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टैंपो कुलदीप के दरवाजे पर आ कर रुक गया था. उस में आलूप्याज और तरहतरह की हरी सब्जियां लदी थीं. दरवाजे की चौखट से पीठ टिकाए कुलदीप की बीवी रेशमी उस के इंतजार में बैठी थी.

कुलदीप टैंपो से उतर कर सब्जी मंडी से आई सब्जियों को दरवाजे के सामने की चौकी पर रखने लगा. इसी चौकी पर बेचने के लिए सब्जियां रखी जाती थीं. रेशमी भी सब्जियों की टोकरी उठा कर रखने लगी थी.

गली के नुक्कड़ पर कुलदीप की सब्जी की दुकान थी. यह दुकान उस ने अपने टूटेफूटे पुराने घर में ही खोल रखी थी. इसी दुकान की कमाई से

2 जनों का पेट भरता था. कुलदीप रोज सुबह सब्जी मंडी से सब्जी ला कर दुकान लगाता था. शाम तक सारी सब्जियां बिक जाती थीं.

कुलदीप की बीवी रेशमी गोरीचिट्टी और खूबसूरत थी. वह कदकाठी की मजबूत थी. उस की आंखें कजरारी थीं. उस का हुस्न लाजवाब था. उसे देखने के लिए दुकान पर ग्राहकों का आनाजाना लगा रहता था, जिस से दुकान की बिक्री और ज्यादा बढ़ जाती थी.

रेशमी की शादी 7-8 साल पहले कुलदीप से हुई थी. रेशमी को अभी तक कोई बच्चा नहीं हुआ था. कुलदीप

की बूढ़ी मां पोतेपोती की आस में ही मर गई थी.

रेशमी में कोई कमी नहीं थी. खोट तो कुलदीप में था. कुलदीप को शराब पीने की बुरी आदत थी. वह शाम में ठेके पर जा कर शराब पीता था. घर लौटते समय वह नशे में चूर हो जाता था. किसी तरह खाना खा कर वह बिछावन पर निढाल हो कर सो जाता था. रेशमी को करवटें बदलते रात बीत जाती थी. सुबह होते उस का हुस्न बासी फूल की तरह मुरझा जाता था.

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