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वरुण अपने दोस्तों की तरह कठोर नहीं था. उस के अंदर सहज मानवीय भाव थे. वह काफी संवेदनशील था और निमी के प्रति दयाभाव भी रखता था, परंतु उस के लिए वह अपना भविष्य दांव पर नहीं लगा सकता था. अत. कुछ सोच कर बोला, ‘‘तुम प्राइवेट नौकरी कर सकती हो?’’

‘‘हां, मेरे पास और चारा भी क्या है?’’

‘‘तो फिर ठीक है, तुम इसी फ्लैट में रहो. इस का किराया मैं दे दिया करूंगा. मैं अपने पिता से बात कर के तुम्हें किसी कंपनी में काम दिलवा दूंगा, जिस से तुम्हारा गुजारा चल सके.’’

‘‘मैं तुम्हारा एहसान कभी नहीं भूलूंगी.’’

वरुण ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘या तुम अपने घर चली जाओ.’’

निमी ने आश्चर्य से उसे देखा. फिर बोली, ‘‘कौन सा मुंह ले कर जाऊं उन के पास? क्या बताऊंगी उन्हें कि मैं ने इतने दिन क्या किया है? नहीं वरुण, मैं उन के पास जा कर उन्हें और परेशान नहीं करना चाहती.’’

वरुण के पिता सरकारी विभाग में अच्छे पद थे. उस ने पिता से कह कर निमी को एक प्राइवेट कंपनी में लगवा दिया. क्व20 हजार महीने पर. निमी का जो लाइफस्टाइल था, उस के हिसाब से उस की यह सैलरी ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर थी, परंतु मुसीबत की घड़ी में मनुष्य को तिनके का सहारा भी बहुत होता है.

निमी ने उन्मुक्त यौन संबंधों से तो छुटकारा पा लिया, परंतु वह शराब और सिगरेट से छुटकारा नहीं पा सकी. एकांत उसे परेशान करता, पुरानी यादें उसे कचोटतीं, मांबाप की याद आती, तो वह पीने बैठ जाती.

वरुण जब भी उस से मिलने आता, वह उस की बांहों में गिर कर रोने लगती. वह समझाता, ‘‘मत पीया करो इतना, बीमार हो जाओगी.’’

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