निहाल इस तरह से देवराज की मेहरबानी के बारे में कुछ सोचता कि क्यों देवराज इस तरह उस पर पैसे लुटाता रहता है, आखिर उस के जैसे तो बहुत सारे लड़के देवराज की जमात में होंगे, फिर क्यों वह निहाल को इतना आदर व सम्मान देता है. कभी सोचता कि खुद वह भी तो देवराज के एक बुलावे पर कहीं भी पहुंच जाता है और आज की दुनिया में सब से जरूरी चीज है समय, और वह तो उस के पास रहता ही है और देवराज उसी समय की कीमत तो चुकाता है, वह कोई एहसान थोड़े ही करता है उस पर.
सच है कि जब मनुष्य की जरूरतें पूरी होने लगती हैं तो उस के सिर पर अहंकार आने ही लगता है, और निहाल भी इस का कोई अपवाद नहीं था.
हमारे देश में कई नेता छात्र जीवन से ही राजनीति से जुड़े और आगे चल कर देश की राजनीति में भी उन्होंने नाम कमाया. दरअसल, राजनीति है ही ऐसी चीज, यह आप को उठाती है तो आकाश में पहुंचा देती है और गिराती है तो रसातल में.
ऐसी ही 2 अतियों के बीच में डोल रहा था देवराज, वह एक साफसुथरी छवि वाला नेता बनना चाहता था पर शायद राजनीति की कालिखभरी गलियों से बिना दाग लगे निकल पाना बहुत मुश्किल था.
एक बार फिर से निहाल के मोबाइल पर देवराज की कौल आई.
‘‘हैलो.’’
‘‘हां निहाल, कैसे हो भाई?’’
‘‘जी भैयाजी, अच्छा हूं.’’
‘‘अरे यार, कितनी बार कहा, भैयाजी मत कहा कर, तू मुझे मेरे नाम से ही बुलाया कर, वरना पिटेगा मु?ा से,’’ देवराज ने बनावटी गुस्से का इजहार करते हुए कहा.
‘‘अरे हां, भाई बिलकुल, अब से देवराज ही बुलाऊंगा, पर बताओ तो आज कैसे याद किया मुझे?’’ निहाल ने भी अपनापन दिखाया.
‘‘हां यार, बस हो सके तो थोड़ी देर के लिए होस्टल में आजा, कुछ बात ऐसी है कि फोन पर नहीं की जा सकती, सामने आएगा तब ही बता पाऊंगा,’’ देवराज रहस्मयी होता जा रहा था.
‘‘हां, ठीक है, देवराज, मैं अभी पहुंचता हूं,’’ निहाल ने फुरती दिखाते हुए कहा.
करीब एक घंटे बाद निहाल होस्टल में देवराज के सामने बैठा हुआ था.
‘‘अब बताओ देवराज, ऐसी कौन सी बात है जो तुम मुझे फोन पर नहीं बता सकते थे?’’ निहाल व्यग्र था.
‘‘दोस्त, बात दरअसल ऐसी है कि वो जो होस्टल है न ‘लंबरदार होस्टल’ उस के एक लड़के वीरेंद्र से अपनी ठन गई है. साला चला है मुझे को टक्कर देने, देवराज को टक्कर देने,’’ आंखें लाल हो चुकी थीं देवराज की. वह फुफकारते हुए बोला, ‘‘उठवा लूंगा साले को, और फिर ऐसीऐसी जगह तुड़ाई करूंगा कि जबजब हवा चलेगी, उस की टूटी हड्डियां उसे देवराज की याद दिलाएंगी,’’ देवराज क्रोध में था. उस का ऐसा रूप निहाल ने पहली बार देखा था.
‘‘पर देवराज, इस मामले में मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं,’’ निहाल की कुछ समझ में नहीं आ रहा था. ‘‘तुम्हे सिर्फ एक गाड़ी में बैठना होगा,’’ देवराज ने गुस्से को शांत करते हुए कहा.
‘‘गाड़ी में बैठना, मतलब? मैं कुछ समझ नहीं, देवराज?’’
‘‘हां निहाल, वह लड़का सुबह 7 बजे लंबरदार होस्टल से निकल कर पार्क जाता है. मेरे आदमी और तुम एक ओमनी वैन ले कर पार्क के पास ही खड़े रहोगे और जैसे ही वीरेंद्र पार्क में आएगा, बस, तुम्हें उस का मुंह दबा कर खींच लेना है वैन के अंदर. इस के बाद उस का क्या करना है, वो हम देख लेंगे.’’ अब देवराज थोड़ा शांत दिख रहा था, उस की यह मांग सुन कर अचानक सिहर उठा था निहाल.
‘‘पर यह तो अपहरण कहलाएगा, देवराज?’’ निहाल ने पूछा.
‘‘जानता हूं निहाल, जानता हूं, अपहरण ही तो करना है तुम्हें उस का,’’ देवराज एकएक शब्द चबा कर बोल रहा था.
‘‘अरे, पर… देवराज यह तो गलत है,’’ निहाल ने सलाह देने की कोशिश की.
‘‘गलत…? इस दुनिया में गलत और सही जैसी कोई चीज नहीं होती. असली चीज होती है अपना साम्राज्य, अपना आधिपत्य. और इन कामों में जो भी कांटा आए उस को अपनी राह से जो निकाल फेंकता है वही राजा कहलाता है. ये सारे कांटे कैसे निकाले जाते हैं, देवराज जानता है और अच्छी तरह जानता है,’’ देवराज की महत्त्वाकांक्षा अपने चरम पर उबल रही थी.
‘‘पर देवराज, यार, यह तो पुलिस का मामला बन सकता है, और कहीं मैं फंस गया तो? मैं तो एक सीधासादा बेरोजगार हूं जो किसी तरह से अपने मांबाप और बहन की जिम्मेदारी को निभा रहा हूं,’’ सशंकित हो रहा था निहाल.
‘‘मैं अच्छी तरह जानता हूं तुम्हारी जिम्मेदारियां, और तेरा परिवार मेरा भी है, और तुम बेरोजगार हो, इसीलिए यह काम तुम्हें दिया है. वैसे, यह काम मैं भाड़े के लोगों से भी करा सकता हूं, पर मैं जानता हूं कि ऐसे लोग विश्वास के योग्य नहीं होते. इस काम के लिए तो मुझे भरोसेमंद आदमी चाहिए, बिलकुल तुम्हारे जैसा. और हां, इस काम के लिए तुम को पूरे 50 हजार रुपए मिलेंगे, वह भी काम से पहले, ठीक है न?’’ काफीकुछ कह गया था देवराज.
देवराज के आखिरी के वाक्य सुन कर एक हर्र्षमिश्रित आश्चर्य निहाल के चेहरे पर दौड़ गया. हां, यह सच है कि अपहरण की बात उसे अच्छी नहीं लगी थी पर 50 हजार रुपए एक बेरोजगार के लिए एक बड़ी रकम थी और यह रकम उसे लालच भी दे रही थी और आकर्षित भी कर रही थी.
‘मु?ो करना ही क्या होगा, सिर्फ गाड़ी में मुंह पर नकाब लगा कर बैठे रहना है और जैसे ही वीरेंद्र पार्क से बाहर आएगा उस का मुंह दबा कर गाड़ी में ही तो खींचना है और इस काम में मेरी मदद के लिए देवराज के आदमी भी तो होंगे. 50 हजार… वह भी काम से पहले… यार निहाल, औफर तो अच्छा है… ये पैसे ले कर जब मांपापा के पास जाऊंगा और उन को यह बतलाऊंगा कि मैं भी निठल्ला नहीं हूं, मैं भी औरों की तरह कमा सकता हूं तब तो वे भी खुश होंगे न. और फिर मिनी भी सोचेगी कि उस का भाई किसी लायक बन गया है.’ अपनी ही गणित में उल?ा हुआ था निहाल कि तभी देवराज की आवाज ने उस की तंद्रा भंग कर दी.
‘‘अरे निहाल, इतना क्या सोच रहा है यार. ऐसे तुझे कोई फंसने थोड़े ही दूंगा. यार है तू मेरा. बस, तू मेरा काम करता जा और मैं तेरे काम आता जाऊंगा,’’ देवराज ने बहलाया निहाल को.
निहाल को 50 हजार की रकम के आगे सहीगलत कुछ भी समझ नहीं आ रहा था. उसे बस अपनी बेरोजगारी के आगे यह रकम बहुत बड़ी लग रही थी और काफी सोचविचार के बाद उस ने देवराज से इस काम को करने के लिए हामी भर दी.
‘‘तो फिर ठीक है, निहाल. इस राजू नाम के लड़के को पहचान लो. कल यह एक वैन और 2 बंदे ले कर तुम्हें उसी पार्क के बाहर मिलेगा, जहां पर तुम्हें उस कमीने वीरेंद्र को अगवा करना है. बैस्ट औफ लक मेरे दोस्त,’’ निहाल से देवराज बोला.
आज फिर एक बार मनुष्य के विवेक पर लालच ने जीत हासिल कर ली थी और इसी लालच के वशीभूत हो कर आज वह वो काम करने जा रहा था जो उस ने कभी सोचा भी नहीं था. निहाल घर आ कर चुपचाप लेट गया पर रातभर सो न सका. सुबहसुबह ठीक उसी जगह पहुंच गया जहां पर उसे वारदात को अंजाम देना था. वहां पर वैन पहले से खड़ी थी और राजू अपने साथ 2 बंदे भी ले कर आया था. निहाल एक नकाब लगा कर वैन के अंदर बैठ गया. अभी कुछ ही समय बीता था कि सामने से वीरेंद्र आता हुआ दिखा. धीरेधीरे निहाल की धड़कनें तेज हो रही थीं, पसीना उस की कनपटी तक आ गया था. अब वीरेंद्र वैन के पास से गुजरा, एक खटाक की आवाज के साथ दरवाजा खोल कर निहाल ने वीरेंद्र के मुंह को कपड़े से दबाया और अंदर घसीट लिया. वैन को पहले से ही स्टार्ट कर के रखा था, सो, कुछ ही सैकंड्स में वैन वहां से काफी दूर निकल गई.
निहाल के मोबाइल पर देवराज का फोन आया जिस में उस ने निहाल को आगे वाले चौराहे पर उतर जाने को कहा और अपहृत वीरेंद्र को राजू को सौंप देने की बात कही. निहाल ने ऐसा ही किया. वह आगे वाले चौराहे पर उतर गया और जैसे ही वह उतरा मानो सैकड़ों टन बो?ा उस के सिर से उतर गया.
निहाल चुपके से एक चाय के होटल में घुस गया और यह सुनिश्चित किया कि उसे किसी ने उस वैन से उतरते हुए देखा तो नहीं. वास्तव में आजकल कौन कहां जा रहा है किस से बात कर रहा है, इन बातों का कोई ध्यान नहीं रखता है, सिवा हमारे अंदर के डर के.
चाय पी कर निहाल ने मोबाइल जेब से निकाल कर नैटबैंकिंग पर अपने बैंक के खाते का बैलैंस चैक किया तो उस में 2 दिन पहले ही 50 हजार रुपए जमा हो चुके थे. वह बहुत खुश हो गया और औटो ले कर घर की तरफ चल पड़ा. रास्ते में निहाल ने सोचा कि देखा जाए तो काम भी कुछ खास कठिन नहीं था और पैसा भी अच्छा मिला है. बस, सम?ो मजा ही आ गया. हां, आगे से कभी अगर देवराज ऐसा काम कहेगा भी तो वह साफ मना कर देगा क्योंकि रोजरोज यह काम ठीक नहीं. यही सब सोच उस ने मोबाइल पर ‘थैंक्यू भाई’ का एक संदेश टाइप कर के देवराज को भेज दिया.