बात कुछ साल पुरानी है, पर आज भी हालात ज्यादा बदले नहीं हैं. सुनीता रक्षाबंधन से कुछ दिन पहले डाकघर गई थी. उस ने राखी का लिफाफा तो बना लिया था, पर अपने भाई के नाम चिट्ठी नहीं लिखी थी. लिहाजा, वह डाकघर में ही बैठ कर चिट्ठी लिखने लगी.

सुनीता के साथ की सीट पर मालती नाम की एक और औरत बैठी थी और वह समझ गई कि सुनीता क्या और क्यों लिख रही है. यह देख कर मालती फूटफूट कर रोने लगी.

जब सुनीता ने रोने की वजह पूछी, तो मालती ने अपने जज्बातों पर काबू रखते हुए बताया, ‘‘मैं भी आप की तरह अपने भाइयों को राखी भेजने आई हूं, पर मेरी हिम्मत नहीं हो रही है.’’

‘‘पर क्यों? इस में दिक्कत क्या है? क्या तुम्हारे पास पैसे नहीं हैं?’’ सुनीता ने मालती का हाथ पकड़ कर पूछा.

‘‘वह बात नहीं है. आज से 5 साल पहले मैं ने अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ शादी कर ली थी. लड़का छोटी जाति का था. हम घर वालों के गुस्से से बचने के लिए गांव छोड़ कर दिल्ली आ गए थे.

‘‘उस समय मेरे पिताजी ने मुझे मरा हुआ कह दिया था. मेरे तीनों भाई भी मुझ से नाराज हो गए थे. पिछले साल ही मेरे पिताजी की मौत हो गई थी. अब मैं अपने भाइयों को राखी भेजना चाहती हूं. पता नहीं, उन्हें मेरी राखी से मेरी याद भी आएगी या नहीं,’’ मालती ने अपनी कहानी बताई.

सुनीता ने मालती का हौसला बढ़ाते हुए कहा, ‘‘बिलकुल भेजो. अब तक तो तुम्हारे भाई पुरानी सारी बातें भूल गए होंगे.’’

मालती ने वैसा ही किया और राखी भेज कर वह अपने घर चली गई.

रक्षाबंधन के दिन मालती हैरान रह गई, जब उस के तीनों भाई उस के दरवाजे पर खड़े थे. वह खुशी के मारे उछल पड़ी और तीनों भाइयों को राखी बांधी. भाइयों ने भी उस का खूब मान रखा और अपने जीजा को घर आने का न्योता दिया.

मालती ने मन ही मन सुनीता का शुक्रिया अदा किया, क्योंकि उसी के बढ़ावा देने पर उस ने राखी भेजी थी.

रक्षाबंधन के साथसाथ भाई दूज भाईबहन के रिश्ते को मजबूत करने वाला त्योहार है. मांबाप के बाद भाईबहन ही कई साल एकसाथ जिंदगी गुजारते हैं. बचपन से ले कर शादी होने तक उन दोनों के बीच इतना ज्यादा गहरा रिश्ता बन जाता है कि वे एकदूसरे के सुखदुख में भागीदार बन जाते हैं. चूंकि आजकल अमूमन 2 ही बच्चे पैदा करने का चलन है, तो यह रिश्ता और भी ज्यादा गहरा हो जाता है.

ऐसा नहीं है कि शादी के बाद इस रिश्ते में कम गहराई हो जाती है, पर कुछ वजहों से खटास पैदा होने का खतरा जरूर बन जाता है. मालती के साथ यही हुआ था. निचली जाति में शादी करने के बाद वह अपने परिवार से कट गई थी. पिता के गुस्से और नाराजगी की वजह से मालती के भाई भी उस से खुन्नस खाए हुए थे, लिहाजा मालती ने भी चुप्पी साध ली थी, पर वह अपने भाइयों के बगैर घुटघुट कर जी रही थी.

पिता के न रहने पर उस के मन में उम्मीद की किरण जगी और सुनीता के बढ़ावा देने पर उस ने अपने भाइयों को राखी भेज दी, जिस का नतीजा बेहद सुखद रहा.

यह हमारे लिए शर्मनाक बात है कि आजादी के 75 साल बाद भी कोई लड़की अपनी पसंद का लड़का ढूंढ़ कर उसे अपना जीवनसाथी नहीं बना सकती है. और अगर वह लड़का निचली जाति का है तो घरसमाज में भूचाल आ जाता है. पिता तो लड़की को मरा हुआ मान लेते हैं, जबकि भाई मरनेमारने पर उतारू हो जाते हैं.

गुजरात के अहमदाबाद जिले के वारमोर गांव में 9 मई, 2019 को 8 लोगों ने मिल कर दलित नौजवान हरेश सोलंकी पर तलवार, चाकू, छड़ और डंडे से हमला बोला और उसे मार डाला. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इन लोगों की अगुआई लड़की के पिता दशरथ सिंह जाला कर रहे थे.

लड़की का नाम उर्मिला था और जिस समय उस के पति की हत्या हुई, उस समय उस के पेट में 2 महीने का बच्चा पल रहा था. तकरीबन 6 महीने पहले हरेश और उर्मिला ने शादी की थी.

इस वारदात से कुछ दिनों पहले तेलंगाना में एक कारोबारी पिता ने अपनी गर्भवती बेटी अमृता के पति की किराए के गुंडों से सरेआम हत्या करा दी थी, क्योंकि लड़की ने अपने पिता की मरजी के खिलाफ एक दलित लड़के प्रणय से शादी कर ली थी. यह हत्या लड़की की आंखों के सामने हुई थी.

ये तो वे वारदातें हैं, जिन में अति कर दी गई थी, पर ज्यादातर मामलों में लड़की को अपने परिवार से नाता तोड़ना पड़ जाता है और वह न चाहते हुए भी अपने भाई से दूर हो जाती है. लेकिन भाइयों को इस सिलसिले में पहल करनी चाहिए और रक्षाबंधन और भाई दूज जैसे त्योहार इस टूटे रिश्ते को जोड़ने का काम करते हैं.

सब से पहले तो भाई को यह समझ लेना चाहिए कि उस की बहन ने सोचसमझ कर ही अपना जीवनसाथी चुना होगा. अगर उस समय कोई गुस्सा था भी, तो रक्षाबंधन और भाई दूज के दिन तो भाई अपनी बहन के घर जा कर यह देख सकता है कि वह सुखी तो है.

अगर मालती की तरह उस की शादी को कई साल हो गए हैं, तो यकीनन वह मां भी बन गई होगी और किसी भी मामा के लिए उस के भानजाभानजी दिल के टुकड़े होते हैं, फिर वह उन्हें अपने स्नेह से कैसे दूर रख सकता है.

भाई और बहन तो एकदूसरे के लिए संबल होते हैं. मांबाप के न रहने के बाद सब से ज्यादा नजदीकी रिश्ता उन्हीं का होता है. समझदार भाईबहन कभी भी एकदूसरे को अकेलेपन का एहसाह नहीं होने देते हैं.

उन्होंने अपनी जिंदगी के कई साल उस घर में बिताए होते हैं, जो उन के मांबाप का सपनों का घरौंदा होता है. वहां उन की खट्टीमीठी, अच्छीबुरी यादें बीती होती हैं. फिर एक निचली जाति के लड़के से शादी करने के बाद इस मजबूत रिश्ते में दरार आने की कोई वजह नहीं है. और ऐसा हो भी गया है, तो रक्षाबंधन और भाई दूज पर उस दरार को भरा जा सकता है. यही इस त्योहार का असली मकसद भी है.

बहन के जिंदा होते हुए किसी भाई की कलाई कभी सूनी नहीं रहनी चाहिए और भाई दूज पर भाई को अपने स्नेह का तिलक लगाना हर बहन का हक होता है, इसलिए पुरानी कड़वी यादों को भूलें और बहन को फिर से अपने परिवार में शामिल कर लें.

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