लेेखिक- पुष्पा अग्रवाल
‘‘आदाब चाचाजान, मैं आप को पहचान गया. मैं सलीम भाई का लड़का अशरफ बोल रहा हूं, अब्बा अकसर आप की बातें करते हैं. आप मुझे हुक्म कीजिए,’’ अशरफ की आवाज नम्र थी.
ये एकदम आतुरता से बोले, ‘‘असल में मैं आप को एक तकलीफ दे रहा हूं, मेरे बेटे राजीव का एलप्पी में एक्सीडेंट हो गया है. वहीं अस्पताल में है, आप उस की कुछ मदद कर सकते हैं क्या?’’
‘‘अरे, चाचाजान, आप बेफिक्र रहिए. मैं अभी एलप्पी के लिए गाड़ी से निकल जाता हूं. उन का पूरा खयाल रख लूंगा और आप को सूचना भी देता रहूंगा. आप उन का मोबाइल नंबर बता दीजिए.’’
इन्होंने जल्दी से सीमा का मोबाइल नंबर बता दिया और आगे कहा, ‘‘ऐसा है, हम जल्दी से जल्दी पहुंचने की कोशिश करेंगे, सो यदि उचित समझो तो उन को कोच्चि में भी दिखा देना.’’
‘‘आप मुझे शर्मिंदा न करें, चाचाजान, अच्छा अब मैं फोन रखता हूं.’’
अशरफ की बातें सुन कर तो हमें चैन आ गया, फटाफट प्लेन का पता किया. जल्दीजल्दी अटैची में सामान ठूंस रहे थे और जाने की व्यवस्था भी कर रहे थे. रात होने की वजह से हवाई जहाज से जाने का कार्यक्रम कुछ सही बैठ नहीं रहा था. सिर्फ सीमा से बात कर के तसल्ली कर रहे थे. मन में शंका भी हो रही थी कि अशरफ अभी रवाना होगा या सुबह?
खाने का मन न होते हुए भी इन की डायबिटीज का ध्यान कर हम ने दूध बे्रड ले लिया.
मन में बहुत ज्यादा उथलपुथल हो रही थी. सलीम भाई से बात नहीं हुई थी, यहां आते थे तब तो बहुत बातें करते थे. क्या कारण हो सकता है? कितने ही विचार मन में घूम रहे थे.