कुछ पलों तक अंजलि ने प्रशांत के चेहरे को ध्यान से देखा और फिर बोली, ‘‘तुम्हें 3 महीने पुरानी वह रात याद है जब मैं अपनेआप बिना किसी काम के तुम से मिलने डाक्टरों के आराम करने वाले कमरे में पहुंची थी?’’
‘‘जिस दिन किसी इनसान की लाटरी खुले उस दिन को वह भला कैसे भूल सकता है?’’
‘‘अपने प्रेमी के रूप में तुम्हें चुनने के बाद उस रात तुम्हारे साथ सोने का फैसला मैं ने अपनी खुशी व इच्छा को ध्यान में रख कर लिया था और अब तक सैकड़ों पुरुषों ने मुझ से शादी करने की इच्छा जाहिर की है पर
कभी शादी न करने का चुनाव भी मेरा अपना है.’’
‘‘ऐसा कठिन फैसला क्यों किया है तुम ने?’’
‘‘अपने स्वभाव को ध्यान में रख कर. मैं उन औरतों में से नहीं हूं जो किसी एक पुरुष की हो कर सारा जीवन गुजार दें. मेरी जिंदगी में प्रेमी सदा रहेगा. पति कभी नहीं.’’
‘‘तुम्हारी विशेष ढंग की सोच ही शायद तुम्हें और औरतों से अलग कर तुम्हारी खास पहचान बनाती है, जानेमन. मैं तुम्हारी जैसी आकर्षक स्त्री के संपर्क में पहले कभी नहीं आया हूं. प्रशांत की आंखों में उस के लिए प्रशंसा के भाव उभरे.’’
‘‘शायद कभी आओगे भी नहीं,’’ अंजलि उठ कर उस के पास आ बैठी, ‘‘क्योंकि अपने व्यक्तित्व को पुरुषों की नजरों में गजब का आकर्षक बनाने के लिए मैं ने खासी मेहनत की है. अपने प्रेमी के शरीर, दिल और दिमाग तीनों को सुख देने की कला मुझे आती है न?’’
अंजलि ने झुक कर प्रशांत का कान हलके से काटा तो उस के पूरे बदन में करंट सा दौड़ गया. अंजलि ने उसे अपने होंठों का भरपूर चुंबन लेने दिया. प्रशांत की सांसें फिर से उखड़ गईं.
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