अकीला ने कभी सोचा भी नहीं था कि जिस औलाद के लिए उस ने अपनी जवानी तबाह कर दी, अपनी आरजू का गला घोंट दिया, उन्हें काबिल बनाने के लिए अपना सबकुछ कुरबान कर दिया, वही औलाद काबिल बनते ही उसे तिलतिल कर मरने के लिए मजबूर छोड़ देगी. ऐसी एहसान फरामोश औलाद के होने से तो न होना ही अच्छा था. अकीला शादी के महज 7 साल बाद ही बेवा हो गई थी.

जिस समय अकीला के शौहर का इंतकाल हुआ था, तब अकीला की उम्र सिर्फ 26 साल थी और तब तक वह 3 बच्चों की मां बन चुकी थी, फिर भी उस की शादी के कई रिश्ते आ रहे थे और दूरदराज के ही नहीं, बल्कि आसपास के भी कई नौजवान उस से शादी करने के लिए बेकरार थे. रिश्ते आएं भी क्यों नहीं, अकीला थी ही ऐसी बला की खूबसूरत कि जो उसे एक बार देख ले, बस देखता ही रह जाए.

गदराया बदन, गोरा रंग, सुर्ख होंठ, लंबेकाले और घने बाल उस की खूबसूरती में चार चांद लगाए हुए थे. हुस्न की मलिका होने के बाद भी अकीला ने अपने इन 3 मासूम बच्चों की खातिर दूसरी शादी करना मुनासिब  नहीं समझा और उन के अच्छे भविष्य  के लिए दिनरात आसपड़ोस के कपड़े सिल कर उन की परवरिश में बिजी हो कर रह गई.

अकीला का एक ही सपना था कि वह अपने बच्चों को खूब पढ़ाएलिखाए, ताकि उन का भविष्य अच्छा बन सके और वे कामयाब इनसान बन जाएं, इसलिए उस ने दिनरात मेहनत की, ताकि बच्चों की परवरिश अच्छी से अच्छी  हो सके. अकीला की मेहनत रंग लाई. उस के तीनों बच्चे पढ़ने में काफी तेज थे और वे हर क्लास में फर्स्ट आया करते थे. इस तरह अच्छी पढ़ाई कर के उस का सब से बड़ा बेटा गुड़गांव में प्रोफैसर बन गया, दूसरा बेटा सरकारी डाक्टर बना और तीसरा बेटा इटावा में लैक्चरर बन गया.

अकीला खुश थी. भले ही उस की आंखों की रोशनी दिनरात काम करने  से कमजोर हो गई थी, जवानी अब ढल चुकी थी, लेकिन उस की औलाद कामयाब इनसान बन चुकी थी. सब से बड़े बेटे प्रोफैसर की शादी एक बहुत बड़े वकील की बेटी से हो गई थी, जो शादी के एक महीने बाद ही अपने शौहर के साथ गुड़गांव चली गई थी. दूसरा बेटा, जो मेरठ में डाक्टर था, की शादी एक बहुत बड़े बिजनैसमैन की बेटी से हुई, जो महज 2 हफ्ते बाद अपने शौहर के साथ मेरठ शिफ्ट हो गई.

एक दिन खबर मिली कि उस के सब से छोटे बेटे, जो इटावा में लैक्चरर था, ने भी वहीं शादी कर ली और अकीला घर में अकेली रहने के लिए मजबूर हो गई. अकीला की तबीयत खराब रहने लगी थी. जब उस की औलाद को यह पता चला तो समाज के डर से तीनों बेटे घर आए और यह तय किया कि वे तीनों 4-4 महीने अम्मी को अपने पास रखेंगे.

सब से पहले बड़े बेटे का नंबर  आया और वह अकीला को अपने साथ गुड़गांव ले गया. कुछ दिन तो सब ठीक चला, पर जल्द ही उस की बीवी ने घर में लड़ाई शुरू कर दी और एक दिन बोली, ‘‘मेरे बस की बात नहीं है इस बुढि़या की सेवा करना.’’ बेटे ने उसे समझाया, ‘‘4 महीने की तो बात है. बस तुम इन्हें यहां रहने दो और अपने साथ काम में लगाए रखो. तुम्हारी भी मदद हो जाएगी.’’

अब तो घर का सारा काम अकीला के जिम्मे हो गया. वह रातदिन घर  के काम में लगी रहती. उस की हालत नौकरानी से भी बदतर हो गई. खाना  भी उसे रूखासूखा दिया जाने लगा. जैसेतैसे अकीला ने 4 महीने वहां गुजारे. 4 महीने पूरे होने के बाद दूसरा बेटा वादे के मुताबिक अपनी मां को लेने आया और अपने साथ मेरठ ले गया.

वहां पर रहते हुए अभी 2 महीने ही गुजरे थे कि एक दिन उन के घर में पार्टी चल रही थी. मेहमानों का आनाजाना लगा था.  अकीला को अपने कमरे से बाहर न निकलने के लिए बोला गया था कि यहां पर बड़ेबड़े लोग आएंगे, कोई पूछ लेगा तो बेइज्जती होगी. पार्टी देर रात तक चलती रही. अकीला भूख से बेहाल हो चुकी थी. अब उस से बरदाश्त करना मुश्किल था.

उस ने अपने कमरे का दरवाजा खोला और कमरे के बाहर पड़े जूठे बरतनों में से खाना उठा कर खाने लगी. अकीला ने जैसेतैसे अपना पेट भरा. अभी वह पानी पीने के लिए किचन की तरफ जा ही रही थी कि उस की बहू, जो अपनी सहेलियों के साथ वहां से गुजर रही थी, की एक सहेली ने पूछा, ‘‘यह कौन है?’’ तभी अकीला का बेटा वहां आ गया और झट से बोला, ‘‘यह हमारी नई नौकरानी है.’’ ये अल्फाज जैसे ही अकीला के कानों में पड़े, तो उस के होश उड़ गए कि आज एक बेटा अपनी मां को मां कहने में भी शर्मिंदगी महसूस कर रहा है.

अब सब से छोटे बेटे का नंबर था. अकीला ने सोचा कि चलो, इसे भी देख लेते हैं. यह भी बेटा रहा या नहीं या फिर अमीरी ने इस की भी आंखों पर परदा डाल दिया है. कुछ दिन बाद अकीला अपने सब से छोटे बेटे के साथ इटावा चली गई. वहां गए हुए अभी एक ही दिन हुआ  था कि उस के बेटे ने साफसाफ बोल दिया, ‘‘मेरी बीवी को बच्चा होने वाला है.

तुम्हें यहां सब काम खुद करना पड़ेगा और अपनी बहू का भी ध्यान रखना पड़ेगा.’’ अकीला रोज सवेरे उठती, नाश्ता बनाती, कपड़े धोती, फिर दोपहर का खाना बनाने में जुट जाती. उस के बाद घर की साफसफाई का काम करना  होता था.  अकीला की बहू आराम से अपनी सहेली के साथ गपशप में मसरूफ रहती थी. बीचबीच में उन के लिए भी चायनाश्ते का इंतजाम करना पड़ता था. अभी एक महीना ही गुजरा था कि अकीला की तबीयत बहुत खराब हो गई.

उसे सरकारी अस्पताल में भरती कराया गया, जहां उस की देखभाल करने वाला कोई न था.  3-3 बेटेबहू होने के बावजूद अकीला एक लावारिस की तरह अपनी जिंदगी की बची सांसें ले रही थी और सोच रही थी कि उस की परवरिश में ऐसी कौन सी कमी रह गई थी, जो ऐसी एहसान फरामोश औलाद मिली. इसी कशमकश में अकीला ने अपनी जिंदगी की आखिरी सांस ली और इस दुनिया से विदा ले ली. उस के मरने के बाद भी कोई उसे देखने वाला न था.

1-2 दिन इंतजार करने के बाद अस्पताल के कुछ लोगों ने मिल कर उस का कफनदफन किया. कुछ दिनों बाद जब अकीला का बेटा अस्पताल में उसे देखने आया तो सब को बड़ा अचंभा हुआ, क्योंकि आज एक हफ्ते बाद उसे अकीला की याद आई थी. उस ने अपना मोबाइल नंबर भी गलत दिया था, जो पता लिखवाया  था वहां भी ताला लगा था, क्योंकि वह अपनी बीवी के साथ घूमने गया था.

बेटा अस्पताल से चुपचाप चला गया. हमारे समाज में अभी भी ऐसी एहसान फरामोश औलाद मौजूद हैं, जो कामयाब होने के बाद अपने मांबाप की उस मेहनत को भूल जाती हैं, जो उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए अपना सबकुछ कुरबान कर देते हैं. ऐसी निकम्मी औलादें उन्हें तिलतिल कर मरने के लिए छोड़ देती हैं.

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