क्या आत्महत्या का दोषी सरकार की नीतियों को कहा जा सकता है. क्या कोई जब एक आदमी आत्महत्या करता है तो उसका दायित्व सरकार का नहीं है. आखिर यह जनहानि तो है ही. ऐसे में लाख टके का सवाल यह है कि देश में बढ़ती आत्महत्याओं को रोकने और आम आदमी को एक सही राह प्रदान करने का दायित्व सरकार जिसे की जनहितकारी कहा जाता है कितनी प्रयत्नशील है.

कोई भी देश अपनी जमीन और जलप्रपात, पशु पक्षियों के बूते देश नहीं होता. बल्कि उसकी सबसे बड़ी संपत्ति है वहां के रहने वाले बाशिंदे, जो देश को आगे ले जाते हैं, विकास में सहायक होते हैं और देश की चुनी हुई सरकार का सबसे पहला दायित्व है कि वह देश के आम से आम लोगों के विकास और सुख दुख में साझी हो.

मगर सच यह है कि आम आदमी  के संरक्षण के रूप में “सरकार” अपने कर्तव्य से विपरीत होती चली जा रही है. संपूर्ण देश कि राज्य सरकारें आम आदमी के सुख दुख में हस्तक्षेप के बजाय ऐसी दोचित्तापन योजनाओं में लगी दिखाई देती है जिससे उसे लाभ तो नहीं मिलता बल्कि वह और भी समस्याओं से ग्रस्त होता चला जाता है.

यही कारण है कि अवसाद में आकर के आत्महत्या का वरण कर लेता है. शासकीय विभाग आत्महत्याओं को दर्ज करने के अलावा कुछ भी नहीं करती उसका विश्लेषण करके ऐसी समाज की रचना कि जहां आत्महत्या शुन्य हो की ओर बढ़ने कि आज सबसे ज्यादा आवश्यकता है.

मंत्री जी कहिन- आत्म हत्या..!

हाल ही में सरकार ने संसद में बताया कि 2018 से 2020 के बीच अर्थात कोरोनावायरस कोविड 19 के घात प्रतिघात के प्रथम चरण में आर्थिक तंगी की वजह से देश 25 हजार से अधिक लोगों ने आत्महत्या कर ली . रेखांकित करने वाली बात यह है कि इनमें 16,091 ऐसे लोग थे, जिन्होंने दवालिया हो जाने या कर्ज में डूबे होने के कारण आत्महत्या कर ली, जबकि 9,140 लोगों बेरोजगारी के कारण अपनी जान दे दी.गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने समाजवादी पार्टी के सुखराम सिंह यादव के प्रश्न के लिखित उत्तर राज्यसभा को यह जानकारी दी. सुखराम सिंह यादव ने सवाल पूछा था कि क्या यह सच है कि बेरोजगारी और आर्थिक

तंगी के कारण कई मामले ऐसे आए हैं, जिनमें लोगों ने आत्महत्या के प्रयास किए हैं. यदि हां, तो विगत तीन सालों में इस प्रकार की आत्महत्या के मामलों का ब्योरा क्या है ? उन्होंने ऐसी समस्याओं से निपटने के लिए सरकार की ओर से उठाए गए कदमों का ब्योरा भी पूछा था.

आपको बताते चलें कि

गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने इस प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा कि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) आत्महत्याओं के कारण होने वाली मौतों से संबंधित सूचना का संकलन और प्रकाशन अपनी ‘भारत में आकस्मिक मौतें और आत्महत्याएं’ रिपोर्ट में करता है.और 2020 में 5,213 लोगों ने दिवालिया होने या कर्ज में डूबे होने के कारण आत्महत्या की, जबकि 2019 में यह संख्या 5,908 और 2018 में 4,970 थी. उन्होंने कहा कि 2020 में 3,548 लोगों ने, जबकि 2019 में 2,851 और 2018 में 2,741 लोगों ने बेरोजगारी के कारण आत्महत्या की.

आत्म हत्या और सरकार

दरअसल,आत्महत्या के इस समय काल को हम गंभीरता से लेना चाहते हैं. और इस गंभीर मुद्दे पर चर्चा करना चाहते हैं इन 3 वर्षों के समय में कोरोना कॉविड 19 का समय‌ काल घटित हुआ था,जो भयावह था. ऐसे में सिर्फ आर्थिक कारणों से दिवालिया होने के कारण संसद के पन्नों में आत्महत्या दर्शाना अपने आप में  सच को बयान कर रहा है.

सभी जानते समझते हैं कि कोरोना के समय में जैसी भयानक स्थिति इस देश में पैदा हुई थी शायद संसार के दूसरे कोने में ना हुई होगी. लॉक डाउन की त्रासदी, लंबा समय, नौकरियों का चला जाना भूख, प्यास. इन सब कारणों से जाने कितने लोगों ने आत्महत्या कर ली होगी जो किसी शासकीय दस्तावेज में अंकित ही नहीं हो पाया. हम यह बात इस आस्था के साथ कह रहे हैं कि ऐसा पूरी तरीके से संभव है. सामाजिक ताना-बाना जैसा इस समय काल में नष्ट भ्रष्ट हुआ वह किसी से छुपा हुआ नहीं है.

ऐसे में चुनी हुई सरकार देश की संसद में आंकड़ों के साथ बेमानी करती है तो यह दुर्भाग्य जनक घटना है. आत्म हत्याओं के यह आंकड़े एक भय पैदा करते हैं कि हम किस समय काल में सांसे ले रहे हैं. यह भी महत्वपूर्ण सच है कि रूटीन में आए हुए आंकड़ों को सच मान लेना अपने सच से धोखा है, केंद्र सरकार को चाहिए कि इसके लिए एक कार्य योजना बनाकर के सच को, देश के सामने लाएं.

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