"ऐसे में तो हमारा मरना भी मुश्किल हो जाएगा.’’
भीड़ को देवेंद्रजी से हमदर्दी हो आई. बेचारे देवेंद्रजी, सारी कोलियरी का बोझ उठाए हैं अपने कंधों पर. कितनी चिंता है उन्हें लोगों की. एक वे ही तो हैं यहां, जो लोगों का दुखदर्द समझते हैं. उन को चैन कहां मिल पाता होगा. इस बार देवेंद्रजी की निगाह भीड़ से हट कर खड़े अर्जुन महतो पर पड़ी. बेचारा अर्जुन अपनी वीरान दुनिया लिए लगातार रोए जा रहा था. देवेंद्रजी को जैसे कुछ मालूम ही न हो. उन्होंने अर्जुन महतो की तरफ देख कर अपनेपन से पूछा,
‘‘क्या हो गया अर्जुन? क्यों सुबहसुबह हमारे दरवाजे पर आंसू बहा रहे हो?’’
अर्जुन महतो बिना जवाब दिए सिर्फ रोता रहा. उसी बीच महल्ले की ओर से बलदेव प्रसाद आता हुआ दिखा. देवेंद्रजी और भीड़ को शायद उसी का इंतजार था, इसीलिए सभी खुश हो गए.
मजदूर नेता देवेंद्रजी के दाहिने हाथ बलदेव प्रसाद का पहनावा देखते ही बनता था. कलफदार सफेद कुरतापाजामा, जिस पर आंखें ठहरती नहीं थीं. और कोई अर्जुन का पहनावा देखे, मैलीचीकट लुंगी और वैसी ही बनियान पहने था वह. कोयले की खदान में काम करने वाला एक अदना सा मजदूर, बेचारा अर्जुन. मजदूर अंधेरे में रेंग लेगा, खाली पैर चल लेगा और बरसते पानी में भीग लेगा, पर नेतागीरी के मजे ही और हैं. नेता हो या उन का दाहिना हाथ, उन के पास टौर्च भी हैं, जूते भी और छतरियां भी.
बलदेव प्रसाद को देख कर दुबेजी बोले, ‘‘भई बलदेवा, आजकल कहां रहते हो? बहुत दिनों से मिले नहीं. लगता है, खूब मस्ती कर रहे हो?’’