‘सबरंगी’ समाज और धर्म के ठेकेदार बन कर अराजक व निठल्ले लोगों के समूह पंचायत कर के कई बार प्यार करने वालों को शर्मसार करने वाली मनमानी सजाएं देते हैं. न कानून, न कानून के पहरेदार, न अदालत और हो जाता है कबिलाई फैसला. इस से सामाजिक और मानसिक दर्द के साथ ही जिल्लत उठानी पड़ती है. बात ऊंचनीच की हो तो हालत और भी चिंताजनक हो जाती है. पंचायतों की शर्मनाक करतूतें सभ्य समाज को कलंकित करती हैं और कानून व न्याय व्यवस्था को चिढ़ाती नजर आती हैं. प्यार का पंछी बंदिशों से आजाद होता है,

लेकिन समाज के ठेकेदार न तो उस की उड़ान पसंद करते हैं और न ही उस की आजादी. अगर कोई यह चूक कर दे, तो उसे सजा दी जाती है. अराजक व निठल्ले लोगों की पंचायतें बैठ जाती हैं और वे ऐसा करने वालों के हक में तालीबानी सजाएं मुकर्रर करती हैं. मामला किसी दलित से जुड़ा हो, तो उस की मुसीबत में कई गुना इजाफा हो जाता है. घर, समाज, परिवार, जाति, धर्म, इज्जत, बेइज्जती के नाम पर वह सब घटित हो जाता है, जो सभ्य समाज को कलंकित करने वाला होता है. कभी खाप, तो कभी गांवकसबों की पंचायतों में मनमाने फैसले कर के सजाएं दी जाती हैं. कुछ इस अंदाज में कि न कानून, न कानून के पहरेदार, न कोर्ट, न कोई दलील,

सिर्फ चंद लोगों का समूह और उन का थोपा गया जिल्लत देने वाला फरमान. असभ्यता को आईना दिखाया जाता है. इतना ही नहीं, कानून का नकारापन भी लोगों को सामाजिक व मानसिक दर्द सहने को मजबूर करता है. 21वीं सदी में कानून का जिस तरह से मजाक बनाया जाता है, उस पर अमल करना पीडि़तों की मजबूरी हो जाता है, क्योंकि हर तरफ उन्हें मायूसी का घना बादल नजर आता है. इस बीच कुछ अराजक लोगों ने प्रेमी जोड़े का मुंह काला करने के लिए काला तेल फेंक दिया. बात यहीं खत्म नहीं हुई. दोनों को पीटा भी गया. इस के बाद तथाकथित पंचों ने फैसला सुनाया. उन्होंने प्रेमी जोड़े को 4 महीने के लिए गांव से निकाल दिया. इस के बाद ही वे पतिपत्नी की तरह रह सकते थे. गांव, समाज, बिरादरी की बदनामी के कलंक के दाग के साथ उन्हें अलगअलग भेज दिया गया.

पंचायत ने यह भी तय किया कि अगर कोई अब पुलिस के दरवाजे पर गया, तो उस का सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाएगा. सभ्य समाज पर कालिख पोतने वाला फरमान प्रेमी जोड़े पर लागू हुआ. प्यार करने की कीमत उन्हें जिल्लत और मानसिक दर्द के साथ चुकानी पड़ी थी. न यहां कानून काम आया और न कानून के पहरेदार. सिरफिरे सामाजिक ठेकेदारों की करतूत को सामने लाने वाला यह कोई अकेला मामला नहीं था. उत्तर प्रदेश का ही मुजफ्फरनगर कसबा प्रेमी जोड़े को सजा देने के मामले में लंबे अरसे से बदनाम है. चारथावल क्षेत्र के एक गांव में एक जोड़े में प्यार हुआ, तो इन दोनों ने निकाह कर लिया. लड़की के घर वालों को यह बात अखर गई. उन के साथ गांव के लोग भी मिल गए और इसे पूरे गांव की इज्जत से जोड़ दिया गया. इस फरमान से डर कर प्रेमी जोड़ा घर से भाग गया. इस के बाद पंचायत हुई, जिस में लड़के के मातापिता को बुलाया गया.

पंचायत के फरमान के बाद सरेआम लड़के के पिता को 10 व मां को 5 जूते मारे गए. उन पर 25,000 रुपए का जुर्माना भी थोप दिया गया और गांव छोड़ने को कहा गया. साथ ही, यह भी ऐलान किया गया कि प्रेमी जोड़े को देखते ही कत्ल कर दिया जाए. बात ऊंचनीच और दलितों की हो, तो मुसीबत और भी बढ़ जाती है. दबंगों का पारा चढ़ जाता है और वे सबक सिखाने पर उतर आते हैं. यह उनकी वे कुंठाएं होती हैं, जो दिमाग के कोने में दलितों को देख कर कुलबुलाती रहती हैं. बागपत जिले का एक मामला कम चौंकाने वाला नहीं है. दरअसल, एक लड़के का जाट समुदाय की एक लड़की से प्यार हो गया. लड़का दलित था. लिहाजा, दबंगों का पारा चढ़ गया.

उन्होंने लड़की की जबरन शादी कर दी, लेकिन एक महीने बाद ही वह मायके आई और वह लड़के के साथ फरार हो गई. दोनों ने शादी कर ली. बाद में दोनों को बरामद कर लिया गया. पुलिस ने लड़के पर दूसरा केस बना कर जेल भेज दिया. इस के बाद दलित परिवार की जान पर बन आई. दबंगों के समूह ने फरमान जारी कर दिया कि ऊंची जाति की लड़की भगाने वाले लड़के की दोनों बहनों के साथ रेप कर के उन्हें गांव में नंगा घुमाया जाए. लड़के की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई. अफसरों को नोटिस जारी किए गए, तो हड़कंप मच गया. गांव के बिगड़े हालात को किसी तरह संभाला गया. जाति और समाज के ठेकेदारों की दबंगई लड़का और लड़की को शायद ही कभी एक होने दे. हरियाणा के यमुनानगर में एक लड़की ने दलित लड़के से प्यार किया और घर से भाग कर शादी कर ली.

इस के बाद पंचायत हुई और तुगलकी फरमान जारी हुआ कि दोनों जहां भी मिलें, उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाए. ऐसे मामले भी होते हैं, जिन का बातचीत के जरीए हल निकाला जा सकता है. समस्या को सुल?ाया जा सकता है, लेकिन ऐसा करने में समाज के ठेकेदारों की हुकूमत और कुंठा दोनों प्रभावित होती हैं, इसलिए तरहतरह की बातें करने के साथ ही तुगलकी फैसले किए जाते हैं. मामले को धार्मिक, बदनामी, जातियों जैसे मोड़ देने में उन्हें हुनर हासिल होता है. बुलंदशहर जिले के बुगरासी इलाके के एक नेत्रहीन अब्दुल कदीर की भतीजी ने अपने शौहर को तलाक देने के बाद गैरधर्म के एक लड़के से शादी कर ली. इस से धर्म के ठेकेदार भड़क गए. उन के डर से वह जोड़ा गांव छोड़ कर भाग गया. दूसरों के घरों की इज्जत संभालने का ठेका लेने वालों को यह बात और भी बुरी लगी. सबक सिखाने के लिए उन्होंने पंचायत बुला ली. पंचायत ने अब्दुल कदीर को हाजिर करने का हुक्म दिया, तो कुछ लोग उसे खींच कर पंचायत में ले गए. पंचायत में शामिल लोगों ने भतीजी के दूसरे समुदाय के लड़के के साथ जाने पर उसे जम कर बेइज्जत किया और गालियों से नवाजा.

इतना ही नहीं, उस का सामाजिक बहिष्कार करने का फरमान सुना दिया गया. गांवों में ऐसे निठल्लों की जमात भी होती है, जिन का काम नजर रखना होता है कि किस का चक्कर कहां चल रहा है. उन की असल पीड़ा और कुंठा यह होती है कि लड़की उन्हें लिफ्ट नहीं देती. वे धीरेधीरे खिलाफत का माहौल बनाते हैं, अच्छे मौके की तलाश में रहते हैं और एक दिन वह सब बड़े बवाल की वजह बन जाता है. छोटीछोटी बातों पर होने वाले बैर के चलते भी चटकारे ले कर प्यार के किस्से बयां किए जाते हैं कि किस की लड़की गांव और समाज की नाक कटवा रही है. हापुड़ जनपद में एक लड़का और एक लड़की के बीच प्यार हुआ और दोनों ने कोर्ट में शादी कर ली. इस की खबर लोगों को हुई, तो समाज के अराजक लोग तुरंत सक्रिय हो गए. बदनामी का वास्ता दे कर पंचायत बैठ गई. पंच बने लोगों ने उन दोनों को गोली से उड़ाने तक का फरमान जारी कर दिया. इस से जोड़ा दहशत में आ गया और थाने पहुंच कर सुरक्षा की गुहार लगाई.

वे दोनों बालिग थे, लेकिन समाज के डर से उन्हें अपने घर छोड़ने पड़ गए. पंचायतों में ही नहीं, यह गलत सोच घरों में भी पनपती रही है. हैदराबाद शहर में जहां पंचायतों की नहीं, कानून की चलनी चाहिए. 24 साल के नीरज कुमार पंवार को मई, 2022 में बेगम बाजार में अपनी दुकान के पास पत्नी के घर वालों द्वारा मार डाला गया. उस की पत्नी और 3 महीने के बच्चे का अब क्या होगा, यह भी पत्नी के घर वालों ने नहीं सोचा. ये लोग उत्तर भारत के गांवों से अपनी सोच ले कर हैदराबाद तक में कांड करने को तैयार हैं. ये ही खाप पंचायतों को असल में बल देते हैं. राजस्थान के बांसवाड़ा के अरथूना थाना क्षेत्र के डोबापाड़ा गांव में इनसानियत को शर्मसार करने वाला मामला सामने आया.

प्रेम प्रसंग में एक छात्रा अपने प्रेमी के साथ गांव से चली गई. लड़की के पिता गांव के सरपंच रह चुके थे. लिहाजा, इज्जत का वास्ता दे कर सभी का खून खौल गया. परिवार वाले उन की खोजबीन में लगे थे. उन के दूसरे प्रदेश गुजरात के अहमदाबाद में रहने की बात पता चली, तो वे दोनों को पकड़ कर ले आए. इस के बाद उन के साथ क्रूरता का बरताव शुरू हुआ. दोनों को सरेआम रस्सी के सहारे एक पेड़ से बांध दिया गया और उन के साथ मारपीट की गई. बाद में मौके पर पहुंची पुलिस ने दोनों को छुड़ाया. बिहार के गया जिले में तो समाज के ठेकेदार इनसानियत की हदों को लांघ गए. वजीरगंज थाना क्षेत्र के अमेठा गांव में एक प्रेमी जोड़ा गांव से भाग गया. बाद में दोनों पकड़े गए, तो पंचायत हो गई. पंचायत में पहले दोनों को लाठीडंडों से पीटा गया. जब दोनों बेसुध हो गए, तो उन्हें चिता पर रख कर आग के हवाले कर दिया गया. पुलिस ने इस मामले में 15 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर के कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया. सब से बड़ा सवाल यही था कि चंद लोगों को इस फैसले का अधिकार किस ने दिया?

उन्हें कानून का डर क्यों नहीं था? मेरठ के एक मामले में एक लड़के को प्रेमिका से दूर रहने की हिदायत दी गई. जब वह नहीं माना, तो पंचायत हुई. पंचायत में उस नौजवान को 6 महीने गंजा रहनेकी मनमानी सजा सुना दी. मुजफ्फरनगर की साधना और नूरसलीम ने प्रेम विवाह किया, लेकिन अब सुरक्षा के लिए पुलिस के चक्कर काट रहे हैं, क्योंकि पंचायत उन्हें मारने का फरमान सुना चुकी है. उदयपुर जिले में भरी पंचायत में प्रेमी जोड़े को मुरगा बना कर मनमानी सजा दी गई. इज्जत व सामाजिक व्यवस्था के नाम पर वह सब होता है, जिस की सभ्य समाज में इजाजत नहीं दी जा सकती. उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान,

बिहार व मध्य प्रदेश जैसे इलाकों में पंचायतें सभ्य समाज को कलंकित कर के तरहतरह की सजाएं देती हैं. जो सजा दी जाती है, उस पर अमल जरूरी होता है. अगर कोई नहीं करता, तो उसे डंडे के बलबूते कराया जाता है. पीडि़त कानून की चौखट पर जाने से कतराते हैं, क्योंकि उन्हें उसी समाज और लोगों के बीच रहना होता है. फिर इस बात की कोई गारंटी और सुरक्षा नहीं होती कि भविष्य में उस के साथ बुरा बरताव नहीं होगा. ज्यादातर मामलों में तो कानून के पहरेदार तमाशा ही देखते हैं. बात जब हद से बढ़ जाए, तो जरूरत भर की सक्रियता आती है और फैसले की वकालत पुरजोर ढंग से की जाती है. ऐसा नहीं है कि देश का संविधान इस तरह की हरकतों को नजरअंदाज करता हो.

साल 2017 के एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि शादी का फैसला करने का हक हर नागरिक का अपना है और अनुच्छेद 21 भी यह साफ करता है कि राज्य सरकार, पुलिस, खाप किसी लड़केलड़की की शादी के मामले में रोकटोक रखने पर आमतौर पर यह सब कांड तो पहले हो जाता है और मामला सुर्खियों में आए, उस से पहले ही सबकुछ हो चुका होता है. आजकल सरकार खापों पर मेहरबान है, क्योंकि ये खाप ही गांवों में वर्ग व्यवस्था को और मंदिरमसजिद की राजनीति को लागू करने में मदद कर रही हैं. द्य हरियाणा सरकार की ‘चिराग योजना’ सरकारी स्कूलों को खत्म करने की साजिश हरियाणा में एमबीबीएस की फीस पहले हर साल 53,000 रुपए हुआ करती थी,

जो साल 2020 में बढ़ा कर हर साल 10 लाख रुपए कर दी गई. 40-50 लाख रुपए में वे नौजवान डाक्टर बन सकते हैं, जिन्होंने नीट टौप किया हो और सरकारी मैडिकल कालेज मिला हो. जब यूक्रेन संकट शुरू हुआ, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सवाल किया था कि इतने नौजवान बाहर पढ़ने क्यों जाते हैं? इस का सीधा सा जवाब मनोहर सरकार द्वारा बढ़ाई गई एमबीबीएस की फीस में है. जब 25 लाख रुपए में कुल खर्चे मिला कर बाहर से एमबीबीएस हो रही है, तो यहां ज्यादा फीस भरने से कौन खुश होगा? अब हरियाणा सरकार स्कूली शिक्षा के लिए नई नीति लाई है, जिस का नाम ‘चिराग योजना’ रखा है. सरकारी स्कूल में बच्चा दाखिला लेगा, तो 500 रुपए वसूल करेगी व प्राइवेट स्कूल में दाखिला लेगा, तो 1,100 रुपए तक फीस सरकार भरेगी. बाकी की फीस मांबाप को भरनी होगी. यह सरकारी स्कूलों को खत्म करने की साजिश है. जब सरकारी स्कूल बरबाद हो जाएंगे,

उस के बाद निजी स्कूलों का असली खेल शुरू होगा. जब तक जनता को यह गड़बड़झाला समझ में आएगा, तब तक ये सरकारी स्कूल बेच चुके होंगे. जिस तरह ऊंची शिक्षा के लिए अभी बच्चे विदेश जा रहे हैं, बाद में स्कूली शिक्षा के लिए भी भेजना पड़ेगा. अमीर लोग तो यहां की महंगी फीस भर लेंगे, जो थोड़े कम अमीर होंगे वे दूसरे रास्ते ढूंढ़ लेंगे, लेकिन बहुसंख्यक गरीब आबादी के बच्चों का क्या होगा, यह सोच कर ही भविष्य के भारत में फैलते जा रहे अंधेरे से डर लगने लगता है.

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