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‘‘आज तुम यही सब पता करो. मु झे अगर अपने क्षेत्र में सिर उठा कर लोगों से शिक्षा के महत्त्व पर बात करनी है तो उस से पहले मु झे स्वयं को सुशिक्षित करना होगा. जाओ फौरन काम शुरू कर दो.’’

विकास ‘हां’ में सिर हिलाता हुआ उन के रूम से निकल गया, दिवाकर से मिलने कुछ और लोग आए हुए थे. वे उन के साथ व्यस्त हो गए. वे सब चले गए तो दिवाकर कुछ पेपर्स देख रहे थे. विकास उत्साहपूर्वक अंदर आया. उसे देखते ही बोले, ‘‘क्या पता किया? बैठो.’’

‘‘सर सब हो जाएगा, आप सिक्किम मणिपाल यूनिवर्सिटी से अपना फौर्म भर दें. इस की परीक्षाओं के कई सैंटर हैं. आप भोपाल चुन लें. वहां औनलाइन परीक्षाएं होती हैं. वहां आप को कोई पहचानेगा भी नहीं. आप अपना कोर्स, अपने विषय बता दें. मैं और भी डिटेल्स देख लूंगा.’’

‘‘वाह, शाबाश, कहते हुए दिवाकर अपनी चेयर से उठे और विकास का कंधा थपथपाते हुए उसे गले लगा लिया, ‘‘आओ, अभी फाइनल कर लेते हैं. ध्यान रखना, तुम्हारे अलावा यह सब किसी को पता नहीं चलना चाहिए.’’

‘‘निश्चित रहिए, सर.’’

विकास को दिवाकर ने हमेशा अपना छोटा भाई ही सम झा था. उस की पत्नी और एक बच्चा ठाणे में ही रहते थे. दिवाकर विकास का हर तरह से खयाल रखते थे तो विकास भी दिवाकर का बहुत निष्ठावान सहायक था. एक विधायक और एक सहायक के साथसाथ दोनों दोस्त, भाई जैसा व्यवहार भी रखते थे. दोनों ने बैठ कर औनलाइन बहुतकुछ देखा, विषय चुने और सिक्किम मणिपाल यूनिवर्सिटी में पत्राचार से ग्रेजुएशन करने के लिए फौर्म भर दिया गया. सब ठीक रहा, औफिस में ही बुक्स भी आ गईं.

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