''कुछ तो है, गेस करो.‘’
''तुम ही बताओ.‘’
''तुम्हारी बेटी को शायद प्यार हो गया है.‘’
विनय जोर से हंसे, ''इतनी खुश हो रही हो. उस ने खुद बताया है या अंदाजा लगाती घूम रही हो.‘’
''नहीं, उस ने तो नहीं बताया, मेरा अंदाजा है.''
''अच्छा, उस ने नहीं बताया?''
''नहीं.‘’
''तो फिर पहले उसे बताने दो.‘’
''नहीं, मैं सही सोच रही हूं.‘’
''देखते हैं.‘’
पर बात इतनी सरल रूप में भी सामने नहीं आई जैसे नंदिता और विनय ने सोचा था. एक संडे पीहू ने सुबह कहा, ''मम्मी, पापा, आज मेरा एक दोस्त घर आएगा.‘’
नंदिता और विनय ने एकदूसरे को देखा, नंदिता ने आंखों ही आंखों में जैसे विनय से कहा, देखा, मेरा अंदाजा!''
विनय मुसकराए, ''अच्छा, कौन है?''
''संजय, वह भी सीए कर रहा है. बस, में ही साथ आतेजाते दोस्ती हुई. मैं चाहती हूं आप दोनों उस से मिल लें.‘’
नंदिता मुसकराई, ''क्यों नहीं, जरूर मिलेंगे.''
इतने में पीहू का फोन बजा तो नंदिता ने कनखियों से देखा, ‘माय लव’ का ही फोन था. वह विनय को देख हंस दी, पीहू दूसरे रूम में फोन करने चली गई.
शाम को संजय आया. नंदिता तो पीहू के फोन में उस दिन किचन में ही इस ‘माय लव’ की फोटो देख चुकी थी. संजय जल्दी ही नंदिता और विनय से फ्री हो गया. नंदिता को वह काफी बातूनी लगा. विनय को ठीक ही लगा. बहुत देर वह बैठा रहा. उस ने अपनी फेमिली के बारे में कुछ इस तरह बताया, ''पापा ने जौब छोड़ कर अपना बिजनैस शुरू किया है. किसी जौब में बहुत देर तक नहीं टिक रहे थे. अब अपना काम शुरू कर दिया है तो यहां तो उन्हें टिकना ही पड़ेगा. मम्मी को किट्टी पार्टी से फुरसत नहीं मिलती, बड़ी बहन को बौयफ्रैंड्स से.’’