‘अशफाक अंसारी, वल्द एसआर अंसारी, ऐशबाग, भोपाल, आप को रिहा किया जाता है और पुलिस की गलती के लिए अदालत आप से खेद जाहिर करती है,’ जज साहब का लिखा यह वाक्य पढ़ कर जेलर ने अशफाक को सुना दिया और शाम के 4 बजे उसे रिहा कर दिया गया.

पुलिस द्वारा दिए गए 15 सौ रुपए के साथ जब अशफाक भोपाल लौटा, तो वहां की दुनिया देख कर दंग रह गया. महज 4 सालों में ही उस की दुनिया उजड़ गई थी.

पुलिस की एक छोटी सी भूल ने अशफाक को सड़क पर ला कर पटक दिया था. वह खो गया यादों में…

आज से 4 साल पहले 45 साला अशफाक मंडी में आलू का कारोबार करता था और अपनी बीवी व 4 बच्चों के साथ सुख की जिंदगी गुजार रहा था.

अशफाक की बड़ी बेटी तकरीबन 18 साल की थी, जिस का निकाह उस ने सलमान भाई के बेटे के साथ ठीकठाक किया था. दोनों परिवारों में हंसीखुशी का माहौल था.

उस दिन मंगनी की रस्म अदा होनी थी कि अचानक अशफाक पर मानो तूफान आ गया. वह मंडी से आलू का कारोबार कर दोपहर के एक बजे नमाज अदा कर के उठा ही था कि एक पुलिस वाले ने उसे झट से पकड़ लिया और बोला, ‘अशफाक मियां, तुम्हें थाने में बुलाया गया है.’

अशफाक घर पर सब को बताता हुआ थाने पहुंचा, पर वहां उस से नाम पूछ कर हवालात में डाल दिया गया.

‘थानेदार साहब, मैं ने किया क्या है?’ अशफाक ने मासूमियत से पूछा. ‘ज्यादा भोला मत बन. लड़कियों को छेड़ना, उन की सोने की चेनें छीनना तुम्हारा काम है,’ इंस्पैक्टर उसे धमकाते हुए बोला.

‘साहब, वह अशफाक दूसरा है. वह गुंडा हमारे साथ वाली गली में रहता है. मैं तो आलू वाला हूं,’ अशफाक अपने बारे में सफाई देते हुए बोला.

‘अबे चुप, मैं तेरी नसनस से वाकिफ हूं. भोला बन कर लूटता है,’ यह कहते हुए इंस्पैक्टर ने अशफाक को मजिस्ट्रेट के पास भेजा, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

उस के बाद तारीख पर तारीख और महीनों गुजरते गए. अशफाक को पहले भोपाल और फिर जबलपुर की जेल में भेज दिया गया. इसी बीच एक दिन उसे पता चला कि उस की बेटी की मंगनी टूट गई है.

‘हमें किसी अपराधी की बेटी ब्याह कर नहीं लानी,’ यह बात खुद सलमान ने उसे जेल में मिल कर बताई.

‘आप को तो पता है कि मैं अपराधी नहीं हूं. मुझे दूसरे शख्स की जगह जेल में डाला गया है,’ यह सफाई देते हुए अशफाक थक गया.

‘कुछ भी कह लो भाई. मुझे माफ करना, लेकिन एक अपराधी की बेटी घर में ला कर मुझे अपनी इज्जत का जनाजा नहीं निकलवाना. आप हमें तो माफ ही करना,’ इतना कह कर बगैर उस की बात सुने सलमान लौट गया.

अब तो अशफाक को दोहरी मार झेलनी पड़ी. बीवी और बच्चे जैसेतैसे कर के घर की गाड़ी खींच रहे हैं और वह जेल में सड़ रहा है.

अशफाक ने मुश्किल से अपनी बात जज साहब को बता डाली, ‘साहब, मेरा नाम अशफाक अंसारी, मेरे पिता का नाम एसआर अंसारी है, जबकि दूसरा अशफाक फइमुद्दीन अंसारी का बेटा है. वह ऐशबाग की गली नंबर 412 में रहता है, जबकि मैं 214 में रहता हूं.

मेरा 20 सालों से सब्जी मंडी में आलू का कारोबार है, जबकि वह गुंडागर्दी करता है.’ अशफाक ने जब इतनी बातें बताईं, तो जज साहब ने पूछा, ‘तुम्हारे पास इस बात का कोई सुबूत है?’

‘जज साहब, आप के रिकौर्ड की सारी बातें उस गुंडे से मेल खाती हैं, जबकि मेरा वोटर आईडी कार्ड, राशनकार्ड वगैरह तमाम कागजात घर से मंगवा कर सचाई पता की जा सकती है,’ अशफाक रोते हुए अपनी बात रख रहा था.

‘देखो मियां, हमें तुम से पूरी हमदर्दी है. अगर तुम सही हो, तो हम तुम्हें यकीनन रिहा कर देंगे,’ जज साहब ने उसे हौसला देते हुए कहा.

अब उसे बाइज्जत वापस जेल भेज दिया गया. इस से जेलर और सभी मुलाजिम इज्जत से पेश आने लगे. फिर तो 3-4 तारीख में मामला साफ हो गया. कोर्ट में वकील की दलीलों ने उसे बेकुसूर और इंस्पैक्टर की गलती साबित कर दी.

इंस्पैक्टर को जब पता चला, तो वह असली मुजरिम की खोज में जुट गया, पर इस सब में 4 साल बीत गए.

अशफाक बीती यादों से बाहर निकल आया. अब उस के बीवीबच्चे झुग्गी में बड़ी मुश्किल से दिन गुजार रहे थे. मां तो पागल सी हो गई थी.

‘‘घबराओ मत, सब ठीक हो जाएगा. मैं काजी साहब से मिल कर सबकुछ सुधार दूंगा. धंधा भी ठीक हो जाएगा.’’ वह सब को दिलासा दे रहा था, पर खुद इंस्पैक्टर पर झंझला रहा था.

जब अशफाक ऐशबाग थाने के सामने से गुजर रहा था, तो वहां उस ने लिखा देखा, ‘पुलिस आप की सुरक्षा में’. हकीकत में पुलिस ने उसे इतनी सुरक्षा दी, जिस की हद नहीं.

यहां नाम ने उसे बदनाम कर दिया. कौन कहता है कि नाम कुछ नहीं है. बस, एकजैसे नाम ने उसे जेल और दूसरे को मौका दिया.

‘बेटीबेटा एकसमान’. इस नारे को पढ़ कर अशफाक टूट गया. उस की बेटी तो बिना गलती के ही पिस गई.

बेटी नहीं होती है, तो सबकुछ ठीक होता है. इस तरह ये सारे फूल उसे शूल की तरह चुभने लगे और वह बिस्तर पर लेट कर फूटफूट कर रोने लगा.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...