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‘‘वह बूढ़ा तो अब इस दुनिया में नहीं है पर उसी रेहड़ी की कमाई से अब उस का बेटा एक बड़ी फल की दुकान का मालिक बन चुका है. वह भी अब तक नियमित रूप से लाभ का 5 प्रतिशत मेरे पास जमा कराता है, जिसे मैं तुम्हारे पिताजी की पासबुक में जमा करता रहता हूं. उस बूढ़े के बाद उन्होंने 7-8 वैसे ही दूसरे फेरी वालों को रेहडि़यां बनवा कर दीं जो अब खुशहाली का जीवन बिता रहे हैं और उन के लाभ का भाग भी इसी पासबुक में जमा हो रहा है.

‘‘इतना ही नहीं, एक नौजवान की बात बताता हूं. एम.ए. पास करने के बाद जब उस को कोई नौकरी न मिली तो उस ने पटरी पर बैठ कर पुस्तकें बेचने का काम शुरू कर दिया. एक बार तुम्हारे पिताजी उस ओर से निकले तो उस पटरी वाली दुकान पर रुक कर पुस्तकों को देखने लगे. यह देख कर उन्हें बहुत दुख हुआ कि उस युवक ने घटिया स्तर की अश्लील पुस्तकें बिक्री के लिए रखी हुई थीं.

‘‘लालाजी ने जब उस युवक से क्षोभ जाहिर किया तो वह लज्जित हो कर बोला, ‘क्या करूं, बाबूजी. साहित्य में एम.ए. कर के भी नौकरी न मिली. घर में मां बिस्तर पर पड़ी मौत से संघर्ष कर रही हैं. 2 बहनें शादी लायक हैं. ऐसे में कुछ न कुछ कमाई का साधन जुटाना जरूरी था. अच्छी पुस्तकें इतनी महंगी हैं कि बेचने के लिए खरीदने की मेरे पास पूंजी नहीं है. ये पुस्तकें काफी सस्ती मिल जाती हैं और लोग किराए पर ले भी जाते हैं. इस तरह कम पूंजी में गुजारे लायक आय हो रही है.’

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