महाराष्ट्र में शिवसेना को लेकर जिस तरह की खैघचमखैच देश में देखी है वह राजनीतिक इतिहास का विषय बन गई है. यह सारा देश जानता है कि शिवसेना की स्थापना बाला साहब ठाकरे ने की थी और वर्तमान शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे हैं. मगर अदृश्य संरक्षण में एकनाथ शिंदे ने बगावत करके जहां महाराष्ट्र में अपनी सरकार बना ली वहीं चाहते हैं कि शिवसेना पर भी अधिकार बन जाए. बाला साहब के उत्तराधिकारी के रूप में उद्धव ठाकरे का कोई नाम लेवा भी ना हो. मगर यह सब दिवास्वप्न तो हो सकता है मगर हकीकत नहीं बन पाया. इसका एक उदाहरण आज देश के सामने है दशहरा रैली के रूप में.
लगभग 50 वर्षों से बालासाहेब ठाकरे विजयादशमी के दिन रैली किया करते थे और देश को संबोधित करते थे. एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बन गए तो यह प्रयास शुरू हो गया कि शिवसेना पर आ रहा करके उसकी पहचान जो दशहरा रैली से जुड़ी हुई है खत्म कर दी जाए.
मगर,बंबई उच्च न्यायालय ने उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना को मध्य मुंबई के शिवाजी पार्क में पांच अक्तूबर को वार्षिक दशहरा रैली के आयोजन की अनुमति आखिरकार दे दी.
सच्चाई यह है कि है कि शिवसेना वर्षों से शिवाजी पार्क ( शिव - तीर्थ) में दशहरा रैली का आयोजन करती रही है, लेकिन इस साल मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे नीत शिवसेना के धड़े द्वारा भी दशहरे के दिन (पांच अक्तूबर को ) उसी मैदान में रैली आयोजित करने की अनुमति मांगे जाने के बाद यह कानूनी विवादों में घिर गया था .न्यायमूर्ति आरडी धनुका और न्यायमूर्ति कमल खाटा की खंडपीठ ने आदेश में कहा - दशहरा रैली आयोजित करने की अनुमति नहीं देने का बीएमसी का आदेश स्पष्ट रूप से कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है. बाला साहेब ठाकरे नीत शिवसेना गुट और उसके सचिव अनिल द्वारा बृहन्नमुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के आदेश को चुनौती दी थी. पीठ ने कहा कि हमारे विचार में बीएमसी ने साफ मन से फैसला नहीं लिया है.
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