देशभर में कुत्तों का खौफ बढ़ रहा है. भोपाल शहर में 16 जनवरी, 2024 को 1-2 नहीं, बल्कि 45 लोगों को कुत्तों ने काट लिया था. इस के हफ्तेभर पहले ही कारोबारी इलाके एमपी नगर में महज डेढ़ घंटे में 21 लोगों को कुत्तों ने काटा था. छिटपुट घटनाओं की तो गिनती ही नहीं.

लेकिन दहशत उस वक्त भी फैली थी, जब अयोध्या इलाके में रहने वाले एक मजदूर परिवार के 7 महीने के मासूम बच्चे को कुत्तों के झुंड ने घसीट कर काटकाट कर मार डाला था. उस बच्चे का एक हाथ ही कुत्तों ने बुरी तरह से चबा डाला था.

देश के हर छोटेबड़े शहर की तरह भोपाल भी कुत्तों से अटा पड़ा है. कुत्तों की सही तादाद का आंकड़ा नगरनिगम के पास भी नहीं है, लेकिन पालतू कुत्तों की संख्या केवल 500 है. इतने ही लोगों ने अपने पालतू कुत्तों का रजिस्ट्रेशन कराया है, वरना तो पालतू कुत्तों की तादाद 10,000 से भी ज्यादा है.

लेकिन नई समस्या पालतू या आवारा कुत्तों की तादाद से ज्यादा उन का खौफ है, जिस का किसी के पास कोई हल या इलाज नहीं दिख रहा है.

इलाज तो कुत्तों के काटे का भी सभी को नहीं मिल पाता, क्योंकि ऐसे बढ़ते मामलों के मद्देनजर अस्पतालों में एंटी रेबीज इंजैक्शनों का टोटा पड़ने लगा है.

10 जनवरी, 2024 को कुत्ते के काटने के बाद जब 45 लोग एकएक कर जयप्रकाश अस्पताल पहुंचे थे, तब कुछ को ही ये इंजैक्शन मिल पाए थे.

वैसे तो कुत्तों का खौफ पूरे देश और दुनियाभर में है, लेकिन भोपाल के हादसों ने सभी का ध्यान अपनी तरफ खींचा है सिवा सरकार और नगरनिगम के, जिन का कहना यह है कि जब वे कुत्तों पर कोई कार्यवाही करते हैं, तो ?ाट से कुत्ता प्रेमी आड़े आ जाते हैं.

14 जनवरी, 2024 को जब नगरनिगम की टीम आवारा कुत्तों को पकड़ने पिपलानी इलाके में पहुंची, तो एक कुत्ता प्रेमी लड़की उस टीम से भिड़ गई. नगरनिगम ने उस लड़की के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी.

यह जान कर हैरानी होती है कि भोपाल में नगरनिगम अमला अब तक तकरीबन 7 कुत्ता प्रेमियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा चुका है.

क्या करें इन कुत्तों का

जाहिर है कि कुत्ता प्रेमियों का विरोध ‘कुत्ता पकड़ो मुहिम’ में बाधा बनता है. कई एनजीओ तो बाकायदा कुत्ता प्रेम से फलफूल रहे हैं. इन की रोजीरोटी ही कुत्ता प्रेम है. इन लोगों को उन मासूमों की मौत से कोई लेनादेना नहीं, जिन्हें कुत्तों ने बेरहमी से काटकाट कर और घसीटघसीट कर मार डाला.

आवारा और पालतू कुत्तों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है, तो इस की बड़ी वजह कुत्तों की नसबंदी न हो पाना भी है जो आसान काम नहीं, लेकिन इस बाबत तो स्थानीय निगमों को जिम्मेदारी लेनी ही पड़ेगी कि वे ढिलाई बरतते हैं और हरकत में तभी आते हैं, जब हादसे बढ़ने लगते हैं.

लाख टके का सवाल जो मुंहबाए खड़ा है वह यह है कि इन कुत्तों का क्या किया जाए? इन्हें मारो तो दुनियाभर के लोगों की हमदर्दी और कानून आड़े आ जाते हैं और न मारो तो बेकुसूर लोग परेशान होते हैं. कई मासूमों की मौत ने तो इस चिंता को और बढ़ा दिया है. जहां नजर डालें, चारों तरफ कुत्ते ही कुत्ते दिखते हैं.

धर्म भी कम जिम्मेदार नहीं

कुत्तों के हिंसक होने की कोई एक वजह नहीं होती. भोपाल के हादसों के बीच कुछ ज्ञानियों ने मौसम को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की, लेकिन यह दलील लोगों के गले नहीं उतरी.

असल में लोगों की धार्मिक मान्यताएं भी इस की जिम्मेदार हैं, जो यह कहती हैं कि कुत्तों को शनिवार के दिन खाना खिलाने से जातक पर शनि और राहू का प्रकोप नहीं होता. भोपाल में जगहजगह ऐसे सीन देखने को मिल जाते हैं, जिन में राहूशनि पीडि़त लोग कुत्तों का भंडारा कर रहे होते हैं.

भोपाल के ही शिवाजी नगर इलाके में हर शनिवार की शाम एक बड़ी कार रुकती है, तो कुत्ते जीभ लपलपाते उस की तरफ लपक पड़ते हैं.

इस गाड़ी से 2 सभ्य सज्जन उतरते हैं और कुत्तों को बिसकुट, रोटी, ब्रैड वगैरह खिलाते हैं और इतने प्यार से खिलाते हैं कि पलभर को आप यह भूल जाएंगे कि इन कुत्तों की वजह से औसतन 5 लोग रोज अस्पतालों के चक्कर काटते हैं और हैरानपरेशान होते हैं.

कहना तो यह बेहतर होगा कि इन धर्मभीरुओं की वजह से लोग तकलीफ उठाते हैं और पैसा भी बरबाद करने को मजबूर होते हैं.

कुत्तों के इस सामूहिक और सार्वजनिक भोज के नजारे में दिलचस्प बात यह भी है कि इस वक्त कुत्ते बिलकुल इनसानों की तरह अपनी बारी के आने का इंतजार इतनी शांति और अनुशासन से करते हैं कि लगता नहीं कि ये वही कुत्ते हैं, जो बड़ी चालाकी से घात लगा कर राह चलते लोगों की पिंडली अपने दांतों में दबा लेते हैं या फिर ग्रुप बना कर ‘भोंभों’ करते हुए राहगीरों और गाडि़यों पर ?ापट्टा मारते हैं.

नेताओं के प्रिय कुत्ते

इस में शक नहीं है कि गाय के साथसाथ कुत्ता पुराने जमाने से ही आदमी का साथी और पालतू रहा है. महाभारत काल में तो कुत्ता पांडवों के साथ स्वर्ग तक गया था.

हुआ यों था कि धर्मराज के खिताब से नवाजे गए युधिष्ठिर के लिए जब स्वर्ग का दरवाजा खुला, तो वे अड़ गए कि जाऊंगा तो कुत्ता ले कर ही, वरना नहीं जाऊंगा.

बात बिगड़ने लगी, तो उपन्यासकार वेद व्यास ने सुखांत के लिए यह बताते हुए सस्पैंस खत्म किया कि उस कुत्ते के वेश में यमराज ही थे, जो युधिष्ठिर का इम्तिहान ले रहे थे.

यानी, पौराणिक काल से ही कुत्ता आम के साथसाथ खास लोगों और शासकों का प्रिय रहा है. मौजूदा दौर में कई नेताओं का कुत्ता प्रेम अकसर खबर बनता है.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का प्रिय कुत्ता कालू तो इंटरनैट सैलिब्रिटी कहलाता है. यह लैब्राडोर नस्ल का कुत्ता गोरखपुर में उन के मठ में रहता है और पनीर खाने का शौकीन है.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी कुत्तों के शौकीन हैं. उन के नए कुत्ते का नाम ‘नूरी’ है, जो उन्होंने अपनी मां सोनिया गांधी को कर्नाटक चुनाव के दौरान तोहफे में दिया था. इस कुत्ते की नस्ल जैक रसेल टैरियर है.

यहां बताना प्रासंगिक है कि इस कुत्ते (शायद कुतिया) का नाम ‘नूरी’ रखने पर एआईएमआईएम के एक नेता मोहम्मद फरहान ने इसे उन लाखों मुसलिम लड़कियों की बेइज्जती बताया था, जिन का नाम नूरी है.

भोपाल के हादसों के बाद साध्वी उमा भारती ने भी कुत्ता प्रेमियों को लताड़ लगाई थी. कुत्तों के खौफ से बचने के लिए उन्होंने कुत्तों के लिए अलग से अभयारण्य बनाए जाने की बात कही थी. मुमकिन है, अब गौशालाओं की तर्ज पर कुत्ताशालाएं खुलने की मांग उठने लगे.

लेकिन हल यह है

देशभर में कुत्तों के काटने के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, साल 2023 में 27 लाख,

50 हजार लोगों को कुत्तों ने काटा था. यह एक चिंताजनक आंकड़ा है, क्योंकि इन में से 20,000 लोग रेबीज से मरे. ऐसे में कोई वजह नहीं कि कुत्तों से हमदर्दी रखी जाए, लेकिन उन्हें मार देना भी हल नहीं.

बेहतर तो यह होगा कि लोग कुत्ते पालना बंद करें, इन्हें खाना देना बंद करें, अपने धार्मिक अंधविश्वास छोड़ें. इन सब से समस्या खत्म भले न हो, लेकिन कम तो जरूर होगी.

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