देखतेदेखते कालोनी के सारे प्लौट बिक गए. सब तरफ नएनए डिजाइन और स्टाइल की कोठियां बन गईं. छोटेमोटे कामधंधे करने वालों को भी नई कालोनी में रोजगार के नएनए मौके मिलने लगे. शाम को घूमतेफिरते मुंह का जायका या टेस्ट देने वाले कई स्टौल, छोटीमोटी दुकानें जैसे गोलगप्पे वाला, टिक्कीभल्ले वाला, मलाई कुलफी वाला, छोलेभटूरे व कुलचे बेचने वाला, शिकंजी वाला, मैंगो शेक बनाने वाला भी अपनाअपना ठिकाना बना कर वहां जम गया था.

जयकिशन 24 साल का था. तमाम उस्तादों की शागिर्दी में वह कई काम सीख चुका था और कई नौकरियां भी कर चुका था. अब वह खुद का धंधा शुरू कर के अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता था.

जयकिशन ने इरादा किया कि बर्गर, डोसा वगैरह का धंधा शुरू किया जाए. मगर इस नई पौश कालोनी में कहीं भी कोई छोटी दुकान खाली नहीं थी. अब वह कहां से काम शुरू करे?

उस ने सोचा कि पहले एक रेहड़ी पर धंधा शुरू किया जाए. जब काम जम जाएगा, तब अपना ठिकाना बना लेगा.

मगर रेहड़ी कहां लगाए? कहां खड़ी करे? ऐसे सवाल जयकिशन के जेहन में घूम रहे थे. तभी उस को पता चला कि गोलगप्पे, चाटपापड़ी, जूस वगैरह की रेहडि़यां लगाने वाले कई लोग किसी खाली प्लौट के मालिक को रोजाना या महीने पर पैसे चुका कर अपना धंधा चला रहे थे.

जयकिशन को भी ऐसी कोई जगह मिल सकती थी. उस ने कई दिन पैदल, मोटरसाइकिल पर सारी कालोनी के चक्कर काटे. एक कोठी के बाहर चारदीवारी के साथ एक पक्का चबूतरा था. वहां रेहड़ी लग सकती थी. लिहाजा, कोठी के मालिक से सब तय हो गया.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...