Social Story : बस नंबर 9261

आज जैसे ही अजय बस में चढ़ा तो चौंक गया. बमुश्किल 5-6 सवारियां होंगी. वैसे भी ड्राइवर जोगिंदर का यह आखिरी फेरा होता था.

दिनभर की भागमभागी में अजय को आज काफी थकान हो गई थी और घर पर भी कोई नहीं था.

‘‘क्यों जोगिंदर, कोई होटल खुला होगा क्या?’’

‘‘हां साहबजी, पांडेयजी का होटल रात 11 बजे तक तो खुला रहता है,’’ जोगिंदर का जवाब था.

तभी अजय ने देखा कि पीछे की सीट पर 2 औरतें बैठी थीं. साथ में एक बच्ची थी, जो तकरीबन 3-4 साल की होगी.

उन औरतों में से एक काले रंग की औरत ने अपनी दोनों छाती नंगी की और उस बच्ची को दूध पिलाने लगी. खूब काले, बड़े और कसे हुए उभार थे उस के.

बच्ची एक छाती को मुंह में लिए थी, जबकि दूसरे को हाथ से पकड़े हुए थी. अब तो बस में बैठे अजय और जोगिंदर का ध्यान न चाहते हुए भी उस औरत पर चला गया.

जोगिंदर एक तरफ बस चला रहा था, वहीं दूसरी तरफ उस औरत को देख भी रहा था. अजय भी कनखियों से उसे देख रहा था. वजह, ऐसा सीन उस ने आज तक नहीं देखा था.

‘‘ड्राइवर, क्या आप यहां पर बस रोकेंगे...’’ अनायास ही उस औरत की आवाज गूंजी.

‘‘जी मैडम,’’ कहते हुए जोगिंदर ने बस रोक दी.

बस रुकते ही वह औरत झटके से उठ खड़ी हुई और अजय के पास आ गई.

‘‘क्या बात है मैडम, बस क्यों रुकवाई?’’ अजय ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘वह इसलिए कि तुम दोनों मुड़मुड़ कर मेरी तरफ देख रहे थे, जब मैं बच्ची को दूध पिला रही थी. लो, ठीक से देख लो,’’ इतना कहते हुए उस औरत ने अपनी छाती हाथ में पकड़ कर अजय के सामने कर दी, ‘‘ले पीएगा, मुंह खोल,’’ इतना कहते ही उस ने अजय के मुंह के पास छाती कर दी.

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