जानवरों का चारादाना निबटाते हुए सरना को काफी देर हो गई थी. उस ने भल्लू चौधरी की गौशाला में ताला ठोंक कर झटका दिया और मुट्ठियां बगलों में दबा लीं. एक पल को उसे बड़ा अच्छा लगा. सोचने लगा कि अब रात अपनी है. पुआल के बिछावन में पुरानी रजाई ओढ़ कर लेटेगा, तो छमिया की याद थोड़ी गरमी दे जाएगी और वह मीठी नींद सो जाएगा.सरना को छमिया के गदराए बदन की याद आती थी, पर हर समय तो छमिया उस की बांहों में हो नहीं सकती. चौधराइन ने सरना को बाहर की कोठरी की चाबी देते वक्त लकड़ी निकालने को कहा था और कहा था कि अगले दिन बेचेंगे. अच्छा यह रहा कि घर पर चौधरी नहीं थे.
चौधराइन ने दोपहर को पेट भर बढि़या खाना करा दिया था. वह भी दोनों वक्त का एक ही बार में खा गया था. खाता न तो करता भी क्या? छमिया खाना तो ठीक बनाती थी, पर बढि़या कचौड़ी, रायता, 2-2 सब्जियां और खीर उसे कहां बनानी आती थी? चौधरी ने 2 दिन पहले रतजगा किया था. उस के लिए कई दिन खाने लायक खाना बचा था. चौधरी किसी स्वामी को छोड़ने उन के आश्रम 250 किलोमीटर दूर अपनी गाड़ी में गए हुए थे. चौधरी घर में होते तो चाहे कुछ भी बनता, सरना को सूखी रोटियां और बासी साग ही मिलता. वह मन ही मन सोच रहा था कि अच्छा होता, अगर चौधरी 5-7 दिन बाहर ही रहते. सरना ने दरवाजे की कुंडी खटकाई. चौधराइन ने दरवाजा खोला. सरना को लग रहा था कि चौधराइन कुंडी खोलते वक्त गुनगुना रही थीं. चौधराइन ने उस समय टाइट ब्लाउज पहन रखा था.
सरना कुछ सोचता सा खड़ा था कि सामने खड़ी चौधराइन ने कहा, ‘‘लाओ चाबी. और हां, कुछ लकडि़यां यहां भी डाल दो. बड़ी ठंड है. मैं भी जला लूंगी. हीटर से कहां काम चलता है.’’ हमेशा स्वैटर, शौल वगैरह से लदीफदी गुडि़या को उस समय इतने कम कपड़ों में देखने की बात सरना सपने में भी नहीं सोच सकता था.
‘इन्हें इतने कपड़े पहनने के बाद भी ठंड क्यों नहीं लग रही है?’ वह सोचने लगा, ‘पर बेचारी बूढ़े साहूकार के फंदे में फंस गई. यह किसी और गरमी की तलाश में है.’
जब तक सरना लकड़ी लाया, तो पानी की बूंदाबांदी बौछार में बदल गई थी. भीगने से बचने के लिए उसे तकरीबन दौड़ना पड़ा. शुक्र था कि चौधराइन किवाड़ खोले ही खड़ी थीं.
बरामदे में लकडि़यां रख कर उस ने चेहरे और नाक का पानी पोंछते हुए हाथ एक ओर झटका. चौधराइन ने उस की ओर देखा तो हंस पड़ीं, ‘‘अरे, तुम तो अच्छेखासे भीग गए.’’‘‘पानी में जो जाएगा, वह भीगेगा ही,’’ कहते हुए सरना कुढ़ सा गया. वह सोचने लगा, ‘पैसे वालों को गरीबी का मजाक उड़ाने में शायद कुछ खास मजा आता है.’ ‘‘वह तो ठीक है, लेकिन अब तुम रात कैसे काटोगे?’’ चौधराइन ने खूंटी पर टंगे पति के एक पुराने कुरते की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘यह तो तुम्हारे बहुत ढीला होगा पर पहन लो. और वह रही लुंगी.’’ सरना को यह बात कुछ जंची नहीं. पर ठिठुरने के बजाय यही ठीक रहेगा, यही सोच कर उस ने कुरता उतार लिया. अब चौधराइन अंदर की ओर चली गई थीं.
लुंगी और ढीलाढाला कुरता पहनते हुए सरना को लगा कि चौधराइन उसे देख रही हैं. सरना को अजीब लग रहा था. वह सोचने लगा कि इन कपड़ों में तो वह जोकर लग रहा होगा. खैर, कौन इतनी रात में देखेगा. सरना ने आवाज दी, ‘‘किवाड़ बंद कर लीजिए, मैं जा रहा हूं. मैं ने बरामदे में लकडि़यां जला दी हैं. आप यहां बैठ कर आग सेंक सकती हैं.’’
तभी खाने की थाली लिए आती चौधराइन ने कहा, ‘‘अजीब बात है. पानी बरस रहा है, फिर भीगना है क्या? खाना खा लो, शायद तब तक पानी रुक जाए. घर में छाता भी नहीं है. चौधरी साहब छाते को अपने साथ ले गए हैं.’’ यह तो मुंहमांगी मुराद थी सरना के लिए. वह खाता जाता था और चौधराइन की खूबसूरती की दिल ही दिल में तारीफ भी करता जा रहा था. तब तक बरामदे की लकडि़यां जलने लगी थीं. उसे भी गरमी महसूस हो रही थी.
सरना को लग रहा था कि यह वाकई बड़ी नेक औरत है. इसे बूढ़े चौधरी के पल्ले बांध कर कुदरत ने इस के साथ बहुत बड़ा मजाक किया है. अब तक औलाद का मुंह तक नहीं देखा बेचारी ने… जबकि ब्याह हुए 7-8 बरस गुजर गए हैं. चौधरी ने इसीलिए किसी पोंगापंथी स्वामी को बुला कर बच्चे देने की मन्नत मांगी थी और भंडारा किया था. सरना खाना खा कर हाथमुंह धो चुका था. पर पानी रुकने का नाम नहीं ले रहा था. उलटे बारिश तेज होती जा रही थी. आग के पास हाथपैर सेंक कर सरना ने कहा, ‘‘अब मैं चलूंगा मालकिन.?’’
इतनी रात को अकेली चौधराइन के पास सूने घर में रुकने का सरना का मन था, पर जानता था कि पकड़ा गया तो उस का घरबार सब जला दिया जाएगा, इसीलिए उसे वहां से जाने की उतावली हो रही थी. चौधराइन ने नीचे से ऊपर तक उसे गौर से देखते हुए कहा, ‘‘बहुत अच्छे… पानी में भीग कर बीमार पड़ने का इरादा है क्या? ठीक है, जाओ, जरूर जाओ, तुम्हारे घर में दवादारू के लिए भी बहुतेरे लोग बैठे हैं…’’ ‘‘न जाऊं तो करूं भी क्या? यहां बैठने से तो रात कटनी नहीं. कोई देखेगा तो क्या कहेगा,’’ अपने दिल की बात झिझक के साथ सरना ने कह दी.
‘‘यह घर छोटा है न… यहां ओढ़नेबिछाने को कुछ नहीं है न? अरे सरना, यह घर तो रहने वालों के लिए तरसता है. यहां कमी भी किस बात की है. दुनिया के कहनेसुनने की चिंता है? क्या मैं तुझे वैसी लगती हूं, सच कहना?’’
‘‘नहीं, आप तो बड़ी नेक और रहमदिल हैं. मैं औरतों के मामले में आप की मिसाल देता हूं. आप का अंगअंग संगमरमर का सा सफेद है, छूने पर मखमली होगा. सुंदरता की खान.
‘‘चौधरी के बुढ़ापे का जब आप से मेल करता हूं तो मन करता है कि आप के कदमों पर माथा झुका दूं. ‘‘मालकिन, छोटी सी उम्र में मैं ने भी काफी दुनिया देखी है. पहले मैं लुधियाना गया था. वहां मेरे बूढ़े लालाजी की जवान बीवी मेरे देखतेदेखते ही अपने यार के साथ चंपत हो गई थी…’’ लगता था जैसे सरना की बात बांध तोड़ कर नदी की तरह बह निकली थी. चौधराइन ने आग और तेज करते हुए सिसक कर सरना की ओर आते हुए कहा, ‘‘और क्या देखा?’’
सरना को लगा, जैसे उन के चेहरे पर कुछ और लाली आ गई है और आंखों में नशा सा छा गया है. वे बात करने में कुछकुछ अटकने सी लगी हैं. उस ने लाला और यार की कहानी 2-4 बातों में बता दी कि कैसे उस ने ही उन्हें कमरे में साथ सोते देखा था. बात करतेकरते चौधराइन इधरउधर चौकन्नी निगाहों से देखती भी जा रही थीं, मानो दीवारों के कान होने पर उन्हें यकीन होता जा रहा हो.
सरना को ऐसा लगा, जैसे उस के शरीर की उठी मछलियों पर चौधराइन की नजरें गड़ी हैं. वे बोलीं, ‘‘सरना, यही तो वहम है… दुनिया भी यही जानती है. पर, तुम सब अपने को मेरी जगह रख कर सोचो. क्या धनदौलत से जवानी के जोश को दबाया जा सकता है? सच तो यह है कि ये सब देह की भूख को और बढ़ाने वाले हैं.
‘‘कई बार सोचती हूं कि मैं एक गरीब घर में होती. शाम को मेरा आदमी काम कर के पसीने से लथपथ आता. मैं पंखे से उस को हवा करती और वह सिर्फ मेरा होता, इन बहीखातों का नहीं. घर में नन्हेमुन्ने किलकते, मैं निहाल हो जाती. ये सोनेचांदी के गहने मेरे पैरोें में बड़ी माया की जंजीरें हैं. इन से मेरा दुख बढ़ता है,’’ कह कर उन्होंने सरना पर एक निगाह डाली.
सरना चौधराइन की तेज निगाहों से सिटपिटा गया. उस ने कहा, ‘‘मालकिन, कुदरत ने ही आप को इतना दयावान बनाया है. सुख दिया है और सब से ऊपर ‘सत’ दिया है. आज के जमाने में ऐसे लोग मिलते कहां हैं?’’ ‘‘सरना, तू क्या कभी जान सकेगा मेरे मन की पीर? बचपन गरीबी में बीता. तब मैं पैसे को दुनिया का सब से बड़ा सुख समझती थी, लेकिन फिर भी उस गरीबी में कहीं न कहीं कोई मजा भी था. जो जीने की तमन्ना पैदा करता था, जिस की बदौलत होंठों पर मुसकान रहती थी. मेरी समझ में अब बीता समय ही अच्छा जान पड़ता है. ‘‘लेकिन तब तो मुझे क्या, मेरे मांबाप को भी यही वहम था कि दुनिया का सारा सुख पैसे से खरीदा जा सकता है. तभी तो मुझे चौधरी के पल्ले बांध दिया गया.
‘‘अब मैं सोचती हूं कि चौधरी ने तो पैसे से सुख जरूर खरीदा, पर मेरी खुशियां पैसे के बदले बिक गईं. क्या यह सारा पैसा गरीब से गरीब औरत को वह सुख मुझे दे सकता है, जो पति की बांह का सिरहाना लगा कर सोई जवान औरत को मिलता है? ‘‘प्यारमुहब्बत का झरना बराबर उम्र वालों में भी फूट सकता है. चौधरी तो बिस्तर पर आने से पहले ही निढाल हो जाते हैं.’’ फिर चौधराइन खुल कर बोलीं, ‘‘सरना, सच मान मेरा रोमरोम उस सुख के लिए जब पागल होता है, तो चौधरी के पैसे के हिसाब में डूब कर पता नहीं किस दुनिया में चले जाते हैं. क्या पैसे की इस प्यास का कहीं अंत भी है?
‘‘तू जो समझता है, मैं अपने ‘सत’ पर मजबूत हूं, यह तेरा भोलापन है. दरअसल, मैं अंदर से इतनी नंगी हूं कि तुझे क्या बताऊं.’’ सरना को चौधराइन की बात का कोई जवाब नहीं सूझ रहा था, तभी उसे खांसी आ गई, जिस से वह जवाबदेही से बच गया. चौधराइन इस समय उसे पैसे के जोर से खरीदी गई एक कमजोर औरत लगी, जिस के जिस्म में एक नाजुक दिल धड़क रहा है और वे पैसे के सुख के बदले अनजाने ही जिंदगी की खुशियां हार चुकी हैं. सरना को लगा कि उसे जरूर चौधराइन के काम आना चाहिए.
सरना को चुप देख कर चौधराइन बोलीं, ‘‘तुझे मैं दूध धोई लगती हूं. मेरे तन पर कोई शक नहीं कर सकता, पर दिल को तो मैं ही जानती हूं. कभीकभी दिल की प्यास आंखों में भर आती है. लेकिन इसे पढ़ने वाला कम से कम वहां तो कोई नहीं मिला.’’
सरना सन्न रह गया. जिसे वह इतना ‘साफ’ समझे बैठा है, उस के दिल में ऐसी बात होगी, उस ने ऐसा कब सोचा था? उसे बड़ा दुख हुआ. उसे लगा जैसे चौधराइन की आवाज का काम उन की आंखों ने अपने जिम्मे ले लिया है. वे आंखें एक भूचाल के आने की खबर दे रही थीं.
सरना चौधराइन के सुंदर मुखड़े को देखता रह गया, तभी बिजली जोर से चमकी और चौधराइन डर के मारे उस के बदन से चिपक गईं. सरना की आंखों में भी अनजाने ही एक चमक सी आ गई. उस ने महसूस किया, जैसे चौधराइन के जिस्म के जरीए एक आग उस के तनमन में समाती चली जा रही हो. वे दोनों घंटाभर एकदूसरे की बांहों में बरामदे में ही खोए रहे.
दरवाजे पर खटका सा हुआ. चौधराइन ने कपड़े पहन कर किवाड़ खोल दिए. चौधरी सामने खड़े थे. बदन का पानी पोंछते हुए वे बोले, ‘‘रास्ता बारिश की वजह से खराब हो गया था, इसलिए एक गाड़ी को स्वामीजी के साथ छोड़ कर आ गया हूं…
‘‘यहां तुम अकेली जो थी. मन ने कहा कि लौट चलो, सो लौट आया. तुम्हें हैरानी तो नहीं हुई इस तरह मेरे लौटने पर? यह अच्छा किया कि सरना को रोक लिया था. यह बड़ा अच्छा लड़का है. ऐसी सुनसान रात में अकेले रहना भी तो ठीक नहीं था…’’
चौधराइन अपने आदमी के इस यकीन पर हैरान रह गईं. अगर वह थोड़ी देर और कर देते तो जवानी का तूफान दोनों को पता नहीं कहां ले जाता. चौधराइन मुसकरा कर बोली, ‘‘हैरानी, वह भी आप के आने की? हैरानी तो तब होती, जब आप न आते. सरना भी रुक नहीं रहा था. कह रहा था कि चौधरी आते ही होंगे… थोड़ी देर की तो बात है. आप अकेले ही वक्त काट लीजिए. पर सच मानिए, आप के बिना सब सूनासूना लगता है.’’
घर जाते समय सरना सोच रहा था, चौधराइन के दिल का सारा बोझ जैसे उस के दिल पर आ गया है. अब उसे इस बात की चिंता थी कि अगर फिर किसी दिन चौधरी रात को घर नहीं लौटे, तो उस वक्त क्या होगा?उधर चौधराइन खुश थीं कि दिल के अंदर उठता जोशीला तूफान कम गया था. चौधरी भी खुश हुआ, जब 2 महीने बाद पता चला कि चौधराइन पेट से है. उस ने स्वामीजी को पूरे 2 लाख रुपए का चढ़ावा दिया.सरना को भी चौधराइन ने बहुतकुछ दिया, पर वह बताने की बात नहीं है. राज को राज ही रहने दें.