12वीं पास कर के पूजा ने कालेज में दाखिला लिया था. ट्यूशन पढ़ा कर वह अपनी फीस और कालेज के दूसरे खर्चे पूरे कर लेती थी और अपनी पढ़ाई के लिए भी समय निकाल लेती थी.

घर में कुल 6 लोगों का परिवार एक कमरे में रहता था. सब के तौलिएसाबुन एक ही थे. घर में दोनों समय भोजन मिलता था. नाश्ता सिर्फ रात की बची रोटी होती थी.

ऐसे में कभीकभार पूजा के चाचाचाची के आने पर उन के घर का माहौल किसी त्योहार से कम नहीं होता था. उन दिनों में परांठों की खुशबू, मिठाई के डब्बे और गरम चाय और पकौड़े घर के रूटीन को भंग करते थे. कभीकभी सारा परिवार चाचाचाची के साथ घूमनेफिरने या सिनेमा देखने भी चला जाता था.

पूजा की चाची का मायका इसी शहर में ही था, इसलिए चाची आतीजाती रहती थीं. वे बहुत अमीर कारोबारी की बेटी थीं और पूजा के चाचा का ब्याह चाची से इसीलिए हुआ था, क्योंकि चाचा का चयन एक पीसीएस के पद पर हो गया था.

पूजा भी अपने चाचा की तरह सरकारी अफसर बन कर अपने घर का कायाकल्प करना चाहती थी. अब उस की साधना पूरी होने का समय आ रहा था. वह बीए के आखिरी साल के इम्तिहान दे चुकी थी और प्रशासनिक सेवा की तैयारी कर रही थी.

इसी बीच चाची आई थीं और वे बहुत चिंतित दिख रही थीं. वजह, उन के मायके में ब्याह की तैयारी चल रही थी. उन का भतीजा अमेरिका से भारत लड़की देखने आ रहा था और उन के मायके का पुराना कुक अपने गांव चला गया था. अब उस परिवार को एक कुशल रसोइए की जरूरत थी, जो घर वालों के लिए उन की पसंद का खाना बना सके, साथ ही भरोसेमंद भी हो.

चाची ने पूजा की मां से कहा, ‘‘दीदी, पूजा को मेरे साथ भेज दो. पूजा अपने इम्तिहान की तैयारी वहां भी कर सकती है. कुछ दिनों की बात है. इस बीच जो भी रसोइया आएगा, उसे पूजा अपनी देखरेख में उस घर के हिसाब से ट्रेंड कर देगी.’’

पूजा की मां चाची को मना नहीं कर सकीं.

पूजा भी मन ही मन खुश हो गई कि कम से कम कुछ दिन के लिए उसे एक अलग कमरा मिल सकेगा, तो शायद वह देर रात तक जाग कर पढ़ सकती है. यहां तो सब की निगाहें टिकी रहती हैं कि कब लाइट बंद हो तो वे गहरी नींद में सो सकें.

पूजा चाची के साथ उन के मायके चल दी. रास्ते में चाची ने उसे कुछ कपड़े दिला दिए और घर का रूटीन और घर वालों की खानेपीने की पसंदनापसंद भी बता दी.

चाची का मायका किसी राजसी हवेली से कम ना था. पूजा को लगा कि उस के पूरे महल्ले जितना बड़ा तो उन का गार्डन ही था.

गरीब घर की लड़कियां खाना बनाना तो ऐसे सीख जाती हैं, जैसे चिडि़या के बच्चे उड़ना. पूजा ने खुशीखुशी किचन संभाल ली और जो रैसिपी उस ने कभी किताबों में पढ़ी थीं, उन्हें एकएक कर आजमाने लगी. 3 दिन में ही वह घर के सभी लोगों की पसंद से वाकिफ हो गई और इज्जत से बात करने के चलते नौकरों की फौज की भी चहेती बन गई.

आज रविवार था. सभी लोग आलोक को लेने एयरपोर्ट गए थे और घर में पूजा सब के लिए दोपहर का खाना बना रही थी, जिस में आलोक की पसंद के सब व्यंजन शामिल थे.

इतने में घंटी बजी और पूजा ने दरवाजे पर एक बहुत ही हैंडसम लड़के को देखा. उस नौजवान को वह नहीं पहचानती थी और लड़के ने भी खुद के घर में एक अजनबी लड़की को अपना परिचय देना ठीक नहीं समझा. पुराने माली को उस ने इशारे से कुछ भी बोलने के लिए मना कर दिया, जो पूजा को उस का परिचय देना चाह रहा था.

उस नौजवान को बाहर की बैठक में बैठने को कह कर पूजा अपने काम में बिजी हो गई. हां, उस ने मेहमान को चाय और नाश्ता भेज दिया था.

वह नौजवान आलोक था, जिसे इस खेल में मजा आने लगा था और उस ने सोचा कि इस सस्पैंस को बरकरार रखने में ज्यादा मजा है. घर वाले जब उसे यहां देखेंगे, तो वह एक अलग खुशी होगी. जो एयरपोर्ट से फ्लाइट कैंसिल हो जाने से उस के न आ पाने से दुखी हो कर लौट रहे होंगे.

हुआ भी बिलकुल वैसा ही. सब लोग आलोक को घर पर देख कर खुशी से झूम उठे, लेकिन चाची ने अकेले में पूजा की अच्छी खबर ली कि वह कितनी बेवकूफ है, जो घर के राजकुमार को पहचान नहीं सकी. वैसे, आलोक के फोटो जगहजगह लगे थे, पर शायद पूजा ने ही कभी गौर नहीं किया था.

अगले दिन आलोक को चाय देने गई पूजा ने अपनी कल की गलती

की माफी मांगी और फिर आलोक के पूछने पर उस ने अपना एक छोटा सा परिचय दिया.

उस के बाद पूजा ने गौर किया कि घर में किसी बात पर बड़ी संजीदगी से कोई चर्चा चल रही है. घर के सारे बड़े एक कमरे में शाम से जमे हुए थे.

देर रात चाची पूजा के कमरे में आईं. पूजा पढ़ रही थी. चाची बोलीं, ‘‘पूजा, आलोक ने तुझे पसंद किया है. वह तुझ से ब्याह कर के तुझे अमेरिका ले जाना चाहता है.’’

पूजा इम्तिहान के बीच में ऐसी किसी बात के लिए सोच भी नहीं सकती थी. आलोक जैसे अमीर लड़के को जीवनसाथी के रूप में देखना तो उस ने सपने में भी नहीं सोचा था.

चाची बोले ही चली जा रही थीं कि अगले शनिवार को वे लोग सगाई करना चाहते हैं. दीदी और भाई साहब को तेरे चाचाजी ने बता दिया है. और भी बहुतकुछ चाची ने बोला, पर पूजा कुछ सुन कर भी सुन नहीं पा रही थी. उस का दिमाग शून्य हो गया था.

तय कार्यक्रम के मुताबिक उन सब लोगों को पूजा के घर आना था और वहीं एक छोटे से समारोह में सगाई कर के वे पूजा को अपने साथ ले जाने वाले थे. बाद में मुंबई में धूमधाम से शादी और 20 दिन में पासपोर्टवीजा के साथ पूजा का आलोक के साथ अमेरिका जाना तय हुआ था.

सबकुछ परीकथा जैसा था. सखियां पूजा से जल रही थीं. पड़ोसी मन में कुढ़ रहे थे, पर सामने से बधाई देते नहीं थक रहे थे.

शाम 5 बजे तक उन्हें आना था, पर धीरेधीरे 9 बज गए और वे लोग पहुंचे ही नहीं. अब पूजा के पिताजी को चिंता होने लगी. फिर चाचा ने चाची को फोन किया तो पता चला कि वे लोग एक होटल में ठहरे हुए हैं. इस संकरी गली में फैली गंदगी को देख कर लौट गए हैं. अब वे लोग चाहते हैं कि पूजा का परिवार होटल में आ जाए, ताकि सगाई समारोह वहीं हो जाए.

पूजा के पिता कुछ दुखी हुए, फिर पूजा और उस की मां को बताने आए. सब सुन कर पूजा ने एक फैसला किया कि वह इस रिश्ते के लिए रजामंद नहीं है. जो इनसान पूजा के घर एक घंटे भी नहीं रुक सकता, वह उस इनसान के घर सारी जिंदगी कैसे रह सकती है. उसे समझते देर न लगी कि यह कोई रिश्ता नहीं हो रहा, बल्कि उसे उस के ही घर से अलग करने की साजिश है.

पूजा ने एक स्वाभिमानी की तरह इस रिश्ते के लिए न बोला और कपड़े बदल कर सब भाईबहनों को खाना परोसा. बेचारे बच्चे इतने स्वादिष्ठ भोजन को खाने के लिए कब से उतावले थे और पूजा मन ही मन सोच रही थी कि इस रिश्ते को ठुकरा कर उस ने अपना और अपने पिता का स्वाभिमान बचा लिया.

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