इस देश की गरीबी की वजह इस को मुगलों या अंगरेजों का लूटना नहीं है जो आज भी हमारे नेता कहते रहते हैं. असली वजह तो निकम्मापन है और अपना कीमती समय बेमतलब के कामों में बिताना है. खाली बैठे खंभे पर चढ़ना और उतरना ही यहां काम कहा जाता है और यह समाज, घर और सरकार में हर समय दिखता है.

जहां इन में किसी भी नई चीज का पहले शिलान्यास शामिल है और फिर भूमि पूजन, महीनों में बनने वाली चीज में बरसों लगाना और फिर उद्घाटन करना और आखिर में बारबार मरम्मत करने के लिए बंद करना भी शामिल है. 2,000 के 2016 में चालू किए नोट सिर्फ 7 साल में बदलने का हुक्म इसी निकम्मेपन की निशानी है. पूरे देश को 2016 की तरह फिर फिरकनी की तरह घुमा दिया है कि अपने बक्सों को खंगालो कि कहीं कोई 2,000 का मुड़ातुड़ा नोट इधरउधर न पड़ा हो और उसे बदलवाओ.

गनीमत यह अखंड 100 दिन का जागरण थोड़े कम पैमाने पर है. इसलिए नहीं कि सरकार समझदार हो गई है, इसलिए कि नोट कम हैं और काफी महीनों से नोट बैंकों से ही नहीं दिए जा रहे थे. पूरे देश का कितना समय इस पूरे पागलपन में बरबाद होगा, इसे गिनना असंभव है पर यह देश तो वह है जहां एक जेसीबी चलती है तो देखने वाले 100-200 खाली बैठे लोग मिल जाते हैं. यहां बेकार, बेरोजगार, धर्म के नाम पर घंटों वही लाइनें किसी मूर्ति के सामने आंख बंद कर के बैठने वालों के लिए इस समय की कीमत कैसी है, यह जांचना मुश्किल है.

सरकार ने पहले 2,000 के नोट थोपे, जब जरूरत नहीं थे और अब वापस लिए जब यह भी जरूरी नहीं थे. हाल के सालों में करोड़ों की रिश्वतें भी 500 रुपए के नोटों से लीदी जा रही थीं. सोशल मीडिया पर टैक्स अफसरों द्वारा जारी फोटो इस बात का सुबूत हैं कि 500 रुपए के नोटों में रिश्वत का पैसा रखना ही एक परंपरा बन गई थी. अब महीनों तक कई करोड़ नोटों को बेमतलब में घरों से बैंकों तक, बैंकों से वाल्टों तक, वाल्टों से रिजर्व बैंक तक और रिजर्व बैंक में इन्हें संभालने में लोग लगे रहेंगे.

गरीब देश के लोगों के आटे में पानी जबरन डाल दिया गया है कि अब उसे सुखाओ, फिर सड़े को छांटो और फिर दोबारा पीसो. यह सरकार निकम्मी है यह तो मालूम है पर पूरे देश को भी निकम्मा मानती है इस का एक और उदाहरण है. निकम्मों को बेबात में काम पर लगाना इस देश में बहुत आता है और इसी वजह से इस देश का आम आदमी अमेरिकी से  30-32 गुना कम पैसे वाला है. चीनी भी भारतीय से आज 8 गुना अमीर हैं, जबकि 1960 के आसपास दोनों बराबर थे.

यह ऐसे ही नहीं हो रहा. इस के लिए सरकार तरहतरह से मेहनत करती है. सूबों की परीक्षा 2 बार ली जाने लगी है, एक बोर्ड की और एक क्यूट की. पेपर लीक हो गया कह कर बारबार परीक्षा टाली जाती है, फिर दोबारा साल 2 साल में होती है. अदालतों में मामले 10 साल से कम तो चलते ही नहीं. टूटीगंदी सड़कों पर ध्यान तब जाता है जब टैंडर से पैसा निकलवाने की साजिश हो और वहां भी सड़क जो 4 दिन में बननी चाहिए 4 महीने में बनती है, फिर कोई और विभाग तोड़ने आ  जाता है.

निकम्मेपन को थोपने वाली सरकार को बारबार वोट मिलते हैं. पहले कांग्रेस को मिलते रहे, अब भाजपा को मिल रहे हैं. 2,000 के नोटों को वापस लेना निकम्मेपन की पटेल जैसी मूर्ति बनाना है. गुजरात के पटेल जैसी सैकड़ों मूर्तियां देशभर में बन रही हैं. उतनी बड़ी नहीं, पर खासी वही और सब 2,000 के नोटों के बदलने वाली बेमतलब की निकम्मी सोच की निशानी हैं.

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