युवाओं की दुनिया आजकल ऐसे आइडल ढूंढ़ने लगी है जो कुछ करतेधरते नहीं हैं. मोबाइल पर रील्स, चुटकुले, गौसिप, एआई जेनरेटड हाफबेक्ड मोटिवेशनल मैसेज, पौर्न या सैमिपौर्न क्लिप्स ने इन्फ्लुएंसर्स की एक नई खेप तैयार कर दी जो राजनीति के लीडरों जैसे हैं जिन में कोई सौलिड बात कहने की न कैपेसिटी है और न ही कोई उन्हें सीरियसली लेता है.

जिन के लाखों फौलोअर्स हैं, वे पैसे तो कमा रहे हैं लेकिन फिल्मस्टारों से भी ज्यादा गए गुजरे हैं क्योंकि उन्होंने मोबाइल डिवाइस पर जो भी भेजा वह आम व्यूअर्स की जिंदगी को संवारने लायक है ही नहीं. कुछ मिनट बीत जाएं, मैट्रो या बस की जर्नी पूरी हो जाए, रैस्तरां में बैठे किसी के इंतजार में 10-15 मिनट बीत जाएं, इन रील्स की बस यही कीमत रह गई है. इन्फ्लुएंसर्स से ज्यादा इर्रिस्पौंसिबल तो वे व्यूअर्स हैं जो अपने समय की कीमत नहीं समझ रहे.

मोबाइल ने आज हर तरह की इन्फौर्मेशन को आप के हाथ में लाना पौसिबल कर दिया है. यह तो उन युवाओं की गलती है जो इस इंटैलिजैंट इन्वैंशन का इस्तेमाल बेवकूफी के कृत्यों में कर रहे हैं. आजकल जिंदगी कौंप्लैक्स होती जा रही है. सरकारों और कौर्पोरेटों का दखल आम जिंदगी में बढ़ रहा है. औनलाइन फैसिलिटीज के चक्कर में हरेक की प्राइवेसी पर बुरी तरह हमले हो रहे हैं.

मोबाइल में आप क्या देखें, यह कुछ लोगों की कंपनियों के हाथ में है. रील्स या मोटिवेशनल मैसेज आप देखते नहीं हैं, ये आप को दिखाए जाते हैं. यह देखने की आप की इच्छा नहीं जो आप देख रहे हैं बल्कि यह दिखाने की उन कंपनियों की इच्छा है जो इन प्लेटफौर्मों को चला रही हैं. हर मोबाइल ऐप आप के बारे में हरेक छोटी सी बात को भी जानना चाहती है.

अगर कभी आप से कोई गलती हो जाए तो आप की पूरी जिंदगी आप की उस गलती को पकड़ने वालों के हाथों में होगी. तब आप कहीं से भी छूट न सकेंगे. आज कुछ भी छिपाना आसान नहीं है. हैकर्स आप की जानकारी जमा कर आप को कभी भी ब्लैकमेल कर सकते हैं. सब से बड़ी बात यह है कि इस औनलाइन इन्फौर्मेशन, एंटरटेनमैंट, मैसेजिंग के पीछे आप को लूटने की साजिश रची गई है.

पहले आप को काफीकुछ मुफ्त में परोस कर मोबाइल पर बने रहने की लत डाली गई, ऐप्स ने लुभावने सपने दिखाए. फिर आप से पैसे मांगे जाने लगे. कुछ पैसों से शुरू कर ये लोग आप से अब सैकड़ों रुपए सालाना लेने लगे हैं. इन प्लेटफौर्मों पर सरकारों का कड़ा कंट्रोल है.

सरकार जब चाहे जिस प्लेटफौर्म की बांह मरोड़ सकती है. इन प्लेटफौर्मों को पैसा कमाना है, उन्हें व्यूअर्स के राइट्स से कोई मतलब नहीं है. वे सरकारों की हर बात मान रहे हैं. मोबाइलों की वजह से 10 साल पहले इजिप्ट में तख्ता पलट गया था. आज दुनियाभर की सरकारें अपने मतलब के लिए मोबाइल तकनीक का मिसयूज कर रही हैं. ओटीपी के चक्करों में आप को फंसा कर आप के समय को बरबाद किया जा रहा है. मोबाइल रिवोल्यूशन की अभी तो शुरुआत है.

एआई यानी आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस के बाद इन्फ्लुएंसर्स भी कंपनियों के नकली लोग होंगे और व्यूअर्स अपनी असली कमाई देने को मजबूर हो रहे होंगे. टैक्नोलौजी कौर्पोरेट्स की तानाशाही शुरू हो चुकी है और उन की बनाई ‘मोबाइल जेलों’ में करोड़ों लोग पहले से ही फंस चुके हैं. आप किस खेत की मूली हैं.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...