‘‘अ रे रहमानी, तुम्हें कालू सेठ ने बुलाया है,’’ जब शम्मी बोला, तो रहमानी का चौंकना लाजिमी था.
‘‘क्यों मुझ से क्या काम आ गया?’’ रहमानी पूछ बैठा.
‘‘मुझे क्या मालूम, तुम मिल लो न,’’ शम्मी इतना कह कर चला गया.
‘‘जी, आप ने याद किया,’’ रहमानी सीधा कालू के पास जा कर बोला.
‘‘हां, आइए,’’ कहते हुए कालू ने रहमानी को अपने पास बिठाया और चायनाश्ता कराया.
‘‘जी बताइए, मैं आप की क्या खिदमत करूं?’’ रहमानी झुकते हुए बोला.
‘‘अरे, खिदमत कैसी. तुम्हारी बूआ तुम्हें याद कर रही है. घर आओ न,’’ कालू रहमानी से बड़े प्यार से मिला.
‘‘तो भाईजान, मैं कल आऊंगा.’’
‘‘अरे, पैदल नहीं. मैं तुम्हें मंडी से अपने साथ ले चलूंगा. तुम रात का खाना मेरे घर खाना,’’ इतना कह कालू ने रहमानी को प्यार से विदा किया.
रहमानी रात को अपने घर आया. उस का पुराने सुभाषनगर में छोटा सा झुग्गीनुमा घर है. उस के पापा दुकान चलाते थे. गैस कांड के बाद उन्हें सांस की शिकायत है, फिर भी वे घर से ही कारोबार में मदद करते हैं.
‘‘अब्बू, कालू सेठ ने बुलाया है?’’ रहमानी अब्बू से बात करते हुए बोला.
‘‘अरे, वह तो बड़ा बदमाश है. तेरी बूआ की ननद का बेटा है. आलू का बड़ा कारोबारी है. हम गरीब हैं, इसलिए हमें कोई नहीं पूछ रहा है.’’
‘‘उस ने कल शाम को खाने पर बुलाया है. दुकान बंद कर के चल पड़ेंगे.’’
‘‘अच्छा,’’ कह कर दोनों बापबेटा खाना खा कर सो गए.
सुबह 5 बजे उठ कर अब्बू बाजार से सब्जी उठा लाए. रहमानी शाम के 4 बजे मंडी चला गया. वहां से रात के 10 बजे तक सारा माल बेच कर खाली हुआ ही था कि कालू अपनी कार में अब्बू को बिठाए वहां आ गया.