तो अभी तक सो रहा होगा.’’

तब रामलाल की बहुरिया रामकली लाज के मारे सिकुड़ जाती थी, लेकिन वह रस्सी छोड़ भी नहीं सकती थी, क्योंकि मुखियाजी रस्सी को इसलिए नहीं पकड़ते थे कि वह उस रस्सी को छोड़ दे, वरना बालटी कुएं में गिरने का डर था.

रामकली लजा कर उस कुएं से पानी भर ले जाती. फिर सोचती कि अब यहां से पानी नहीं ले जाएगी, लेकिन बेचारी करती भी क्या? लाचार थी. उस गांव में दूसरा कुआं ऐसा नहीं था, जिस का पानी मीठा हो.

मुखियाजी रोज रामकली की बाट जोहते. रामकली सुबहसवेरे जल्दी आ कर पहले पानी भर लाती. फिर झाड़ूबुहारी करती और तब पति को जगाती.

रामकली सोचती कि सवेरेसवेरे कुएं पर मुखियाजी आ जाते हैं, इसलिए घर की झाड़ूबुहारी बाद में कर लिया करेगी, पानी पहले लेती आएगी.

अगले दिन जब रामकली भोर में मुखियाजी के कुएं पर पानी लाने गई, तब मुखियाजी हुक्का छोड़ कर उस के पास जा पहुंचे और बोले, ‘‘रामकली, आजकल तुम बड़ी देर से आती हो. रामलाल तुम को देर तक नहीं छोड़ता है क्या?’’ और फिर उन्होंने उस का हाथ पकड़ लिया.

रामकली लजा गई. वह धीरे से बोली, ‘‘बाबाजी, यह क्या कर रहे हो, कुछ तो शर्मलिहाज करो.’’

फिर भी मुखियाजी नहीं हटे. वे किसी बेहया की तरह बोले, ‘‘रामकली, तेरा दुख मुझ से अब नहीं देखा जाता है.

तू इतनी ज्यादा मेहनत करती है, जबकि रामलाल घर में पड़ा रहता है.’’

तकरीबन 35 साल पहले मुखियाजी की घरवाली 3 बेटों को छोड़ कर चल बसी थी. उस के बाद मुखियाजी ने किसी तरह जवानी काट दी. 2 बेटों को पुलिस महकमे में जुगाड़ लगा कर भरती करा दिया. एक बेटा शहर का कोतवाल बन गया था, जबकि दूसरा छोटा बेटा थानेदार था और तीसरा बेटा गांव में खेतीबारी करता था.

एक दिन मुखियाजी रामकली से बोले, ‘‘कोतवाल की अम्मां से तेरा चेहरा पूरी तरह मिलता है. तेरी ही उम्र में तो वह चली गई थी. जब मैं तुझे देखता हूं, तब मुझे कोतवाल की अम्मां याद आ जाती है.’’

सचाई यह थी कि कोतवाल की अम्मां काले रंग की थी. वह मुखियाजी को कभी पसंद नहीं आई थी, जबकि रामकली गोरीचिट्टी और खूबसूरत होने के चलते उन को खूब अच्छी लगती थी.

जब रामकली कुएं के पास आती, तब मुखियाजी अपनी घोड़ी के पास पहुंच कर कहते, ‘‘आज तो तेरे ऊपर सवारी करूंगा.’’

मुखियाजी इसी तरह के और भी फिकरे कसते थे. तब बेचारी रामकली लाज के मारे सिकुड़ जाती. वह सोचती कि बूढ़ा पागल हो गया है.

एक दिन रामकली ने सहम कर अपने पति रामलाल से कहा, ‘‘सुनोजी, ये मुखियाजी कैसे आदमी हैं? हर समय मुझे ही निहारते रहते हैं.’’

तब रामलाल खड़ा हो गया और बौखला कर बोला, ‘‘देख रामकली, तू अपनेआप को बड़ी सुंदरी समझती?है, बडे़बूढ़ों पर भी आरोप लगाने से नहीं चूकती है. आगे से कभी ऐसी बात कही तो समझ लेना…’’

मुखियाजी के पास तो इलाके के दारोगाजी, तहसीलदार सभी आते थे. गांव वालों का काम उन दोनों के दफ्तरों से पड़ता है. अपना काम निकलवाने के लिए मुखियाजी सिपाही को भी ‘दारोगाजी’ कहते थे.

कोतवाल के बाप से ‘दारोगाजी’ सुन कर सिपाही फूले न समाते थे. मुखियाजी का हुक्म मानने में वे तब भी नहीं हिचकिचाते थे.

रामकली को देख कर मुखियाजी के दिमाग में एक कुटिल बात आई, ‘क्यों न रामलाल को किसी केस में फंसा दिया जाए? जब रामलाल जेल में होगा, तब रामकली मदद के लिए मेरे पास खुद ही चली आएगी.’

मुखियाजी ने उन सिपाहियों को समझाया, ‘‘रामलाल देर रात कहीं से लौट कर आता है. ऐसा मालूम पड़ता है कि यह बदमाशों से मेलजोल बढ़ा रहा है. काम कुछ नहीं करता है, फिर भी उन सब का खानापीना ठीक चल रहा है.’’

यह सुन कर सिपाही चहक उठे. उन्होंने सोचा कि मुखियाजी कोतवाल साहब से इनाम दिलवाएंगे. अगर मौका लग गया, तो तरक्की दिलवा कर हवलदार भी बनवा देंगे.

अंधियारी रात में चौपाल से लौटते समय रामलाल को पकड़ कर सिपाही थाने ले गए. सुबह सारी बात मालूम होने पर रामकली मुखियाजी के पास आई और पूरी बात बताई.

तब अनजान बने मुखियाजी ने गौर से सारी बातें सुनीं. वे बोले, ‘‘ठीक है, ठीक है, आज मैं बड़े दारोगाजी के पास जाऊंगा. तू 2 घंटे बाद कुछ खर्चेपानी के लिए रुपए लेती आना.’’

2 घंटे बाद रामकली 300 रुपए ले कर मुखियाजी के पास आई, तब वे बोले, ‘‘आजकल 300 रुपए को कौन पूछता है? कम से कम 1,000 रुपए तो चाहिए.’’

थोड़ी देर रुकने के बाद मुखियाजी बोले, ‘‘कोई बात नहीं, एक बात सुन…’’ और फिर घर की दीवार की ओट में मुखियाजी ने रामकली का हाथ पकड़ लिया और बोले, ‘‘तू बिलकुल कोतवाल की अम्मां जैसी लगती है.’’

उसी समय मुखियाजी की पतोहू दूध का गिलास ले कर उन की तरफ धीरे से आई. अपने बूढ़े ससुर को जवान रामकली का हाथ पकड़े देख कर वह हैरान रह गई. उस के हाथ से दूध का गिलास छूट गया. रामकली की आंखों से टपटप आंसू गिरने लगे.

मुखियाजी ने पलटा खाया और बोले, ‘‘मेरे छोटे बेटे की तो 4 बेटियां ही हैं. उस का भी तो खानदान चलाना है. मैं तो अपने बेटे का दूसरा ब्याह करूंगा.’’

‘‘रामकली…’’ मुखियाजी बोले, ‘‘तू बिलकुल चिंता मत कर. तेरा रामलाल आएगा और आज ही आएगा, चाहे 1,000 रुपए मुझे ही क्यों न देने पड़ें. मेरे रहते पुलिस की क्या मजाल, जो रामलाल को पकड़ कर ले जाए. मैं तो तुझे देख रहा था, तू तो इस गांव की लाज है.’’

कुछ घंटे बाद मुखियाजी रामलाल को छुड़ा लाए. रामलाल और रामकली दोनों मुखियाजी के सामने सिर झुका कर खड़े थे. वे अहसानों तले दबे थे.

कुछ दिनों के बाद मुखियाजी ने अपने छोटे बेटे की सगाई पड़ोस के गांव के लंबरदार की बेटी से कर दी. बरात विदा हो रही थी. बरातियों में चर्चा थी, ‘मुखियाजी को अपने छोटे बेटे का वंश भी चलाना है.’

दूसरी तरफ अंदर कोठे में छोटे थानेदार की बहुरिया टपटप आंसू बहा कर अपने कर्मों को कोस रही थी. उस की चारों बेटियां अपनी सौतेली मां के आने का इंतजार डरते हुए कर रही थीं.

लेखक – बृजबाला

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