रिसैप्शन रूम से बड़ी तेज आवाजें आ रही थीं. लगा कि कोई झगड़ा कर रहा है. यह जिला सरकारी जच्चाबच्चा अस्पताल का रिसैप्शन रूम था. यहां आमतौर पर तेज आवाजें आती रहती थीं. अस्पताल में भरती होने वाली औरतों के हिसाब से स्टाफ कम होने से कई बार जच्चा व उस के संबंधियों को संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाता था.

अस्पताल बड़ा होने के चलते जच्चा के रिश्तेदारों को ज्यादा भागादौड़ी करनी पड़ती थी. इसी झल्लाहट को वे गुस्से के रूप में स्टाफ व डाक्टर पर निकालते थे.

मुझे एक तरह से इस सब की आदत सी हो गई थी, पर आज गुस्सा कुछ ज्यादा ही था. मैं एक औरत की जचगी कराते हुए काफी समय से सुन रहा था और समय के साथसाथ आवाजें भी बढ़ती ही जा रही थीं. मेरा काम पूरा हो गया था. थोड़ा मुश्किल केस था. केस पेपर पर लिखने के लिए मैं अपने डाक्टर रूम में गया.

मैं ने वार्ड बौय से पूछा, ‘‘क्या बात है, इतनी तेज आवाजें क्यों आ रही हैं?’’

‘‘साहब, एक शख्स 24-25 साल पुरानी जानकारी हासिल करना चाहते हैं. बस, उसी बात पर कहासुनी हो रही है.’’ वार्ड बौय ने ऐसे बताया, जैसे कोई बड़ी बात नहीं हो.

‘‘अच्छा, उन्हें मेरे पास भेजो,’’ मैं ने कुछ सोचते हुए कहा.

‘‘जी साहब,’’ कहता हुआ वह रिसैप्शन रूम की ओर बढ़ गया.

कुछ देर बाद वह वार्ड बौय मेरे चैंबर में आया. उस के साथ तकरीबन 25 साल की उम्र का नौजवान था. वह शख्स थोड़ा पढ़ालिखा लग रहा था. शक्ल भी ठीकठाक थी. पैंटशर्ट में था. वह काफी परेशान व उलझन में दिख रहा था. शायद इसी बात का गुस्सा उस के चेहरे पर था.

‘‘बैठो, क्या बात है?’’ मैं ने केस पेपर पर लिखते हुए उसे सामने की कुरसी पर बैठने का इशारा किया.

‘‘डाक्टर साहब, मैं कितने दिनों से अस्पताल के धक्के खा रहा हूं. जिस टेबल पर जाऊं, वह यही बोलता है कि यह मेरा काम नहीं है. उस जगह पर जाओ. एक जानकारी पाने के लिए मैं 5 दिन से धक्के खा रहा हूं,’’ उस शख्स ने अपनी परेशानी बताई.

‘‘कैसी जानकारी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जन्म के समय की जानकारी,’’ उस ने ऐसे बोला, जैसे कि कोई बड़ा राज खोला.

‘‘किस के जन्म की?’’ आमतौर पर लोग अपने छोटे बच्चे के जन्म की जानकारी लेने आते हैं, स्कूल में दाखिले के लिए.

‘‘मेरे खुद के जन्म की.’’

‘‘आप के जन्म की? यह जानकारी तो तकरीबन 24-25 साल पुरानी होगी. वह इस अस्पताल में कहां मिलेगी. यह नई बिल्डिंग तकरीबन 15 साल पुरानी है. तुम्हें हमारे पुराने अस्पताल के रिकौर्ड में जाना चाहिए.

‘‘इतना पुराना रिकौर्ड तो पुराने अस्पताल के ही रिकौर्ड रूम में होगा, सरकार के नियम के मुताबिक, जन्म समय का रिकौर्ड जिंदगीभर तक रखना पड़ता है.

‘‘डाक्टर साहब, आप भी एक और धक्का खिला रहे हो,’’ उस ने मुझ से शिकायती लहजे में कहा.

‘‘नहीं भाई, ऐसी बात नहीं है. यह अस्पताल यहां 15 साल से है. पुराना अस्पताल ज्यादा काम के चलते छोटा पड़ रहा था, इसलिए तकरीबन 15 साल पहले सरकार ने बड़ी बिल्डिंग बनाई.

‘‘भाई यह अस्पताल यहां शिफ्ट हुआ था, तब मेरी नौकरी का एक साल ही हुआ था. सरकार ने पुराना छोटा अस्पताल, जो सौ साल पहले अंगरेजों के समय बना था, पुराना रिकौर्ड वहीं रखने का फैसला किया था,’’ मैं ने उसे समझाया.

‘‘साहब, मैं वहां भी गया था, पर कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला. बोले, ‘प्रमाणपत्र में सिर्फ तारीख ही दे सकते हैं, समय नहीं,’’’ उस शख्स ने कहा.

आमतौर पर जन्म प्रमाणपत्र में तारीख व जन्मस्थान का ही जिक्र होता है, समय नहीं बताते हैं. पर हां, जच्चा के इंडोर केस पेपर में तारीख भी लिखी होती है और जन्म समय भी, जो घंटे व मिनट तक होता है यानी किसी का समय कितने घंटे व मिनट तक होता है, यानी किसी का समय कितने घंटे व मिनट पर हुआ.

तभी मेरे दिमाग में एक सवाल कौंधा कि जन्म प्रमाणपत्र में तो सिर्फ तारीख व साल मांगते हैं, इस को समय की जरूरत क्यों पड़ी?

‘‘भाई, तुम्हें अपने जन्म के समय की जरूरत क्यों पड़ी?’’ मैं ने उस से हैरान हो कर पूछा.

‘‘डाक्टर साहब, मैं 26 साल का हो गया हूं. मैं दुकान में से अच्छाखासा कमा लेता हूं. मैं ने कालेज तक पढ़ाई भी पूरी की है. मुझ में कोई ऐब भी नहीं है. फिर भी मेरी शादी कहीं तय नहीं हो पा रही है. मेरे सारे दोस्तों व हमउम्र रिश्तेदारों की भी शादी हो गई है.

‘‘थकहार कर घर वालों ने ज्योतिषी से शादी न होने की वजह पूछी. तो उस ने कहा, ‘तुम्हारी जन्मकुंडली देखनी पड़ेगी, तभी वजह पता चल सकेगी और कुंडली बनाने के लिए साल, तारीख व जन्म के समय की जरूरत पड़ेगी.’

‘‘मेरी मां को जन्म की तारीख तो याद है, पर सही समय का पता नहीं. उन्हें सिर्फ इतना पता है कि मेरा जन्म आधी रात को इसी सरकारी अस्पताल में हुआ था.

‘‘बस साहब, उसी जन्म के समय के लिए धक्के खा रहा हूं, ताकि मेरा बाकी जन्म सुधर जाए. शायद जन्म का सही समय अस्पताल के रिकौर्ड से मिल जाए.’’

‘‘मेरे साथ आओ,’’ अचानक मैं ने उठते हुए कहा. वह उम्मीद के साथ उठ खड़ा हुआ.

‘‘यह कागज व पैन अपने साथ रखो,’’ मैं ने क्लिप बोर्ड से एक पन्ना निकाल कर कहा.

‘‘वह किसलिए?’’ अब उस के चौंकने की बारी थी.

‘‘समय लिखने के लिए,’’ मैं ने उसे छोटा सा जवाब दिया.

‘‘मेरी दीवार घड़ी में जितना समय हुआ है, वह लिखो,’’ मैं ने दीवार घड़ी की ओर इशारा करते हुए कहा.

उस ने हैरानी से लिखा. सामने ही डिलीवरी रूम था. उस समय डिलीवरी रूम खाली था. कोई जच्चा नहीं थी. डिलीवरी रूम में कभी भी मर्द को दाखिल होने की इजाजत नहीं होती है. मैं उसे वहां ले गया. वह भी हिचक के साथ अंदर घुसा.

मैं ने उस कमरे की घड़ी की ओर इशारा करते हुए उस का समय नोट करने को कहा, ‘‘अब तुम मेरी कलाई घड़ी और अपनी कलाई घड़ी का समय इस कागज में नोट करो.’’

उस ने मेरे कहे मुताबिक सारे समय नोट किए.

‘‘अच्छा, बताओ सारे समय?’’ मैं ने वापस चैंबर में आ कर कहा.

‘‘आप की घड़ी का समय दोपहर 2.05, मेरी घड़ी का समय दोपहर 2.09, डिलीवरी रूम का समय दोपहर 2.08 और आप के चैंबर का समय दोपहर 2.01 बजे,’’ जैसेजैसे वह बोलता गया, खुद उस के शब्दों में हैरानी बढ़ती जा रही थी.

‘‘सभी घडि़यों में अलगअलग समय है,’’ उस ने इस तरह से कहा कि जैसे दुनिया में उस ने नई खोज की हो.

‘‘देखा तुम ने अपनी आंखों से, सब का समय अलगअलग है. हो सकता है कि तुम्हारे ज्योतिषी की घड़ी का समय भी अलग हो. और जिस ने पंचांग बनाया हो, उस की घड़ी में उस समय क्या बजा होगा, किस को मालूम?

‘‘जब सभी घडि़यों में एक ही समय में इतना फर्क हो, तो जन्म का सही समय क्या होगा, किस को मालूम?

‘‘जिस केस पेपर को तुम ढूंढ़ रहे हो, जिस में डाक्टर या नर्स ने तुम्हारा जन्म समय लिखा होगा, वह समय सही होगा कि गलत, किस को पता?

‘‘मैं ने सुना है कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार एक पल का फर्क भी ग्रह व नक्षत्रों की जगह में हजारों किलोमीटर में हेरफेर कर देता है. तुम्हारे जन्म समय में तो मिनटों का फर्क हो सकता है.

‘‘सुनो भाई, तुम्हारी शादी न होने की वजह यह लाखों किलोमीटर दूर के बेचारे ग्रहनक्षत्र नहीं हैं. हो सकता है कि तुम्हारी शादी न होने की वजह कुछ और ही हो. शादियां सिर्फ कोशिशों से होती हैं, न कि ग्रहनक्षत्रों से,’’ मैं ने उसे समझाते हुए कहा.

‘‘डाक्टर साहब, आप ने घडि़यों के समय का फर्क बता कर मेरी आंखें खोल दीं. इतना पढ़नेलिखने के बावजूद भी मैं सिर्फ निराशा के चलते इन अंधविश्वासों के फेर में फंस गया. मैं फिर से कोशिश करूंगा कि मेरी शादी जल्दी से हो जाए.’’ अब उस शख्स के चेहरे पर निराशा की नहीं, बल्कि आत्मविश्वास की चमक थी.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...