सूचनाएं, किस तरह की?’
‘यही कि शहर में हो रही घटनाओं में आप का हाथ है.’
‘लेकिन...?’
उस ने मेरी बात काटते हुए कहा, ‘आप को बताने में क्या समस्या है? हम आप से एक सभ्य शहरी की तरह ही तो बात कर रहे हैं. पुलिस की मदद करना हर अच्छे नागरिक का कर्तव्य है.’
अब मैं क्या बताऊं उसे कि हर बार थाने बुलाया जाना और पुलिस के प्रश्नों का उत्तर देना, थाने में घंटों बैठना किसी शरीफ आदमी के लिए किसी यातना से कम नहीं होता. उस की मानसिक स्थिति क्या होती है, यह वही जानता है. पलपल ऐसा लगता है कि सामने जहरीला सांप बैठा हो और उस ने अब डसा कि तब डसा.
इस तरह मुझे बुलावा आता रहा और मैं जाता रहा. यह समय मेरे जीवन के सब से बुरे समय में से था. फिर मेरे बारबार आनेजाने से थाने के आसपास की दुकानवालों और मेरे महल्ले के लोगों को लगने लगा कि या तो मैं पेशेवर अपराधी हूं या पुलिस का कोई मुखबिर. कुछ लोगों को शायद यह भी लगा होगा कि मैं पुलिस विभाग में काम करने वाला सादी वर्दी में कोई सीआईडी का आदमी हूं. मैं ने पुलिस अधिकारी से कहा, ‘सर, मैं कब तक आताजाता रहूंगा? मेरे अपने काम भी हैं.’
उस ने चिढ़ कर कहा, ‘मैं भी कोई फालतू तो बैठा नहीं हूं. मेरे पास भी अपने काम हैं. मैं भी तुम से पूछपूछ कर परेशान हो गया हूं. न तुम कुछ बताते हो, न कुबूल करते हो. प्रैस के आदमी हो. तुम पर कठोरता का व्यवहार भी नहीं कर रहा इस कारण.’