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प्रशांत के लौटने तक उस ने खुद को पूरी तरह सहज बना लिया था. उस ने आ कर ‘मिस्ड’ कौल का नंबर पढ़ा और फिर बाहर कोरिडोर में चला गया.

वहां उस ने 10 मिनट किसी से फोन पर बातें कीं. अंजलि को वह इधर से उधर घूमता ड्यूटी रूम से साफ नजर आ रहा था.

‘यू बास्टर्ड,’ अंजलि होंठों ही होंठों में हिंसक लहजे में बुदबुदाई, ‘‘अगर मेरे साथ ज्यादा चालाकी दिखाने की कोशिश की तो वह सबक सिखाऊंगी कि जिंदगी भर याद रखोगे.’

प्रशांत के वापस लौटने तक अंजलि  ने अपनी भावनाओं पर पूरी तरह नियंत्रण कर के उस से मुसकराते हुए पूछा, ‘‘किस से यों हंसहंस कर बातें कर रहे थे?’’

‘‘एक पुराने दोस्त के साथ,’’ प्रशांत ने टालने वाले अंदाज में जवाब दिया.

‘‘रीना मैडम से मेरे सामने बात करते हो तो इस पुराने दोस्त से बातें करने बाहर क्यों गए?’’

‘‘यों ही कुछ व्यक्तिगत बातें करनी थीं,’’ प्रशांत हड़बड़ाया सा नजर आने लगा.

‘‘सौरी, जानेमन.’’

‘‘सौरी क्यों कह रही हो? तुम सोचती हो कि मैं किसी दोस्त से नहीं बल्कि किसी सुंदर लड़की से बातें कर रहा था? उस पर लाइन मार रहा था?’’ प्रशांत अचानक ही चिढ़ा सा नजर आने लगा.

‘‘अरे, मैं ऐसा कुछ नहीं सोच रही हूं क्योंकि मुझ जैसी सुंदर प्रेमिका के होते हुए तुम किसी दूसरी लड़की पर लाइन मारने की बेवकूफी भला क्यों करोगे?’’ अपना चेहरा उस के चेहरे के काफी पास ला कर अंजलि ने कहा और फिर रात वाली सिस्टर को चार्ज देने के काम में व्यस्त हो गई.

कुछ देर बाद ड्यूटी समाप्त कर के प्रशांत चला गया. अंजलि जानती थी कि उसे घर पहुंचने में आधे घंटे से कम  समय लगेगा.

आधे घंटे के बाद उस ने प्रशांत के घर फोन किया. उस की पत्नी रीना ने उखड़े मूड़ में उसे खबर दी कि प्रशांत घर पर नहीं है. इमरजेंसी आपरेशन आ जाने के कारण वह देर तक आपरेशन थिएटर में रुकेगा.

यह खबर सुनते ही अंजलि की आंखों में गुस्से और नाराजगी के भाव एकदम से बढ़ गए. वह अस्पताल से बाहर आई और रिकशा कर के शास्त्री नगर पहुंची.

उस का शक सही निकला था.

डा. प्रशांत की लाल मारुति कार सिस्टर सीमा के घर के सामने खड़ी थी. उस के मोबाइल पर उस ने सीमा के घर के फोन का नंबर शाम को पढ़ लिया था.

उस ने रिकशे वाले को अपने घर की तरफ चलने की हिदायत दी. सारे रास्ते वह क्रोध व ईर्ष्या की आग में सुलगती रही.

सीमा और वह कभी अच्छी सहेलियां हुआ करती थीं. दोनों बेइंतहा खूबसूरत थीं. उन की जोड़ी को साथ चलते देख कर लोग अपनी राह से भटक जाते थे.

सीमा का बौयफ्रैंड उन दिनों रवि होता था और उस के साथ जरा खुल कर हंसनेबोलने के कारण सीमा को शक हो गया और वह अंजलि से एक दिन बुरी तरह से लड़ी थी.

तब से उन के बीच कभी सीधे मुंह बातें नहीं हुईं. दोनों डाक्टरों के बीच बराबर की लोक प्रियता रखती थीं. यह भी सच था कि जो व्यक्ति एक के करीब होता वह दूसरी को फूटी आंख न भाता.

‘‘कमीनी, जान- बूझ कर मेरा दिल दुखाने के लिए प्रशांत पर जाल फेंक रही है. इस बेवकूफ डाक्टर को जल्दी ही मैं ने तगड़ा सबक नहीं सिखाया तो मेरा नाम अंजलि नहीं.’’

घर पहुंचने तक अंजलि का पारा सातवें आसमान तक पहुंच गया था.

अगली सुबह अपने असली मनोभावों को छिपा कर उस ने प्रशांत से मुसकराते हुए पूछा, ‘‘कैसी थी कल की फिल्म?’’

पहले प्रशांत उलझन का शिकार बना और फिर जल्दी से बोला, ‘‘कोई खास नहीं… बस, ठीक ही थी.’’

‘‘गुड,’’ अंजलि दवाओं की अलमारी की तरफ चल पड़ी.

‘‘सुनो, आज शाम डिनर पर चल रही हो?’’

‘‘सोचूंगी,’’ लापरवाह अंदाज में जवाब दे कर वह अपने काम में व्यस्त हो गई.

उस दिन उस ने डा. प्रशांत से सिर्फ काम की बातें बड़ी औपचारिक सी मुसकान होंठों पर सजा कर कीं. शाम तक वह समझ गया कि उस की प्रेमिका उस से नाराज है.

प्रशांत के कई बार पूछने पर भी अंजलि ने अपने खराब मूड का कारण उसे नहीं बताया. ड्यूटी समाप्त करने के समय तक प्रशांत का मूड भी पूरी तरह से बिगड़ चुका था.

अगले दिन भी जब अंजलि ने अजीब सी दूरी उस से बनाए रखी तब प्रशांत गुस्सा हो उठा.

‘‘तुम्हारी प्राबलम क्या है? क्यों मुंह फुला रखा है तुम ने कल से?’’ और अंजलि का हाथ पकड़ कर प्रशांत ने उसे अपने सामने खड़ा कर लिया.

‘‘मेरे व्यवहार से तुम्हें तकलीफ हो रही है, मेरे हीरो?’’ भौंहें ऊपर चढ़ा कर  अंजलि ने नाटकीय स्वर में पूछा.

‘‘बिलकुल हो रही है.’’

‘‘और तुम्हें मेरे बदले व्यवहार का कारण भी समझ में नहीं आ रहा है?’’

‘‘कतई समझ में नहीं आ रहा है,’’ प्रशांत कुछ बेचैन हो उठा.

‘‘इस बारे में रात को बात करें?’’

‘‘इस का मतलब तुम डिनर पर चल रही हो मेरे साथ,’’ प्रशांत खुश हो गया.

‘‘डिनर मेरे फ्लैट में हो तो चलेगा?’’

‘‘चलेगा नहीं दौड़ेगा,’’ प्रशांत ने उस का हाथ जोशीले अंदाज में दबा कर छोड़ दिया.

ड्यूटी समाप्त करने के बाद दोनों साथसाथ प्रशांत की कार में अंजलि के फ्लैट में पहुंचे.

अंदर प्रवेश करते ही प्रशांत ने उसे अपनी बांहों के घेरे में ले कर चूमना शुरू किया. अंजलि के खूबसूरत जिस्म से उठने वाली मादक महक उस के अंगअंग में उत्तेजना भर रही थी.

अंजलि ने उसे जबरदस्ती अपने से अलग किया और संजीदा लहजे में बोली, ‘‘मैं तुम्हें अपने बारे में कुछ बताने के लिए आज यहां लाई हूं. शांति से बैठ कर पहले मेरी बात सुनो, रोमियो.’’

‘‘बातें क्या हम बाद में नहीं कर सकते हैं?’’

‘‘बाद में तुम कुछ सुनने की स्थिति में कभी रहते हो?’’

‘‘देखो, मैं ज्यादा देर बातें कहनेसुनने के मूड में नहीं हूं, इस का ध्यान रखना,’’ प्रशांत पैर फैला कर सोफे पर बैठ गया.

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