सिर्फ कानूनी पच्चर लगा कर दिल्ली और महाराष्ट्र में बाइक टैक्सियों पर रोक लगा दी गई है. छोटे डिस्टैंस तक ले जाने के लिए यह एक सस्तीसुलभ बात है जो बाइक चलाने वालों को थोड़ाबहुत पैसा दे देती है, उन्हें काम पर लगाए रखती है और जनता को सुविधा भी रहती है.
सरकार की आदत है कि वह हर नागरिक के काम में दखल देती है. आप बिना लाइसैंसों और रजिस्ट्रेशनों के ठेला नहीं लगा सकते, कहीं दुकान नहीं खोल सकते, घर के एक कोने में छोटा सा काम नहीं कर सकते, घर की खाली पड़ी जगह पर मकान नहीं बना सकते, बने मकान में पहलीदूसरी मंजिल पर एक कमरा नहीं डाल सकते. किसी किराएदार को नहीं रख सकते. जिंदगी सरकारी फरमानों पर चलाई जाना एक मजबूरी हो गई है. अफसोस यह है कि देश की जनता आमतौर पर कहती है और मानती है कि हर काम के लिए इजाजत लेनी ठीक है. जनता नहीं सम?ाती कि इजाजत देने का हक ही भ्रष्टाचार की जड़ है, क्योंकि सरकार को खुद किसी काम के लिए कोई इजाजत नहीं लेनी होती और उस से कोई गलत काम पर सफाई भी नहीं मांग सकता.सरकार चुने हुए प्रतिनिधि चला रहे हैं.
इस अद्भुत कवच के सहारे सरकारी कर्मचारी मनमानी कर सकते हैं और मोटर ह्वीकल ऐक्ट का हवाला दे कर बाइक टैक्सी बंद की गई है. यह चल रही है तो तभी न कि जनता को इस से सुविधा है और बाइक मालिक और सवारी बिना किसी को परेशान किए सड़क पर चल रहे हैं. बाइक टैक्सी नहीं होती तो सवारी को वह रास्ता खुद पैदल चल कर जाना होता और सड़क तो उतनी ही घिरती.सरकार की मंशा सिर्फ यही है कि इन से टैक्स वसूला जा सके.
अगर कल को सरकार ने इन का रजिस्ट्रेशन कर दिया तो दाम तो एकदम बढ़ जाएंगे पर कोई खास नई सुविधा मिलेगी, उसे भूल जाएं. दिल्ली में कई सालों तक बैटरी रिकशा बिना लाइसैंस के चले. फिर दिल्ली के कुछ इंगलिश अखबार, अदालतें, पुलिस वाले पीछे पड़ गए. उन्होंने इन का रजिस्ट्रेशन कराने के नियम बनवा ही डाले और अब मोटी कमाई ट्रांसपोर्ट अथौरिटी के अफसरों की जेब में जाने लगी है.रजिस्टे्रशन, अनुमति बाइक टैक्सियों को किसी तरह से न तो सड़क पर चलने का ज्यादा हक देगी, न पार्क करने का और न ही टैक्सी मालिक को रातोंरात शरीफ बता देगी.
बाइक टैक्सी असल में सब से अच्छी और सेफ टैक्सी है जिस में टैक्सी ड्राइवर के हाथ आगे बंधे होते हैं और पीछे बैठी सवारी बिलकुल सुरक्षित होती है. किसी भी डर के समय सवारी कूद कर आसानी से बच सकती है. जो रेप या लूट के मामले रैगुलर टैक्सियों या आटोरिकशा में होते हैं, वे बाइक टैक्सियों में हो ही नहीं सकते, क्योंकि बाइक मालिक सवारी के लिए अनजान तीसरे को नहीं बैठा सकता.अब दिल्ली और महाराष्ट्र में गैरकानूनी तौर पर बाइक टैक्सी चलाने पर जुर्माना या जेल हो सकती है.
क्या जहां रजिस्ट्रेशन है वहां कुछ हादसा होने पर टैक्सी चालक के साथ रजिस्ट्रेशन करने वाली अथौरिटी को जेल भेजने या उस पर जुर्माने का नियम है? नहीं तो क्यों. मलाई है तो आधापौना हिस्सा खुद खा जाओ और बचने के लिए हाथ जलाना हो तो आम जनता? यह कैसी कानूनबाजी है?यह असल में जनता की कमजोरी है जो अपने छोटेछोटे हकों के छीने जाने पर चुप बैठी रहती है और सरकार अब धीरेधीरे घर के दरवाजे पर नहीं बैठती, बैडरूम और किचन तक घुस आई है. बाइक टैक्सी आम सवारी का हक है और इस पर रोक आम जनता के हकों को कम करना है.