गूगल पर बेरोजगारों के फोटो खंगालते हुए बहुत से फोटो दिखे जिन में बेरोजगार प्रदर्शन के समय तखतियां लिए हुए थे जिन पर लिखा था ‘मोदी रोजी दो वरना गद्दी छोड़ो’, ‘शिक्षा मंत्री रोजी दो वरना त्यागपत्र छोड़ो’, ‘रोजीरोटी जो न दे वह सरकार निकम्मी हैं.’
ये नारे दिखने में अच्छे लगते हैं. बेरोजगारों का गुस्सा भी दर्शाते हैं पर क्या किसी काम के हैं. रोजगार देना अब सरकारों का काम हो गया. अमेरिका के राष्ट्रपति हो या जापान के प्रधानमंत्री हर समय बेरोजगारी के आंकड़ों पर उसी तरह नजर रखते हैं जैसे शेयर होल्डर अडानी के शेयरों के दामों पर. पर न तो यह नजर रखना नौकरियां पैदा करती है और न शेयरों के दामों को ऊंचानीचा करती है.
रोजगार पैदा करने के लिए के लिए जनता खुद जिम्मेदार है. सरकार तो बस थोड़ा इशारा करती है. सरकार उस ट्रैफिक पुलिसमैन की तरह होती है जो ट्रैफिक उस दिशा में भेजता है जहां सडक़ खाली है. पर ट्रैफिक के घटतेबढऩे में पुलिसमैन की कोई भी वेल्यू नहीं है. सरकारें भी नौकरियां नहीं दे सकतीं, हां सरकारें टैक्स इस तरह लगा सकती हैं, नियमकानून बना सकती हैं कि रोजगार पैदा करने का माहौल पैदा हो.
हमारे देश में सरकारें इस काम को इस घटिया तरीके से करती हैं कि वे रोजगार देती हैं तो केवल टीचर्स को, हर ऐसे टीचर्स जो रोजगार पैदा करने लायक स्टूडेंट बना सकें.
ट्रैफिक का उदाहरण लेते हुए कहा जा सकता है कि ट्रैफिक कांस्टेबल को वेतन और रिश्वत का काम किया जाता है. खराब सडक़ें बनाई जाती हैं जिन पर ट्रैफिक धीरेधीरे चले, सडक़ों पर कब्जे होने दिए जाते हैं ताकि सडक़ें छोटी हो जाए और दुकानोंघरों से वसूली हो सके.
ऐसे ही पढ़ाई में हो रहा है. टीचर्स एपायंट करना, स्कूल बनवाने, बुक बनवाने, एक्जाम करने में सरकार आगे पर नौकरी लगा पढ़ाने में कोई नहीं. सरकार जानबूझ कर माहौल पैदा करती है कि बच्चे पढ़ें ही नहीं, खासतौर पर किसानों, मजदूरों, मैकेनिकों, सफाई करने वालों को तो पढ़ाते ही नहीं है. वे सिर्फ मोबाइलों पर फिल्में देखना जानते हैं. ट्रैफिक पुलिसमैन बनी सरकार अपनी जेब भर रही है.
मोदी सरकार अगर इस्तीफा दे देगी तो जो नई सरकार आएगी वह भी उसी ढांचे में ढली होगी क्योंकि यहां पढ़ाने का मतलब होता है पौराणिक पढ़ाई जिस में पढ़ाने वाला गुरू होता है जो मंत्रों को रटवाता है और उस के बदले दान, दक्षिणा, खाना, गाय, औरतें, घर पाना है और गॢमयों में पंखों के नीचे और सॢदयों में धूप में सुस्ताना है, कोङ्क्षचग में वह सिर्फ पेपर लीक करवा कर पास कराने का ठेका लेता है.
जब असली काम की नौबत आती है, पढ़ालिखा सीरिया और तुर्की के मकानों की तरह भूकंप में छह जाता है. अब जब भूकंप के लिए…..एरडोगन और इरशाद जिम्मेदार नहीं तो मोदी क्यों. इसलिए चुप रहो, शोर न मचाओ.