महल्ले की सभी औरतें अच्छी पढ़ीलिखी थीं, पर फिर भी बतूल बी जैसी अनपढ़गंवार औरत उन्हें छल कैसे लेती थी. वह थी तो घरों का काम करने वाली, पर उन घरों में घुस कर वह उन के बारे में जान लेती थी. फिर कुछ ऐसा कर देती थी कि हर घर में उसी की चर्चा छिड़ी रहती थी. बतूल बी ऐसा क्या करती थी?

ट्रक कब का आ चुका था. सीएनजी की लंबी लाइन के चलते निकलने में देर हो गई. रात को साढ़े 11 बजे हम नए शहर के नए मकान में पहुंचे. खाना रास्ते में ही खा लिया था. किसी तरह पलंग डाले और सो गए.

सवेरे हैदर ने फोन कर के थाने से 3 सिपाहियों को बुला लिया. दोपहर तक बहुत सा सामान उन्होंने तरतीब से लगा दिया. एक सिपाही होटल से खाना ले आया. फिर तीनों को छुट्टी देते हुए वहीदा ने किसी मेड को लाने के लिए कहा. रसोईघर का सब सामान धोपोंछ कर लगाना था, जो उस के अकेले के बस का रोग न था.

आधा घंटा आराम कर के वहीदा आसिया और इमरान को मैसेज करने बैठ गई. बदली का हुक्म आने के तुरंत बाद से पार्टियों और भोज के न्योतों का जो सिलसिला बंधा था, वह ट्रक में सामान भर कर रवाना हो जाने के बाद ही रुका था. सवेर नाश्ता एक के यहां, दोपहर का खाना किसी दूसरी जगह तो रात का भोजन तीसरी जगह. रात में वहीदा इतना थक जाती थी कि बच्चों को लंबा मैसेज लिखना भी उस से नहीं हो पाता था.

वहीदा मोबाइल में बिजी थी कि तभी 2 सिपाही आ गए. एक औरत भी साथ आई थी. वहीदा को हैरानी हुई. सिपाही ने बताया कि वह औरत इसी महल्ले में काम करती है. उस ने खुद ही पुकार कर काम करने की इच्छा जाहिर की, तो वे उसे ले आए.

वहीदा को मोबाइल पर बिजी देख कर हैदर ने उस से पूछताछ शुरू की, ‘‘इस महल्ले में किसकिस के घर काम करती हो?’’

‘‘खान मजिस्ट्रेट के यहां, नीली हवेली वालों के यहां, वे जो बड़े इंजीनियर साहब हैं न, उन के यहां और वे जो दोनों कालेज में पढ़ाते हैं, उन के यहां भी. सच तो यह है कि महल्ले में जितने भी बड़े लोग हैं, उन सब के यहां मैं ही काम करती हूं,’’ उस औरत ने बड़ी शान से बताया.

‘‘सामने वालों के घर काम नहीं करतीं क्या?’’ हैदर ने संकेत से पूछा. उन से हैदर की जानपहचान थी. उन्हीं की मदद से हमें यह मकान मिला था.

बहुत ही राजभरे अंदाज से वह औरत आवाज दबा कर बोली, ‘‘सुना है, साहब के चचा ससुर ने किसी गाने वाली से निकाह किया है. मैं ऐसे घरों में काम नहीं करती.’’

वह खनकती हुई आवाज और राजभरा अंदाज देख कर वहीदा को मोबाइल रख देना पड़ा. नजर उठाई तो देखा, बड़ेबड़े लाल फूलों वाली कसी हुई साड़ी, उसी रंग का फैशन वाला आस्तीन का ब्लाउज, छोटे से जूड़े में फूल लगाया हुआ, आंखों में काजल की गहरी लकीर, होंठ पान की लाली से लाल, एक पैर पीछे कर के दीवार से टिकी वह औरत हथेली पर तंबाकू मलते हुए खड़ी थी.

जब उस ने वहीदा को अपनी ओर देखते पाया, तो बोली, ‘‘मैडमजी, हम सैयदों के खानदान से हैं. हमारा काम भी बहुत अच्छा है. इधर एक जज साहब के यहां मैं काम करती थी. बदली हो जाने से वे चले गए. 4 साल बाद और भी बड़े साहब बन कर लौटे तो बोले, ‘बतूल बी को बुलाओ. हमारे घर का काम तो बस वही कर सकती है.’ ऐसा नाम है हमारा.’’

वहीदा ने अनसुनी करते हुए कहा, ‘‘दोनों समय के बरतन, कपड़े होंगे, रोज पोंछा लगाना होगा. सारी शैल्फें भी साफ करोगी. घर में हम

2 ही लोग हैं, पर बरतन 4 के सम झ कर चलो. छुट्टियों में मेहमान आते हैं. हां, बरतनों में प्लास्टिक की सारी बालटियां, कुरसियां भी चमकानी पड़ेंगी. ऐसा न हो कि बाद में तकरार करो कि ये बरतनों में नहीं आते.’’

‘‘नहीं बीबीजी,’’ कल्ले में तंबाकू भरते हुए वह बोली, ‘‘मैं तकरार नहीं करती. मेरा रिकौर्ड है, एक बार जिस का काम पकड़ लिया, फिर छोड़ा नहीं.’’

तब वहीदा क्या जानती थी कि उस ने यह रिकौर्ड कैसे बनाया है. 1,500 रुपए पर बात तय हो गई. बतूल बी काम पर आने लगी.

हैदर पुलिस महकमे में थे. एक जगह पर 2-3 साल से ज्यादा न रह पाते थे. आसिया और इमरान के स्कूल में जाने के काबिल होते ही वहीदा ने उन्हें बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया. हर शहर के माहौल में जो भिन्नता और शिक्षण संस्थाओं में लैवल का जो फर्क होता है, उस से बच्चे तालमेल नहीं बैठा पाते. बच्चों के जाने से वह अकेली हो जाती, तो किसी न किसी प्राइवेट कालेज में समय गुजारने को नौकरी कर लेती.

दूसरे दिन बतूल बी काम पर आई. आते ही पूछा, ‘‘मैडमजी, आप सैयद हैं या शेख?’’

वहीदा ने तेज आवाज में कहा, ‘‘मैं सैयद हूं या शेख, तुम्हें इस से क्या? काम करना है करो, बेकार की बातें पूछने की कोई जरूरत नहीं,’’ वहीदा को गुस्सा तो बहुत आया. चली है काजल की कोठरी में घुसने और चाहती है कालिख भी न लगे.

तीसरे दिन बतूल बी बोली, ‘‘आप के बच्चे नहीं हैं क्या? कितने साल हुए आप की शादी को? मेरे मामू तावीज देते हैं. कहें तो ले आऊं?’’

वहीदा ने कहा, ‘‘तुम्हें फिक्र करने की जरूरत नहीं. मेरे 2 जुड़वां बच्चे हैं आसिया और इमरान, 10 साल के. बोर्डिंग में पढ़ते हैं. छुट्टियों में यहां आते हैं. हम लोग भी मिलने जाते हैं उन से.’’

फर्श पोंछतेपोंछते वह वहीं बैठ गई. कमर में खोंसी हुई थैली निकाल कर वह तंबाकू रगड़ते हुए बोली, ‘‘आप को बच्चों की याद नहीं आती? मुझे तो कोई लाख रुपए दे, तब भी अपने बच्चों को नजरों से दूर न भेजूं. आप का मन कैसे होता है?’’

वहीदा ने उसे घूर कर देखा, ‘‘मेरे बच्चे पढ़ेंगेलिखेंगे, बड़े आदमी बनेंगे, उन का भविष्य बनाने के लिए कुछ बलिदान तो देना ही होगा. तुम्हारी लड़कियां गंदी बहती हुई नाक लिए तुम्हारे साथ बरतन मांजती फिरती हैं. तुम उन्हें स्कूल क्यों नहीं भेजती?’’

‘‘वे जाती ही नहीं तो मैं क्या करूं?’’ वहीदा की बात उड़ा कर वह अपने काम में लग गई.

धीरेधीरे वहीदा बतूल बी को सम झ रही थी. उसे इधर की उधर और उधर की इधर लगाने का बहुत  शौक था. दोपहर का समय वहीदा का लिखनेपढ़ने का होता. तब इस की कैंची की तरह चलती जबान उसे बहुत बुरी लगती.

एक दिन वह बोली, ‘‘आप 2 लोग हैं घर में. पर इतने सारे बरतन निकलते हैं आप के. खान मजिस्ट्रेट के घर में मियांबीवी और 3 बच्चे हैं. मुट्ठीभर चावल पकाती हैं और बैगन की सब्जी.’’

वहीदा ने टोका, ‘‘बतूल बी, दूसरों के घर में क्या पकता है और क्या नहीं, मु झे इस से कोई मतलब नहीं.’’

वह मन मार कर चुप रह गई. वहीदा ने सोचा कि वह उन का स्वभाव सम झ गईर् होगी, पर कुत्ते की दुम तो टेढ़ी रहती है. 3 दिन बाद फिर वही मुद्दा निकाल बैठी.

‘‘आप की मैं सब जगह तारीफ करती हूं मैडमजी. वह 2 नंबर के मकान वाले हैं न, इमली के पेड़ के सामने वाला मकान है, एक से एक बढि़या सिंगार कर के निकलती हैं मांबेटी. पर मकान देखो तो जैसे कबाड़खाना, रसोईघर के बरतन काले कीट…’’

वहीदा ने उसे डांट दिया, ‘‘बतूल बी, मैं ने कह दिया है न तुम से. मेरी तारीफ कहीं मत करो, न दूसरों की बातें मु झे बताओ. और देखो, मु झे कालेज का बहुत काम रहता है. चुपचाप अपना काम कर के चली जाया करो.’’

वैसे, बतूल बी के काम से वहीदा को कोई शिकायत नहीं थी, इसीलिए एक दिन सामने के मकान वाली मिसेज कादरी ने जब कहा कि आप ने बतूल बी को काम पर लगा कर अच्छा नहीं किया, तो वहीदा चौंक गई.

उन्होंने आगे बताया, ‘‘अभी नयानया आप के घर का काम पकड़ा है, इसलिए कुछ दिन बराबर काम पर आएगी, फिर शादीब्याह या बीमारी का बहाना बना कर चली जाया करेगी. समय पर नहीं आएगी. आप उस से कुछ कहेंगी तो काम छोड़ देगी. दूसरी किसी को अपनी जगह पर काम भी नहीं करने देगी. लड़ झगड़ कर, मार कर भगा देगी.

‘‘आप को उसे उस की सभी गलतियों के साथ स्वीकारना पड़ेगा. बड़ी चच्ची और बेगम खान के साथ यही हुआ. महीनाभर दोनों ने खुद काम किया, फिर हार कर उसे बुलाना पड़ा.’’

वहीदा यह सुन कर दंग रह गई. धीरेधीरे महल्ले की दूसरी औरतों से भी बतूल बी की बातें सुनने को मिलीं.

वहीदा ने सोचा, ‘मैं तो उस से ज्यादा बोलती नहीं. जब तकरार की नौबत  आएगी, तब देखा जाएगा.’

उस दिन मिसेज कादरी के बेटे के जन्मदिन की पार्टी में महल्ले की तकरीबन सभी औरतें आई थीं. वहीदा ने एक खास बात नोट की. बेगम खान और बड़ी चच्ची ने उन से बात नहीं की. खदीजा बेगम के बात करने का ढंग ऐसा था, जैसे किसी बात की टोह में लगी हों.

अगर इन लोगों ने अपने घमंड में ऐसा किया होता तो वहीदा उन को अनदेखा कर देती, पर उन्हें लगा जैसे वे सब उन के बारे में किसी भरम का शिकार हैं.

पार्टी के बाद वहीदा ने मिसेज कादरी को यह बात बता कर सचाई का पता करने को कहा. मिसेज कादरी ने 2 दिन बाद उन्हें जोकुछ बताया, उसे सुन कर वे हैरान रह गई. तुरंत उन्होंने मिसेज खान, बड़ी चच्ची, खदीजा बेगम और उन तीनों को, जिन के घर बतूल बी काम करती थी, अपने घर बुलाया.

कोरोना हटने के बाद जैसे बहुत सारे राज फाश हुए थे, वैसे ही उन सब के मिलबैठने से बतूल बी की लगाईबु झाई के अनेक राज सामने आए. उन सब को मालूम हुआ कि उस अनपढ़गंवार औरत द्वारा वे सब कैसी छली गई हैं.

मिसेज खान को बतूल बी ने बताया कि मैं यानी वहीदा कहती है कि वे एक समय खा कर पैसे बचाती हैं, इसीलिए सोने से लदी रहती हैं, बड़ी चच्ची को बताया कि मैं उन के बनठन कर घूमने पर एतराज करती हूं.

वहीदा ही नहीं, बल्कि सब की पोल वहां खुल गई. जिन घरों में बतूल बी काम करती थी, उन सब की बात वह इधर से उधर करती थी. कभी पूरी सच्ची बात बता कर, कभी बात का बतंगड़ बना कर उस ने सब के मन एकदूसरे की ओर से फेर दिए थे. वैसे भी बात को नमकमिर्च लगा कर बताने की कला पीढ़ी दर पीढ़ी इन लोगों में चली आती है.

सब की बात सुन कर वहीदा ने कहा, ‘‘हमारे लिए यह शर्म की बात है कि एक साधारण मेड द्वारा हम छले जाएं. कुसूर बहुतकुछ हमारा भी है. हम क्यों इसे बढ़ावा देते हैं? हमें चाहिए कि जैसे ही यह दूसरों की बुराइयां करने लगे, इसे रोक दो.

हम दूसरों की बात बड़े शौक से सुनते हैं, पर दूसरे हमारे बारे में कुछ बोलें, यह हमें सहन नहीं होता. हमारी इसी सोच का फायदा बतूल बी ने उठाया है.’’

बड़ी चच्ची ने वहीदा का समर्थन किया. वे बोलीं, ‘‘जो हुआ सो हुआ. अब यह बताओ कि किया क्या जाए? उसे सबक कैसे सिखाया जाए?’’

वहीदा ने कहा, ‘‘हम सब बतूल बी को एक महीने का नोटिस दे दें. इस एक महीने में वह दूसरे महल्ले में काम ढूंढ़ ले. एक महीने में वह अपनी आदतें सुधार लेगी तो उसे काम पर से नहीं हटाएंगे.’’

वहीदा की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि बतूल बी वहां आ गई. सब को वहां देख वह कुछ घबराई, कुछ हैरान हुई.

वह सिर  झुका कर बरतन उठाने चली ही थी कि वहीदा ने पुकार लिया और कहा, ‘‘बतूल बी, हम सब को तुम्हारी लगाईबु झाई का पता चल चुका है. अब तुम कहीं और काम ढूंढ़ लो. ठीक एक महीने बाद तुम को इन सातों घरों से जवाब मिल जाएगा.

रही तुम्हारे इस रिकौर्ड की बात कि तुम किसी दूसरी मेड को काम नहीं करने दोगी, तो अच्छी तरह सुन लो कि हम ने उस का भी इंतजाम कर लिया है. एक महीने बाद मेरे 2 सिपाही तुम्हें इस महल्ले में घुसने भी नहीं देंगे.’’

पासा पलट चुका था. बतूल बी खामोश खड़ी रही.

एक हफ्ते बाद हैदर के नाम क्वार्टर अलौट हो गया. वहीदा ने वह महल्ला छोड़ दिया. कोई 2 महीने बाद ईद

मिलने महल्ले में गई तो पता चला कि बतूल बी अब सीधी हो गई है और उस ने मिसेज कादरी के घर का भी काम पकड़ लिया है.

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