घूमतेघूमते मैं लालकिले में शाहजहां के संगमरमर वाले बरामदे के नीचे पहुंचा. उस बरामदे के नीचे एक टूटाफूटा चबूतरा था, जिस की इंटें बिखरी हुई थीं. उस चबूतरे को देख कर मैं ने गाइड से उस के बारे में कुछ जानना चाहा.

पर गाइड के यह कहने पर कि चबूतरे की ऐतिहासिक अहमियत नहीं है, मैं चुपचाप आगे बढ़ गया. मुझे लगा कि शायद गाइड को ही इस की जानकारी न हो.

जब मैं लालकिले से निकलने लगा तो एक बूढे ने तपाक से सलाम किया.

मैं ने पूछा, ‘‘तुम कौन हो? क्या चाहिए?’’

वह बोला, ‘‘आप उस चबूतरे के बारे में पूछ रहे थे न? मैं आप को उस के बारे में बताऊंगा. चाहो तो रात को सामने पीपल के पेड़ के नीचे आ जाना,’’ यह कह कर वह चला गया.

खापी कर जब मैं होटल पहुंचा, तो रात के 10 बज चुके थे. सर्दी की रात थी. सोने की कोशिश की तो सो न पाया. रहरह कर उस बूढ़े की बात याद आ रही थी. आखिरकार मैं ने ओवरकोट पहना और उसी पीपल के नीचे जा पहुंचा.

लंबेलंबे उलझे सूखे केश, महीनों बढ़ी हुई लंबी दाढ़ी, मैलाकुचैला बदबूदार लबादा पहने वह बूढ़ा वहां खड़ा था मानो वह मेरा इंतजार कर रहा हो.

‘‘हां, भटकती आत्मा…’’ उस ने कहा, ‘‘पर, तुम डरो नहीं.’’

‘‘चलो, मैं तुम्हारे दिल की ख्वाहिश शांत कर दूं,’’ बूढ़ा बोला. उस ने मुझे पूरी कहानी सुनाई, जो न जाने सच थी या झूठ, पर रोचक जरूर थी:

लालकिले में शाहजहां के संगमरमर वाले झरोखे के सामने वाले फाटक के बाहर टूटाफूटा चबूतरा राजा ने एक खोजा के लिए ही बनवाया था. 1-2 या 4 साल नहीं, इसी चबूतरे पर सिर पटकपटक कर आंसुओं का दरिया बहाते हुए खोजे ने उस पर पूरे 12 साल बिताए थे.

ताजमहल की बगल की कोठी में संगमरमर के कमरे में एक लंबी कब्र है. उस में दफन औरत की आंसुओं में लिपटी दयाभरी कहानी पर कोई गौर नहीं करता.

वह कब्र शाहजहां की बड़ी मलिका सुन्नी तुन्निसा की है. वह शाहजहां की पहली बीवी थी. ताजमहल शाहजहां और मुमताज की मुहब्बत की जीतीजागती यादगार है. पर दरअसल मुगल बादशाहों को मुहब्बत से कुछ लेनादेना नहीं था. मुहब्बत का एहसास कराने वाला उन के पास दिल ही नहीं था.

दरअसल, ये मुगल बादशाह बहुत ही विलासी, ऐयाश और रसिया होते थे. चित्तौड़गढ़, उदयपुर, ग्वालियर में हिंदू महलों में तो जनानी ड्योढ़ी हुआ करती थी, पर मुगल महलों में बेगमों के लिए महल तो क्या, सुंदर कमरे भी नहीं होते थे.

बात यह थी कि मुगल सम्राट औरत जात को इज्जत की नजर से नहीं देखते थे. जिस छत के नीचे राजा सोता था, उस छत के नीचे कोई औरत नहीं सो सकती थी. उन के लिए औरत सिर्फ जिस्मानी रिश्ता कायम करने की चीज थी.

बहुत से लोग अपना दिल बहलाने के लिए पिंजरे में रंगबिरंगी चिडि़या पालते हैं, ठीक उसी तरह ये मुगल राजा अपने जिस्म की आग बुझाने के लिए 50-50 के झुंड में आरामदेह खेमे लगाते थे. सभी हसीन बेगमें इन्हीं खेमों में रहती थीं. इन खेमों की हिजड़े यानी खोजे पहरेदारी करते थे.

शाहजहां जिस बेगम के साथ रात गुजारना चाहते, उस खेमे की बेगम के पास एक पान का बीड़ा पहुंचा देते. बीड़ा पहुंचने के बाद लौंडियां बेगम के सिंगार में जुट जातीं. हर खेमे पर इस के लिए अलग लौंडिया हुआ करती थीं. गुसल कराने वाली लौंडी बेगम को हमाम में ले जाती. लालकिले में ऊंचीऊंची दीवारों से घिरा जनाना गुसलखाना था, जिस में एक बहुत बड़ा हौज था. हमाम हमेशा पानी से लबालब भरा रहता.

नहलाने वाली लौंडी बेगम के बदन से एकएक कर पूरे कपड़े उतार देती. फिर केसर, इत्र और बादाम की पीठी के उबटन से संगमरमर से तराशे बेगम के जिस्म को कुंदन सा दमका देती. दूसरी लौंडी उन के बदन को पोंछती. फिर लौंडियां काजल वगैरह लगातीं. बेगम का सिंगार करतीं और गहने पहना कर कीमती कपड़े पहनातीं.

पूर्णिमा की एक रात थी. आकाश में चांद अपने पूरे शबाब पर था. उस की दुधिया चांदनी जमीन पर दूरदूर तक छिटक रही थी. रात के 9 बज चुके थे. बेगमें भोजन कर चुकी थीं.

ऐसे सुहाने मौसम में मलिका सुन्नी तुन्निसा की आंखों में नींद नहीं थी. उस का मन किसी से गपशप करने को चाह रहा था, इसलिए वे पड़ोस की बेगम के खेमे में चली गईं.

10 बजे रखवाले खोजों की बदली होती थी. उस दिन मलिका सुन्नी तुन्निसा के खेमे पर रातभर पहरा देने की जुन्ना की बारी थी. पहले वाले खोजे से जुन्ना का सलाम हुआ, पर वह जल्दीजल्दी में यह बताना भूल गया कि बेगम पड़ोस के खेमे में गई हुई हैं.

जुन्ना गश्त लगाने के दौरान यह देख कर हैरान था कि बेगम खेमे में नहीं हैं.

बेगम के सोने के कमरे का क्या कहना, ठोस सोने के पायों वाला शीशे का पलंग था. पलंग पर मुलायम बिस्तर. बिस्तर पर बगुले के पंख की तरह

सफेद चादर बिछी हुई थी, जिस के सिरहाने कश्मीरी कसीदे वाले तकिए लगे हुए थे और पैरों की तरफ कश्मीरी लिहाफ रखा था.

ऐसा बिस्तर देख कर जुन्ना का मन उस का जायजा लेने के लिए मचल उठा. वह अपने मन को किसी तरह नहीं रोक पाया. दीवार की ओर पीठ कर उस ने गुदगुदे बिस्तर पर लेट कर गले तक लिहाफ खींच लिया.

अभी वह लिहाफ की गरमाहट का मजा ले ही रहा था कि पलकें भारी हो गईं और जब नींद खुली तो सवेरा हो चुका था. सुबह जब उस ने अपने को बेगम के बिस्तर पर पाया, तो हाथपैर ठंडे हो गए. बदन का जैसे पूरा खून ही जम गया. बदहवास सा वह खेमे से बाहर आया तो देख कर हैरान रह गया कि वहां तो माजरा ही बिलकुल दूसरा था. चारों ओर मौत का मातम छाया हुआ था. सभी चुप और गमगीन थे.

जुन्ना की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था. आखिरकार एक पहरेदार से पूछा और उस ने जो बताया, उस से सिर पर जैसे बिजली गिर पड़ी. वह पहरेदार कह रहा था कि रात को मलिका सुन्नी तुन्निसा को फांसी पर चढ़ा दिया गया.

‘‘फांसी पर चढ़ा दिया?’’ जुन्ना बदहवास सा बोला, ‘‘मलिका का कुसूर?’’

‘‘कुसूर. कुसूर था यार से प्यार,’’ वह पहरेदार बोला, ‘‘रात को बादशाह सलामत ने अपनी आंखों से जो मंजर देखा, वैसा नजारा तो कोई दुश्मन भी न देखे, तोबा… तोबा…’’

‘‘पर, आखिर बादशाह सलामत ने ऐसा क्या देखा?’’ जुन्ना पागलों की तरह बोला.

‘‘अपनी बीवी को अपने यार की बगल में देखा… कुछ समझा?’’ पहरेदार बोला.

‘‘रात को घूमतेघूमते हजूरेआला अचानक मलिका के खेमे में पहुंचे. खेमे के अंदर पैर बढ़ाया तो बस सिर पर बिजली गिर पड़ी. काटो तो बदन में खून ही नहीं. गले तक लिहाफ ओढ़े एक मर्द मलिका के बिस्तर पर उन के साथ सो रहा था.

‘‘बड़ी होने के नाते जिस मलिका की वे इतनी इज्जत करते थे, वह इतनी बदचलन, आवारा और बेहया भी हो सकती है… उफ, औरत जात तेरा कोई भरोसा नहीं. गुस्से के मारे बादशाह का चेहरा अंगारे की तरह लाल हो गया. खेमे से दौड़ पड़े और बाहर जाते ही हुक्म दिया कि मलिका को फौरन फांसी पर चढ़ा दिया जाए.

‘‘कहने भर की देर थी कि जल्लाद दौड़ पड़े और उस के पहले कि

मलिका उफ भी करती उसे फांसी पर चढ़ा दिया गया.’’

पलक मारते ही जुन्ना सबकुछ समझ गया. उसे ऐसा लगा, जैसे किसी ने एक झटके से उस की गरदन उड़ा दी हो और उस की लाश फर्श पर छटपटा रही हो. हवा के हर झोंके में मलिका की सिसकती आह उस के कानों से बारबार टकरा रही थी.

जुन्ना पागलों की तरह चीख उठा, ‘‘नहींनहीं, मलिका तो बेगुनाह थीं, गुनाह तो मैं ने किया है. मैं ही असली गुनाहगार हूं. मेरी गरदन उड़ा दो. मुझे इसी वक्त सूली पर चढ़ा दो. मुझे इसी वक्त सूली पर चढ़ा दो… हाय… हाय…’’ और वह दहाड़े मारमार कर रोने लगा.

पहरेदारों ने यह नया हादसा देखा तो फौरन उसे घसीट कर बादशाह के सामने पेश किया.

बादशाह बेगम के गम में उदास और गमगीन थे. उन्होंने कड़क कर पूछा, ‘‘यह कौन बदजात है, जो इस तरह चीख रहा है?’’

पहरेदारों में से एक ने अर्ज किया, ‘‘जहांपनाह, यह खेमे पर गश्त लगाने वाला खोजा है. रात मलिका के खेमे पर यही पहरा लगा रहा था. आलमपनाह, यह पागल हो गया है और कहता है कि मलिका बेगुनाह थीं और अपनेआप को गुनाहगार बता रहा है.’’

बादशाह जैसे आसमान से धरती पर गिर पड़े. डपट कर पूछा, ‘‘क्या बक रहा है?’’

‘‘आलमपनाह, मलिका तो बेगुनाह थीं…’’ वह रोतेरोते बोला, ‘‘कुसूर तो इस गुलाम का है, मलिका तो रात को खेमे में थीं ही नहीं. उन का गुदगुदा बिस्तर देख कर गुलाम का जी मचल उठा और दीवार की ओर मुंह कर के लेट गया. अभी लेटा ही था कि आंख लग गई. असली गुनाहगार तो यह गुलाम है,’’ वह चीखने लगा, ‘‘मेरी खाल खिंचवाओ, सूली पर चढ़ाओ, कुत्तों से मेरी बोटियां नुचवाओ या शेर के पिंजरे में ही छुड़वा दो.’’

बादशाह के आदेश से फौरन जल्लाद बुलाए गए. उन्होंने तसदीक की कि बेगम को पड़ोस के खेमे से लाया जाए, जहां वे बातें करने में मशगूल थीं.

अब बादशाह ने जाना कि कितना बड़ा जुर्म हो गया है. वह निढाल हो कर मसनद पर लुढ़क गए.

सब ने समझा कि अब जुन्ना की गरदन उड़ा दी जाएगी, पर संभलने पर बादशाह ने कहा, ‘‘मलिका की लाश को जमुना से निकाल कर शाही रीतिरिवाजों के साथ दफनाया जाए. इस बदजात को इसी समय हमारी नजरों से दूर करो.’’

पहरेदारों ने घसीट कर जुन्ना को फाटक के बाहर धकेल दिया. वह उस जगह पर बैठ गया जहां लाश फांसीघर से निकाल कर नदी में जाती थी. वहीं पड़ापड़ा बेगम के नाम रोताचीखता रहा.

सामने ही बादशाह संगमरमर के झरोखे से जुन्ना को देखते तो उन के जख्म हरे हो जाते और आंखों से पछतावे के आंसू बहने लगते. कई बार घसीट कर वहां से हटाया गया, पर वह फिर उसी जगह पर बैठ जाता. सिर पटकपटक बेगम का नाम लेते हुए मातम मनाता.

आखिर में बादशाह ने उस के लिए वहीं एक पक्का चबूतरा बनवा दिया. बादशाह के हुक्म से शाही बावर्ची उस के लिए वहीं खाना रख जाता, जिसे वह कभी खाता और कभी इधरउधर फेंक देता.

जुन्ना पूरे 12 साल तक इस चबूतरे पर सिर पटकपटक कर खुद रोता रहा, और बादशाह को भी रुलाता रहा. फिर एक दिन उसी चबूतरे पर ही उस ने दम तोड़ दिया.

कहानी सुनाने के बाद वह बूढ़ा बोला, ‘‘यह वही चबूतरा है, जिस के बारे में तुम पूछ रहे थे.’’

सचमुच मेरी आंखों से आंसू टपक रहे थे. अचानक ही मुंह से निकला, ‘‘बेचारी सुन्नी तुन्निसा.’’

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