चौधरी राम सिंह को जब पता चला कि स्वाति प्रधानजी के साथ हरिद्वार घूम आई है तो उन की काटो तो खून नहीं वाली हालत हो गई. उन्हें उन की ‘गुलदारनी’ के बारे में सूचना मिली कि उस ने आज एक नया तगड़ा शिकार किया है.
उस रात 9 बजे चौधरी राम सिंह के पास स्वाति का फोन आया. वह उन से तुरंत मिलना चाहती थी. चौधरी सबकुछ भूल कर स्वाति के घर की ओर लपके, मानो उन्हें दुनिया की दौलत मिल गई हो.
नरदेव चौधरी राम सिंह को घर के अंदर ले गया. स्वाति गुलाबी गाउन पहने सोफे पर बैठी थी. उस ने चौधरी को भी सोफे पर ही बैठा लिया और कहा, ‘‘चौधरी साहब, हमारे तो बस आप ही हो. आप के कहे बिना तो हम एक कदम नहीं चलते.
‘‘आप ने प्रधानजी को मना लेने की बात कही थी, हम ने उन्हें मना लिया. अब बचा हरिया, उस से एक बार मिलाने का जुगाड़ बिठा दो, तो बात बन जाए.’’
आज रसोईघर में चाय नरदेव बना रहा था. स्वाति बेझिझक बोल रही थी, लेकिन चौधरी को समझ नहीं आ रहा था कि वे अपने मन की बात कहें कि स्वाति की बात का जवाब दें.
स्वाति के साथ अकेले बैठने का मौका, वह भी रात में उन्हें पहली बार मिला था. इस से पहले कि वे अपने मन की कुछ कह पाते, नरदेव चाय ले कर आ गया.
चौधरी राम सिंह मन मसोस कर रह गए. स्वाति की बात का जवाब देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘हरिया, तुम्हारे घर तो आएगा नहीं, उसे किसी बहाने से मुझे अपने घर की बैठक पर ही बुलाना पड़ेगा.’’