पुरबिया ने भूमिपूजन के दिन भोज रखा, तो बौहरे ने सारे लोगों को बसों भरभर कर लाने के खर्च के हिसाबकिताब को लिखने का भार अपने ऊपर लिया. ऐसे कामों में विधायकजी ने भी आने का न्योता मान लिया था. मंदिर के नाम पर तो ही उन की पार्टी जीती थी.
भूमिपूजन के एक दिन पहले से ही ठाकुर लाल सिंह की बारहद्वारी और उस के आसपास का नजारा देखने लायक था. 3 बीघे का खेत पंगत बैठाने के लिए साफ कराया गया.
ठाकुर के उस खेत में अरहर खड़ी हुईर् थी, पर पुरबियों ने उस खेत को पंगत के लिए एकदम सही सम झा. बारहद्वारी के नीचे 5 हलवाइयों ने अपनीअपनी इच्छा के अनुसार 2-2 भट्ठियां खुदवाईं. बारहद्वारी के अंदर सारी चीजें मालपुआ, खीर, मोतीचूर के लड्डू, सकोरे, पत्तलें वगैरह भी आने लगीं. दलितों को भी बुलाया गया, पर उन का तंबू अलग था.
वैसे तो उन दिनों रिफाइंड औयल का इस्तेमाल देहातों में भी चल पड़ा था और भोजन सामग्री को बनाने में उसे उपयोग में लाया जा सकता था, पर पंडित राम सिंह की बुद्धि का कायल होना पड़ेगा, क्योंकि उन्होंने गांव में बैठेबैठे ही 15 मन खर्च कर देशी घी जुटा दिया. लिहाजा, रिफाइंड औयल को इस्तेमाल करना तो दूर उसे छूने तक की भी जरूरत नहीं पड़ी.
हलवाइयों ने अपनी सुविधा का विचार कर के कार्ज के एक दिन पहले ही 15-20 मन मोतीचूर के लड्डू तैयार कर लिए थे. फिर रात के ठीक 12 बजे उन्होंने अपनेअपने कड़ाहों में देशी घी के टिन उड़ेल दिए. घी की लपट सारे गांव के साथसाथ आसपास के नगलाओं (नगला का अर्थ छोटा गांव है) तक में समा गई.