सोनिया तब बच्ची थी. छोटी सी मासूम. प्यारी, गोलगोल सी आंखें थीं उस की. वह बंगाली बाबू की बड़ी बेटी थी. जितनी प्यारी थी वह, उस से भी कहीं मीठी उस की बातें थीं. मैं उस महल्ले में नयानया आया था. अकेला था. बंगाली बाबू मेरे घर से 2 मकान आगे रहते थे. वे गोरे रंग के मोटे से आदमी थे. सोनिया से, उन से तभी परिचय हुआ था. उन का नाम जयकृष्ण नाथ था.

वे मेरे जद्दोजेहद भरे दिन थे. दिनभर का थकामांदा जब अपने कमरे में आता, तो पता नहीं कहां से सोनिया आ जाती और दिनभर की थकान मिनटों में छू हो जाती. वह खूब तोतली आवाज में बोलती थी. कभीकभी तो वह इतना बोलती थी कि मुझे उस के ऊपर खीज होने लगती और गुस्से में कभी मैं बोलता, ‘‘चलो भागो यहां से, बहुत बोलती हो तुम…’’

तब उस की आंखें डबडबाई सी हो जातीं और वह बोझिल कदमों से कमरे से बाहर निकलती, तो मेरा भावुक मन इसे सह नहीं पाता और मैं झपट कर उसे गोद में उठा कर सीने से लगा लेता.

उस बच्ची का मेरे घर आना उस की दिनचर्या में शामिल था. बंगाली बाबू भी कभीकभी सोनिया को खोजतेखोजते मेरे घर चले आते, तो फिर घंटों बैठ कर बातें होती थीं.

बंगाली बाबू ने एक पंजाबी लड़की से शादी की थी. 3 लोगों का परिवार अपने में मस्त था. उन्हें किसी बात की कमी नहीं थी. कुछ दिन बाद मैं उन के घर का चिरपरिचित सदस्य बन चुका था.

समय बदला और अंदाज भी बदल गए. मैं अब पहले जैसा दुबलापतला नहीं रहा और न बंगाली बाबू ही अधेड़ रहे. बंगाली बाबू अब बूढ़े हो गए थे. सोनिया भी जवान हो गई थी. बंगाली बाबू का परिवार भी 5 सदस्यों का हो चुका था. सोनिया के बाद मोनू और सुप्रिया भी बड़े हो चुके थे.

सोनिया ने बीए पास कर लिया था. जवानी में वह अप्सरा जैसी खूबसूरत लगती थी. अब वह पहले जैसी बातूनी व चंचल भी नहीं रह गई थी.

बंगाली बाबू परेशान थे. उन के हंसमुख चेहरे पर अकसर चिंता की रेखाएं दिखाई पड़तीं. वे मुझ से कहते, ‘‘भाई साहब, कौन करेगा मेरे बच्चों से शादी? लोग कहते हैं कि इन की न तो कोई जाति है, न धर्म. मैं तो आदमी को आदमी समझता हूं… 25 साल पहले जिस धर्म व जाति को समुद्र के बीच छोड़ आया था, आज अपने बच्चों के लिए उसे कहां से लाऊं?’’

जातपांत को ले कर कई बार सोनिया की शादी होतेहोते रुक गई थी. इस से बंगाली बाबू परेशान थे. मैं उन्हें विश्वास दिलाना चाहता था, लेकिन मैं खुद जानता था कि सचमुच में समस्या उलझ चुकी है.

एक दिन बंगाली बाबू खीज कर मुझ से बोले, ‘‘भाई साहब, यह दुनिया बहुत ढोंगी है. खुद तो आदर्शवाद के नाम पर सबकुछ बकेगी, लेकिन जब कोई अच्छा कदम उठाने की कोशिश करेगा, तो उसे गिरा हुआ कह कर बाहर कर देगी…

‘‘आधुनिकता, आदर्श, क्रांति यह सब बड़े लोगों के चोंचले हैं. एक 60 साल का बूढ़ा अगर 16 साल की दूसरी जाति की लड़की से शादी कर ले, तो वह क्रांति है… और न जाने क्याक्या है?

‘‘लेकिन, यह काम मैं ने अपनी जवानी में ही किया. किसी बेसहारा को कुतुब रोड, कमाठीपुरा या फिर सोनागाछी की शोभा बनाने से बचाने की हिम्मत की, तो आज यही समाज उस काम को गंदा कह रहा है.

‘‘आज मैं अपनेआप को अपराधी महसूस कर रहा हूं. जिन बातों को सोच कर मेरा सिर शान से ऊंचा हो जाता था, आज वही बातें मेरे सामने सवाल बन कर रह गई हैं.

‘‘क्या आप बता सकते हैं कि मेरे बच्चों का भविष्य क्या होगा?’’ पूछते हुए बंगाली बाबू के जबड़े भिंच गए थे. इस का जवाब मैं भला क्या दे पाता. हां, उन के बेटे मोनू ने जरूर दे दिया. जीवन बीमा कंपनी में नौकरी मिलने के 7 महीने बाद ही वह एक लड़की ले आया. वह एक ईसाई लड़की थी, जो मोनू के साथ ही पढ़ती थी और एक अस्पताल में स्टाफ नर्स थी.

कुछ दिन बाद दोनों ने शादी कर ली, जिसे बंगाली बाबू ने स्वीकार कर लिया. जल्द ही वह घर के लोगों में घुलमिल गई.

मोनू बहादुर लड़का था. उसे अपना कैरियर खुद चुनना था. उस ने अपना जीवनसाथी भी खुद ही चुन लिया. पर सोनिया व सुप्रिया तो लड़कियां हैं. अगर वे ऐसा करेंगी, तो क्या बदनामी नहीं होगी घर की? बातचीत के दौर में एक दिन बंगाली बाबू बोल पड़े थे.?

लेकिन, जिस बात का उन्हें डर था, वह एक दिन हो गई. सुप्रिया एक दिन एक दलित लड़के के साथ भाग गई. दोनों कालेज में एकसाथ पढ़ते थे. उन दोनों पर नए जमाने का असर था. सारा महल्ला हैरान रह गया.

लड़के के बाप ने पूरा महल्ला चिल्लाचिल्ला कर सिर पर उठा लिया था, ‘‘यह बंगाली न जात का है और न पांत का है… घर का न घाट का. इस का पूरा खानदान ही खराब है. खुद तो पंजाबी लड़की भगा लाया, बेटा ईसाई लड़की पटा लाया और अब इस की लड़की मेरे सीधेसादे बेटे को ले उड़ी.’’

लड़के के बाप की चिल्लाहट बंगाली बाबू को भले ही परेशान न कर सकी हो, लेकिन महल्ले की फुसफुसाहट ने उन्हें जरूर परेशान कर दिया था. इन सब घटनाओं से बंगाली बाबू अनापशनाप बड़बड़ाते रहते थे. वे अपना सारा गुस्सा अब सोनिया को कोस कर निकालते.

बेचारी सोनिया अपनी मां की तरह शांत स्वभाव की थी. उस ने अब तक 35 सावन इसी घर की चारदीवारी में बिताए थे. वह अपने पिता की परेशानी को खूब अच्छी तरह जानती थी. जबतब बंगाली बाबू नाराज हो कर मुझ से बोलते, ‘‘कहां फेंकूं इस जवान लड़की को, क्यों नहीं यह भी अपनी जिंदगी खुद जीने की कोशिश करती. एक तो हमारी नाक साथ ले कर चली गई. उसे अपनी बड़ी बहन पर जरा भी तरस नहीं आया.’’

इस तरह की बातें सुन कर एक दिन सोनिया फट पड़ी, ‘‘चुप रहो पिताजी.’’ सोनिया के अंदर का ज्वालामुखी उफन कर बाहर आ गया था. वह बोली, ‘‘क्या करते मोनू और सुप्रिया? उन के पास दूसरा और कोई रास्ता भी तो नहीं था. जिस क्रांति को आप ने शुरू किया था, उसी को तो उन्होंने आगे बढ़ाया. आज वे जैसे भी हैं, जहां भी हैं, सुखी हैं. जिंदगी ढोने की कोशिश तो नहीं करते. उन की जिंदगी तो बेकार नहीं गई.’’

बंगाली बाबू ने पहली बार सोनिया के मुंह से यह शब्द सुने थे. वे हैरान थे. ‘‘ठीक है बेटी, यह मेरा ही कुसूर है. यह सब मैं ने ही किया है, सब मैं ने…’’ बंगाली बाबू बोले.

सोनिया का मुंह एक बार खुला, तो फिर बंद नहीं हुआ. जिंदगी के आखिरी पलों तक नहीं… और एक दिन उस ने जिंदगी से जूझते हुए मौत को गले लगा लिया था. उस की आंखें फैली हुई थीं और गरदन लंबी हो गई थी. सोनिया को बोझ जैसी अपनी जिंदगी का कोई मतलब नहीं मिल पाया था, तभी तो उस ने इतना बड़ा फैसला ले लिया था.

मैं ने उस की लाश को देखा. खुली हुई आंखें शायद मुझे ही घूर रही थीं. वही आंखें, गोलगोल प्यारा सा चेहरा. मेरे मानसपटल पर बड़ी प्यारी सी बच्ची की छवि उभर आई, जो तोतली आवाज में बोलती थी.खुली आंखों से शायद वह यही कह रही थी, ‘चाचा, बस आज तक ही हमारातुम्हारा रिश्ता था.’

मैं ने उस की खुली आंखों पर अपना हाथ रख दिया था.

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