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Writer- Er. Asha Sharma

सरला के लिए यह बड़ी मुश्किल घड़ी थी. एक तरफ बेटी थी और दूसरी तरफ भतीजी. धर्मसंकट में फंसी सरला को कोई उपाय नहीं सू झ रहा था. रोती हुई निम्मो को सीने से लगाने के अलावा उस के पास कोई और उपाय था भी नहीं.

अवनि जहां स्वभाव में तेजतर्रार और स्मार्ट थी वहीं निम्मो शांत और सहनशील. अवनि उस की सहनशीलता का पूरा फायदा उठाती थी. वह अकसर निम्मो पर हावी हो जाती. कई बार तो अपना होमवर्क भी निम्मो से करवा लेती थी. धीरेधीरे अवनि के खुद से बेहतर होने का भाव निम्मो के भीतर जड़ें जमाने लगा. वह स्कूल में तो अवनि का विरोध नहीं कर पाती थी, मगर घर आ कर रोने लगती थी. अवनि के सामने निम्मो का व्यक्तित्व दबने लगा. अवनि निम्मो के लिए उस बरगद के पेड़ जैसी हो गई थी जिस के नीचे निम्मो पनप नहीं पा रही थी.

सरला उसे बहुत सम झाया करती थी कि इस दुनिया में कोई भी व्यक्ति परफैक्ट नहीं होता. हर किसी में कोई न कोई कमी होती ही है. लेकिन वे लोग बहुत बहादुर होते हैं जो उसे स्वीकार कर लेते हैं और वे तो विरले ही होते हैं, जो उस पर विजय पा लेते हैं. वे भी कुछ कम नहीं होते जो अपनी कमियों के साथ जीना सीख लेते हैं. मगर निम्मो का बालमन शायद अभी इन बातों को सम झने के लिए परिपक्व नहीं था.

एक दिन निम्मो स्कूल से आई और आते ही घर में बने मंदिर में हाथ जोड़ने लगी.

सरला को बड़ा आश्चर्य हुआ, उस ने पूछा, ‘‘आज हमारी निम्मो क्या मांग रही है कुदरत से?’’

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