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सागर विश्वविद्यालय का एम.ए. फाइनल का आखिरी परचा दे कर मंजरी हाल से बाहर आई. वह यह परीक्षा प्राइवेट छात्रा के रूप में दे रही थी. 6 महीने पहले एक दुर्घटना में उस के मातापिता का देहांत हो गया था और उस के बाद वह अपने चाचा के यहां रहने लगी थी. हाल से बाहर आते ही उसे अपनी पुरानी सहेली सीमा दिखाई दी. दोनों बड़े प्यार से मिलीं.

‘‘मंजरी, आज कितना हलका लग रहा है. है न? तेरे परचे कैसे हुए?’’

‘‘अच्छे हुए, तेरे कैसे हुए?’’

‘‘पास तो खैर हो जाऊंगी. तेरे जैसी होशियार तो हूं नहीं कि प्रथम श्रेणी की उम्मीद करूं. चल, मंजरी, छात्रावास में चल कर जी भर कर बातें करेंगे.’’

‘‘नहीं, सीमा, मुझे जल्दी जाना है. यहीं पेड़ की छांव में बैठ कर बातें करते हैं.’’

दोनों छांव में बैठ गईं.

‘‘मंजरी, तुम्हारे मातापिता की मृत्यु इतनी अकस्मात हो गई कि आज भी सच नहीं लगता. चाचाजी के यहां तू खुश तो है न?’’

मंजरी की आंखों में आंसू छलक आए. वह आंसू पोंछ कर बोली, ‘‘चाचाजी के यहां सब लोग बड़े अच्छे स्वभाव के हैं. वहां पैसे की कोई कमी नहीं है. सब ठाटबाट से आधुनिक ढंग से रहते हैं. लेकिन सीमा, मुझे वहां रहना अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘क्यों भला?’’

‘‘देखो, सीमा, मेरे पिताजी साधारण लिपिक थे और चाचाजी प्रखर बुद्धि के होने के कारण आई.ए.एस. हो गए. दोनों भाइयों की स्थिति में इतना अंतर था कि मेरे पिताजी हमेशा हीनभावना से पीडि़त रहते थे. फिर भी वह स्वाभिमानी थे. इसीलिए उन्होंने हमें चाचाजी के घर से यथासंभव दूर रखा था.

‘‘उन्हें बहुत दुख था कि बचपन में उन्होंने पढ़ाई की तरफ ध्यान नहीं दिया. अपनी यह कमी वह मेरे द्वारा पूरी करना चाहते थे. आर्थिक स्थिति कमजोर थी, फिर भी उन्होंने शुरू से ही मुझे अच्छे स्कूल में पढ़ाया. हर साल मुझे प्रथम श्रेणी में पास होते देख वह फूले नहीं समाते थे.’’

‘‘जाने दे ये दुखद बातें. चाचाजी के घर के बारे में बता.’’

‘‘चाचाजी के 2 बच्चे हैं. बड़ी लड़की रश्मि मेरी उम्र की है और वह भी एम.ए. फाइनल की परीक्षा दे रही है. छोटा कपिल कालिज में पढ़ता है. सीमा, तुझे यह सुन कर आश्चर्य होगा कि रश्मि और मैं चचेरी बहनें हैं, फिर भी हमारी शक्लसूरत एकदम मिलतीजुलती है.’’

‘‘तो इस का मतलब यह कि रश्मि बहन भी तुझ जैसी सुंदर है. है न?’’

‘‘रंग तो उस का इतना साफ नहीं, पर अच्छे कपड़ेलत्तों और आधुनिक साजशृंगार से वह काफी आकर्षक लगती है. तभी तो उस की शादी समीर जैसे लड़के से तय हुई है. आज 5 तारीख है न, 20 तारीख को दिल्ली में उन की शादी है.’’

‘‘अच्छा, यह तो बड़ी खुशी की बात है. पर यह समीर है कौन और करता क्या है?’’

‘‘समीर चाचाजी के पुराने मित्र रामसिंहजी का बेटा है. रामसिंहजी मथुरा में ऊंचे पद पर हैं. उन की 2 लड़कियां हैं और एक बेटा. लड़कियों की शादी हो चुकी है. समीर भी आई.ए.एस. है और आजकल सरगुजा में अतिरिक्त कलक्टर के पद पर कार्य कर रहा है. देखने में सुंदर, हंसमुख और स्वस्थ है.’’

‘‘तो क्या यह प्रेम विवाह है?’’

‘‘प्रेम विवाह तो नहीं कह सकते, लेकिन दोनों एकदूसरे को जानते हैं.’’

‘‘मंजरी, अपने चाचाजी से कहना कि तेरे लिए भी ऐसा ही लड़का ढूंढ़ दें.’’

‘‘हट, कैसी बातें करती है? कहां रश्मि और कहां मैं. पगली, समीर सरीखा पति पाने के लिए मांबाप का रईस होना आवश्यक है और मेरे तो मांबाप ही नहीं हैं. मैं तो शादी की बात सोच भी नहीं सकती. पास होते ही मैं नौकरी तलाश करूंगी. चाचाजी पर मैं और ज्यादा बोझ नहीं डालना चाहती.’’

रहस्यमय ढंग से हंसते हुए सीमा बोली, ‘‘अरे, तू शादी नहीं करना चाहती, तो अपने चाचाजी से मेरे लिए लड़का ढूंढ़ने के लिए कह दे.’’

दोनों हंसने लगीं.

‘‘अरे सीमा, एक बात तो तुझे बताना भूल ही गई. रसोई में चाचीजी की मदद करतेकरते मैं भी रईसी खाना, नएनए व्यंजन बनाना सीख गई हूं. अगर किसी आई.ए.एस. अधिकारी से ब्याह करने की तेरी इच्छा पूरी हो जाए तो अपने पति के साथ मेरे घर अवश्य आना, खूब बढि़या खाना खिलाऊंगी.’’

एकदूसरे से हंसीमजाक करते उन्हें आधा घंटा बीत गया. जब वे तपती धूप से परेशान होने लगीं तो जाने के लिए उठ खड़ी हुईं. मंजरी ने एक कागज पर चाचाजी का पता और अपना रोल नंबर लिख कर सीमा को दे दिया.

‘‘सीमा, परिणाम निकलते ही मुझे खबर करना.’’

‘‘जरूर…जरूर. अब कब मुलाकात होगी?’’ कह कर सीमा मंजरी के गले लगी. फिर दोनों भारी मन से एकदूसरे से विदा हुईं.

रश्मि और मंजरी के परचे अच्छे होने पर चाचाचाची खूब खुश थे.

‘‘चाचीजी, अब मैं घर का काम संभालूंगी, आप निश्चिंत हो कर बाहर का काम करिए,’’ मंजरी ने कहा.

शादी का दिन आया, लेकिन घर में कोई होहल्ला नहीं था. दोनों तरफ के मेहमानों के लिए एक अच्छे होटल में कमरे ले लिए गए थे. शादी और खानेपीने का प्रबंध भी होटल में ही था. मेहमान भी सिर्फ एक दिन के लिए आने वाले थे.

रश्मि के मातापिता मेहमानों की अगवानी के लिए सवेरे से ही होटल में थे. बराती सुबह 10 बजे पहुंच गए थे. सब का उचित स्वागतसम्मान किया गया. दोपहर 1 बजे खाना हुआ. खाने के बाद रश्मि के मातापिता थोड़ी देर के लिए आराम करने अपने कमरे में आ गए. 4 बजे फिर तैयार हो कर रिश्तेदारों और बरातियों के पास चले गए. जातेजाते रश्मि से बोल गए कि वह जल्दी मेकअप कर के वक्त पर तैयार हो जाए.

मांबाप के जाते ही रश्मि ने मंजरी को अपने पास बुलाया और बोली, ‘‘मंजरी, मैं मेकअप के लिए जा रही हूं. लेकिन यदि मुझे देर हो गई तो पिताजी को अलग से बुला कर ठीक 6 बजे यह लिफाफा दे देना, भूलना नहीं.’’

‘‘नहीं भूलूंगी. लेकिन तुम 6 बजे तक आने की कोशिश करना.’’

रश्मि हाथ में छोटा सा सूटकेस ले कर चली गई, होटल के ग्राउंड फ्लोर पर ब्यूटी पार्लर में जाने की बात कह कर.

जब शाम को 6 बज गए और रश्मि नहीं आई तो मंजरी ने चाचाजी को कमरे में बुला कर वह लिफाफा उन के हाथ में दे दिया.

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