फौज की नौकरी से रिटायर होने के बाद विद्या प्रकाश ने एक सोसाइटी में चौकीदार की नौकरी कर ली थी. रोजाना की तरह आज भी सुबह तड़के ही उठ कर उस ने कसरत की, पर सैर को नहीं निकला, क्योंकि बाहर रात से ही तेज बारिश हो रही थी. फिर नहाधो कर उस ने वरदी के साथ गमबूट पहने और हैट लगाई. आज भी वह 55 की उम्र में 45 साल का लगता है.

विद्या प्रकाश ने ठीक 8 बजे रसोईघर में झांका. पत्नी राधा अभी नहा रही थी. वह तुनक कर बोला, ‘‘कितनी बार कहा है कि खाना समय पर दे दिया करो, पर तुम्हें कौन समझांए. कभी भी समय की कद्र नहीं करती हो.’’

‘‘5 मिनट रुको, चपाती बनानी है. सब्जी तैयार है. वैसे भी आप की ड्यूटी का टाइम 9 बजे से है,’’ राधा बाथरूम से निकलते हुए बोली.

‘‘मैं लेट हो रहा हूं. पहले मुझे मेजर साहब के बंगले पर भी जाना है.’’

‘‘जल्दी जाना था, तो पहले बता देना चाहिए था,’’ चपाती बनाते हुए राधा बोली.

विद्या प्रकाश निकलने लगा, तो बारिश देख कर छाता लेने अंदर लौट आया. तब तक राधा ने खाने की प्लेट हाथ में दे दी.

‘‘यह क्या तरीका है खाना देने का,’’ राधा को घूरते हुए विद्या प्रकाश ने जल्दीजल्दी गुस्से में थोड़ा सा खाना खाया और बाहर निकल आया.

राधा उस के इस बरताव से झंझला गई और मन ही मन बोली, ‘नौकरी के बाद भी कभी प्यार से बात नहीं की.’

जिस सोसाइटी में विद्या प्रकाश चौकीदार है, उस से एक लेन पहले बड़ीबड़ी कोठियों वाली कालोनी है. वहां 7वें नंबर वाली कोठी के गेट में वह दाखिल हो कर अभी लान में खड़ा ही हुआ था कि उस ने मालिक मेजर साहब को अपनी पत्नी पर चिल्लाते हुए सुना.

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