बिहार और ?ारखंड के बीच एक नया विवाद शुरू हो गया है. इस इलाकाई कार्ड के विवाद की आग को शुरू किया ?ारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उसे हवा दे दी है.
हेमंत सोरेन ने यह कह कर बवाल मचा दिया कि ?ारखंड में रहने वाले मगही और भोजपुरी बोलने वाले दबंग हैं और वे लोग ?ारखंड का बिहारीकरण कर रहे हैं, जिसे किसी भी हाल में बरदाश्त नहीं किया जाएगा.
वहीं नीतीश कुमार ने हेमंत सोरेन पर पलटवार करते हुए कहा कि सियासी फायदा उठाने के लिए ऐसी बयानबाजी से बचना चाहिए. इस के बाद बिहार और ?ारखंड के कई नेताओं ने एकदूसरे के खिलाफ जहर उगलना शुरू कर दिया है.
गौरतलब है कि मार्च, 2018 में उस समय की भाजपा सरकार ने मगही, भोजपुरी, मैथिली और अंगिका को दूसरी भाषा का दर्जा दिया था. अब हेमंत सरकार ने भाजपा की रोजगार नीति को पलट दिया है और ?ारखंड स्टेट सर्विस कमीशन में क्वालिफाइंग के लिए इन चारों भाषाओं को हटा दिया है.
इस मसले पर हेमंत सोरेन कहते हैं कि पहले की सरकार ने ऐसी बहाली नीति बना रखी थी, जिस से लोकल लोगों से ज्यादा बाहरी लोगों को मौका मिलता था. ?ारखंड राज्य आदिवासियों और स्थानीय लोगों की तरक्की के लिए बना था, न कि मगही और भोजपुरी बोलने वालों के लिए. बिहार और भोजपुरी व मगही भाषा के खिलाफ मोरचा खोल कर हेमंत सोरेन ने स्थानीयता का कार्ड खेला है.
हेमंत सोरेन यहीं नहीं रुकते हैं, बल्कि वे भोजपुरी और मगही बोलने वालों पर यह आरोप लगा देते हैं कि जब अलग ?ारखंड राज्य बनाने की लड़ाई चल रही थी, तो भोजपुरी और मगही बोलने वाले आदिवासियों को गंदीगंदी गालियां देते थे और आदिवासी औरतों के साथ गलत बरताव करते थे. इस से उन के मन में भोजपुरी और मगही वालों के खिलाफ काफी गुस्सा है.
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3 करोड़, 30 लाख की आबादी वाले ?ारखंड राज्य में भोजपुरी और मगही बोलने वालों की आबादी तकरीबन साढ़े 6 फीसदी है, वहीं आदिवासियों की तादाद 26 फीसदी है. हिंदी के अलावा बंगला, नागपुरी, खोरठा, पंचपरगनिया, कुट्टमाली, कुडुख, संथाली, मुंडारी, हो वगैरह बोलियां बोली जाती हैं.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाषा के इस बवाल के बारे में कहते हैं कि बिहार और ?ारखंड तो भाईभाई हैं. ऐसे मसलों पर सोचसम?ा कर बोलना चाहिए. अगर इस से किसी को सियासी फायदा मिलता है तो ले ले, लेकिन ऐसे मसलों से दूर ही रहना चाहिए.
पिछले दिनों हेमंत सोरेन ने कह दिया कि भोजुपरी और मगही उधर की भाषा है और इसे बोलने वाले लोग ?ारखंड को बिहार बनाना चाहते हैं. ?ारखंड पर कब्जा करना चाहते हैं. स्थानीय भाषा पर ये दोनों बाहरी भाषाएं हावी हैं. अब समय आ गया है कि ?ारखंड की तरक्की के लिए लोकल भाषाओं को बढ़ावा दिया जाए.
ऐसा नहीं करने से आदिवासी राज्य और इलाकाई बोलियों का वजूद ही खत्म हो जाएगा. दिलचस्प बात यह है कि हेमंत सोरेन की पढ़ाई पटना में हुई है और वे खुद अच्छीखासी मगही बोल लेते हैं.
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हेमंत सोरेन से पहले ?ारखंड के मुख्यमंत्री रहे रघुवर दास कहते हैं कि हेमंत सोरेन की नीति ‘बांटो और राज करो’ की रही है. चुनाव से पहले उन्होंने बढ़चढ़ कर ऐलान किया था कि 5 लाख लोगों को नौकरी दी जाएगी.
मुख्यमंत्री अपने वादे को भूल गए हैं. अब जनता का ध्यान भटकाने के लिए वे ऐसा बचकाना बयान दे रहे हैं. मुख्यमंत्री को यह नहीं भूलना चाहिए कि वे केवल आदिवासियों के मुख्यमंत्री नहीं हैं, बल्कि ?ारखंड की साढ़े 3 करोड़ जनता के सेवक हैं.
हेमंत सरकार के वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव आग में घी डालते हुए कहते हैं कि क्या बिहार में संथाल और उरांव भाषा को मान्यता दी जाएगी? बिहार में रहने वाले संथाल और उरांव जातियों के लोगों की भाषा को सरकारी नौकरियों में मान्यता क्यों नहीं दी जाती है?
गौरतलब है कि बिहार के सहरसा, पूर्णियां, कटिहार, बांका, बेतिया और बगहा जिलों में संथाल और उरांव जातियों की बड़ी आबादी है.
बिहार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल कहते हैं कि ?ारखंड के मुख्यमंत्री समाज को बांटने की कोशिश में लगे हुए हैं, जो राज्य और जनता के भले के लिए नहीं है.
?ारखंड हाईकोर्ट के वकील अभय सिन्हा कहते हैं कि बिहार के पढ़ेलिखे लोग ?ारखंड सरकार में ऊंचे पदों पर कायम हैं, इसी से हेमंत सोरेन को चिंता हो रही है.
हेमंत सोरेन आदिवासियों की बेहतरीन पढ़ाईलिखाई का इंतजाम करने और उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने के बजाय राजनीति का कार्ड खेल रहे हैं और आदिवासियों को लौलीपौप दिखा कर सिर्फ और सिर्फ वोट बैंक मजबूत करने की फिराक में हैं.
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अगर आदिवासियों को पढ़ालिखा कर बाहरी लोगों के बराबर खड़ा करेंगे, तभी आदिवासियों की तरक्की होगी और बाहरी लोगों का दबदबा भी खत्म होगा.