लेकिन कविता की जिंदगी वैसे ही फटेहाल थी. कोई शौक, घूमनाफिरना कुछ नहीं. बस, देवी मां की पूजा के समय रिश्तेदार आ जाते थे, उन से भेंटमुलाकात हो जाती थी. शादी के 4 सालों में ही वह 2 लड़कियों की मां बन गई थी.
इस बीच कभी भी रात को पुलिस वाले टोले में आ जाते और चारों ओर से घेर कर उन के डेरों की तलाशी लेते थे. कभीकभी उन के कंबल या कोई जेवर ही ले कर वे चले जाते थे. अकसर पुलिस के आने की खबर उन्हें पहले ही मिल जाती थी, जिस के चलते रात में सब डेरे से बाहर ही सोते थे. 2-4 दिनों के लिए रिश्तेदारियों में चले जाते थे. मामला ठंडा होने पर चले आते थे.
इन्हें भी यह सबकुछ करना ठीक नहीं लगता था, लेकिन करें तो क्या करें? आधा एकड़ जमीन, वह भी सरकारी थी और जोकुछ लगाते, उस पर कभी सूखे की मार और कभी ओलों की बौछार हो जाती थी. सरकारी मदद भी नहीं मिलती थी, क्योंकि जमीन का कोई पट्टा भी उन के पास नहीं था. जोकुछ भी थोड़ाबहुत कमाते, वह जमीन खा जाती थी, लेकिन वे सब को यही बताते थे कि जमीन से जो उग रहा है, उसी से जिंदगी चल रही है. किसी को यह थोड़े ही कहते कि चोरी करते हैं.
पिछले 7-8 महीनों से बापू ने महुए की कच्ची दारू भी उतारना चालू कर दी थी. अम्मां उसे शहर में 1-2 जगह पहुंचा कर आ जाती थीं, जिस के चलते खर्चापानी निकल जाता था.
कभीकभी राकेश रात को सोते समय कहता भी था कि यह सब उसे पसंद नहीं है, लेकिन करें तो क्या करें? सरकार कर्जा भी नहीं देती, जिस से भैंस खरीद कर दूध बेच सकें.
एक रात वे सब सोए हुए थे कि किसी ने दरवाजे पर जोर से लात मारी. नींद खुल गई, तो देखा कि 2-3 पुलिस वाले थे. एक ने राकेश की छाती पर बंदूक रख दी, ‘अबे उठ, चल थाने.’
‘लेकिन, मैं ने किया क्या है साहब?’ राकेश बोला.
‘रायसेन में बड़े जज साहब के यहां डकैती डाली है और यहां घरवाली के साथ मौज कर रहा है,’ एक पुलिस वाले ने डांटते हुए कहा.
‘सच साहब, मुझे नहीं मालूम,’ घबराई आवाज में राकेश ने कहा. कविता भी कपड़े ठीक कर के रोने लगी थी.
‘ज्यादा होशियारी मत दिखा, उठ जल्दी से,’ और कह कर बंदूक की नाल उस की छाती में घुसा दी थी.
कविता रो रही थी, ‘छोड़ दो साहब, छोड़ दो.’
पुलिस के एक जवान ने कविता के बाल खींच कर राकेश से अलग किया और एक लात जमा दी. चोट बहुत अंदर तक लगी. 3-4 टोले के और लोगों को भी पुलिस पकड़ कर ले आई और सब को हथकड़ी लगा कर लातघूंसे मारते हुए ले गई.
कविता की दोनों बेटियां उठ गई थीं. वे जोरों से रो रही थीं. वह उन्हें छोड़ कर नहीं जा सकती थी. पूरी रात जाग कर काटी और सुबह होने पर उन्हें ले कर वह सोहागपुर थाने में पहुंची.
टोले से जो लोग पकड़ कर लाए गए थे, उन सब की बहुत पिटाई की गई थी. सौ रुपए देने पर मिलने दिया. राकेश ने रोरो कर कहा, ‘सच में उस डकैती की मुझे कोई जानकारी नहीं है.’
लेकिन भरोसा कौन करता? पुलिस को तो बड़े साहब को खुश करना था और यहां के थाने से रायसेन जिले में भेज दिया गया. अब कविता अकेली थी और 2-3 साल की बेटियां. वह क्या करती? कुछ रुपए रखे थे, उन्हें ले कर वह टोले की दूसरी औरतों के साथ रायसेन गई. वहां वकील किया और थाने में गई. वहां बताया गया कि यहां किसी को पकड़ कर नहीं लाए हैं.
वकील ने कहा, ‘मारपीट कर लेने के बाद वे जब कोर्ट में पेश करेंगे, तब गिरफ्तारी दिखाएंगे. जब तक वे थाने के बाहर कहीं रखेंगे. रात को ला कर मारपीट करने के बाद जांच पूरी करेंगे.’
हजार रुपए बरबाद कर के कविता लौट आई थी. बापू के पास गई, तो वे केवल हौसला ही देते रहे और क्या कर सकते थे. आते समय बापू ने सौ रुपए दे दिए थे.
कविता जब लौट रही थी, तब फिर एक बाबाजी का प्रवचन चल रहा था. प्रसंग वही सीताजी का था. जब सीताजी को लेने राम वनवास गए थे और अपमानित हुई सीता जमीन में समा गई थीं. सबकुछ इतने मार्मिक तरीके से बता रहे थे कि उस की आंखों से भी आंसू निकल आए, तो क्या सीताजी ने आत्महत्या कर ली थी? शायद उस के दिमाग ने ऐसा ही सोचा था.
जब कविता अपने टोले पर आई, तो सीताजी की बात ही दिमाग में घूम रही थी. कैसे वनवास काटा, जंगल में रहीं, रावण के यहां रहीं और धोबी के कहने से रामजी ने अपने से अलग कर के जंगल भेज दिया गर्भवती सीता को. कैसे रहे होंगे रामजी? जैसे कि वह बिना घरवाले के अकेले रह रही है. न जाने वह कब जेल से छूटेगा और उन की जिंदगी ठीक से चल पाएगी.
इस बीच टोले में जो कागज के फूल और दिल्ली से लाए खिलौने थोक में लाते, उन्हें कविता घरघर सिर पर रख कर बेचने जाती थी. जो कुछ बचता, उस से घर का खर्च चला रही थी. अम्मांबापू कभीकभी 2-3 सौ रुपए दे देते थे. जैसे ही कुछ रुपए इकट्ठा होते, वह रायसेन चली जाती.
पुलिस ने राकेश को कोर्ट में पेश कर दिया था और कोर्ट ने जेल भेज दिया था. जमानत करवाने के लिए वकील 5 हजार रुपए मांग रहा था. कविता घर का खर्च चलाती या 5 हजार रुपए देती? राकेश का बड़ा भाई, मेरी सास भी थीं. वे घर पर आतीं और कविता को सलाह देती रहती थीं. उस ने नाराजगी भरे शब्दों में कह दिया, ‘क्यों फोकट की सलाह देती हो? कभी रुपए भी दे दिया करो. देख नहीं रही हो कि मैं कैसे बेटियों को पाल रही हूं,’ कहतेकहते वह रो पड़ी थी.
जेठ ने एक हजार रुपए दिए थे. उन्हें ले कर कविता रायसेन गई, जो वकील ने रख लिए और कहा कि वह जमानत की अर्जी लगा देगा.
उस वकील का न जाने कितना बड़ा पेट था. कविता जो भी देती, वह रख लेता था, लेकिन जमानत किसी की नहीं हो पाई थी. बस, जेल जा कर वह राकेश से मिल कर आ जाती थी. वैसे, राकेश की हालत पहले से अच्छी हो गई थी. बेफिक्री थी और समय से रोटियां मिल जाती थीं, लेकिन पंछी पिंजरे में कहां खुश रहता है. वह भी तो आजाद घूमने वाली कौम थी.