ठेले वाले ने चिल्ला कर कहा, ‘‘मोहन, माल आ गया है.’’ मोहन ने किराने की दुकान से झांक कर देखा. ठेले पर आटे, चावल और दाल की बोरियां रखी थीं.किराने की दुकान का मालिक दिलीप साव खाते का हिसाबकिताब करने में मशगूल था. उस ने खाते का हिसाब करते हुए कहा,
‘‘मोहन, माल उतार लो.’’दुकान पर 2-3 ग्राहक थे, जिन्हें निबटा कर मोहन बोरियां उतारने लगा. ठेले वाले ने भी बोरियां उतारने में उस की मदद कर दी.बड़ी सड़क के किनारे ही दिलीप साव की किराने की दुकान थी. मोहन उस की दुकान पर काम करता था. वह सीधासादा नौजवान था.
वह अपने काम से मतलब रखता था. दुकान से महीने की तनख्वाह मिल जाती थी. उस से वह गुजारा कर लेता था.दिलीप साव की किराने की दुकान अच्छी चलती थी, जिस से वह खुशहाल जिंदगी जी रहा था. एक साल पहले उस की शादी दीपा से हुई थी.दीपा बेहद खूबसूरत थी.
वह काफी गोरीचिट्टी थी. उस की आंखें हसीन थीं. उस की काली जुल्फें मदहोश कर देती थीं. उस के पतले होंठों पर मुसकान खिली रहती थी. वह एक ताजा कली के समान थी.दिलीप साव का एक छोटा भाई था सुजीत. वह कालेज में पढ़ता था.
दीपा का दिल उस से बहल जाता था. वह अपने देवर के साथ हंसीमजाक कर के मजे से दिन गुजार लेती थी.रात तो दीपा की अपनी थी ही. जब दुकान बढ़ा कर रात को दिलीप साव घर लौटता तब दीपा पति के साथ मौजमस्ती करती थी. वह भी दीपा जैसी पत्नी पा कर बेहद खुश था.
उस की तो मजे से जिंदगी कट रही थी.मोहन किराने की दुकान का काम खत्म कर के घर लौट रहा था. रास्ते में उस का एक दोस्त बिरजू मिल गया. बिरजू नाविक था.