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एक लंबे अरसे से गांवभर में 3 जनों का बड़ा भारी नाम रहा है. बौहरे चंद्रपाल भड़सार गल्ले की भराई और लेनदेन के लिए मशहूर रहे हैं. पुरबिया गांव में नौकरीपेशा और पढ़ाईलिखाई के लिए पहले नंबर के गिने जाते रहे हैं, तो ठाकुर जाति के प्यारेलाल अपनी जमीनजायदाद के लिए गांव में सब से ऊपर हैं. उन के बराबर जमीन गांवभर में किसी के पास भी नहीं है. गांव के सिवाने से ले कर बंबा (छोटी नहर) तक उन की खेती फैली हुई है. आखिर 225 बीघा जमीन कोई कम नहीं होती.

ठाकुर प्यारेलाल की खेती हमेशा से नौकरों के बलबूते पर होती आई है. घर पर 3 ट्रैक्टर और 8 दुधारू भैंसें उन्होंने हमेशा अपने पास रखी हैं. अच्छे पशु को खरीदने का चाव उन में इतना जबरदस्त रहा है कि जिस भैंस को ज्यादा कीमत के चलते मेले में कोई भी खरीदने को तैयार न होता हो, उसे वे जरूर ही खरीद कर लाते.

ठाकुर प्यारेलाल का काम दोपहरी में पंडित भूरी सिंह से कथावार्ता सुनते रहना और सुबहशाम खेतों का चक्कर लगाना रहा है. जब से राम मंदिर की बात चली है, उन का हिंदूधर्म का प्रेम और बढ़ गया है. पिछले 40 साल से वे ही घर के सोलह आना मालिक रहे हैं. उन्होंने अपने बेटे रामलाल को मालिकी के लिए हमेशा नाकाबिल सम  झ कर इधर 4-6 साल से अपने लाड़ले नाती को घरगृहस्थी की थोड़ीबहुत जिम्मेदारियां सौंपनी शुरू कर दी हैं.

ठाकुर प्यारेलाल बड़े दिलेर आदमी रहे हैं. कोई शादी या कर्ज होने पर उन्होंने कभी भी हाथ सिकोड़ना नहीं जाना. जब उन्होंने अपनी छोटी लड़की की शादी की, तो उन के समधी ने वैसे ही उन से पूछा, ‘‘आप में कितनी बरात बुलाने की हैसियत है?’’

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